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बेंगलुरु: ईदगाह मैदान में गणेश पूजा नहीं, जानें सुप्रीम कोर्ट का आदेश

बेंगलुरु के ईदगाह मैदान में बुधवार को गणेश चतुर्थी समारोह नहीं हो सकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिका में उठाए गए मुद्दे को उच्च न्यायालय में रखा जा सकता है। इसने आज की स्थिति के बारे में यथास्थिति का आदेश दिया। इसका मतलब है कि त्योहार के लिए मैदान का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने समय पर इस गतिरोध को ख़त्म कर दिया। कल और परसों ही गणेश चतुर्थी है। राज्य सरकार पंडालों को स्थापित करने की अनुमति देने पर जोर दे रही थी।

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तीन न्यायाधीशों की पीठ कर्नाटक वक्फ बोर्ड की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें गणेश चतुर्थी समारोह के लिए ईदगाह मैदान के उपयोग की अनुमति दी गई थी।

26 अगस्त को उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चामराजपेट में ईदगाह मैदान के उपयोग की मांग करने वाले बेंगलुरु के उपायुक्त को मिले आवेदनों पर विचार करने और उचित आदेश पारित करने की अनुमति दी थी। लेकिन वक्फ बोर्ड यह तर्क देते हुए उच्चतम न्यायालय में गया कि इस तरह के धार्मिक उत्सव 200 वर्षों से इस स्थान पर नहीं हुए हैं।

इस मामले में एक बड़ा सवाल यह है कि जमीन का मालिक कौन है, राज्य सरकार या वक्फ बोर्ड? यह सवाल कर्नाटक उच्च न्यायालय के सामने है।

सुप्रीम कोर्ट में आज वक़्फ बोर्ड के वकील दुष्यंत दवे ने कहा, 

धार्मिक अल्पसंख्यकों को यह धारणा न बनने दें कि उनके अधिकारों को इस तरह रौंदा जा सकता है।


दुष्यंत दवे, वक्फ बोर्ड के वकील

बोर्ड की तरफ़ से दलील दी गई, 'इस संपत्ति में किसी अन्य समुदाय से कोई धार्मिक आयोजन नहीं किया गया है... इसे कानून के अनुसार वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है। अचानक 2022 में वे कहते हैं कि यह विवादित भूमि है, और वे यहां गणेश चतुर्थी उत्सव आयोजित करना चाहते हैं।'

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लेकिन राज्य के वकील ने दो दिनों के लिए 'सरकार द्वारा प्रबंधित मंदिर' की अनुमति देने की अपील की और कहा, 'इसके लिए कोई स्थायी संरचना नहीं बनाई जाएगी'।

इस पर बोर्ड के वकील ने 1992 में मस्जिद के विध्वंस का जिक्र करते हुए टिप्पणी की, 'बाबरी मस्जिद मामले में यूपी के तत्कालीन सीएम ने भी आश्वासन दिया था। आप जानते हैं कि वहां क्या हुआ था।' 

सुनवाई के दौरान ही अदालत ने पूछा कि क्या मैदान में इस तरह के आयोजनों के पहले के उदाहरण हैं?

इस सवाल पर सरकारी वकील मुकुल रोहतगी ने जवाब दिया। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार रोहतगी ने कहा, 'यह अब किसी आयोजन का विरोध करने का आधार नहीं हो सकता... पिछले 200 वर्षों से भूमि का उपयोग बच्चों के लिए खेल के मैदान के लिए किया गया था। सभी राजस्व प्रविष्टियां राज्य के नाम पर हैं।'

उन्होंने दलील दी, "दिल्ली में, दशहरे के पुतले हर जगह जलाए जाते हैं। क्या लोग कहेंगे 'यह हिंदू त्योहार मत करो'? हमें थोड़ा खुले दिमाग वाला होना होगा। गुजरात में त्योहारों के लिए सड़कें और गलियाँ अवरुद्ध होती हैं। गणेश चतुर्थी पर दो दिनों के लिए अनुमति मिल जाए तो क्या हो जाएगा?' 

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लेकिन बोर्ड के वकील दवे ने जवाब दिया, 'मुझे संदेह है कि क्या इस देश में कोई मंदिर है जहां अल्पसंख्यक समुदाय को प्रार्थना के लिए प्रवेश करने की अनुमति होगी।'

उन्होंने दलील दी, 'वक्फ अधिनियम 1995 अन्य सभी कानूनों को ओवरराइड करता है। यह कहता है कि सरकारी एजेंसियों के कब्जे वाली किसी भी वक्फ संपत्ति को वक्फ बोर्ड को सौंप दिया जाना चाहिए। इस संपत्ति को छूना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।'

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क़मर वहीद नक़वी
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