कर्नाटक उच्च न्यायालय के जस्टिस एचपी संदेश ने राज्य में एसीबी के प्रमुख के ख़िलाफ़ दिए लिखित आदेश में कहा है कि अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें ट्रांसफर की धमकी दी गई। वह धमकी भी दिल्ली से दी गई। उनका कहना है कि धमकी इसलिए कि एसीबी यानी एंटी करप्शन ब्यूरो सीमांत कुमार सिंह के ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया। तो सवाल है कि आख़िर दिल्ली से उन्हें धमकी देने वाला कौन है? हाई कोर्ट के जज को फ़ैसले बदलने के लिए धमकी देने वाला इतना ताक़तवर व्यक्ति कौन हो सकता है?
इन सवालों का जवाब क्या जस्टिस संदेश के सोमवार के आदेश से मिलता है, यह जानने से पहले यह जान लीजिए कि इस मामले में ताजा अपडेट क्या है। हाई कोर्ट का यह आदेश सोमवार को दिया गया और इसके ख़िलाफ़ एसीबी के एडीजीपी सीमांत कुमार सिंह सुप्रीम कोर्ट भी चले गए। उन्होंने अपने ख़िलाफ़ की गई हाई कोर्ट जज की सख्त टिप्पणी को हटाने की याचिका दायर की थी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस एचपी संदेश को तीन दिनों के लिए उस मामले में सुनवाई टालने के लिए कहा है। राज्य सरकार और एसीबी के एडीजीपी के वकील की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। सॉलिसिटर जनरल एक तरह से देश के दूसरे सबसे बड़े कानूनी अधिकारी होते हैं। वह न्यायिक मामलों में अटॉर्नी जनरल की मदद करते हैं। सॉलिसिटर जनरल सुप्रीम कोर्ट या किसी भी हाई कोर्ट में भारत सरकार की तरफ से पेश हो सकते हैं।
बता दें कि जस्टिस संदेश ने एसीबी को एक 'कलेक्शन सेंटर' और सिंह को एक 'दागी अधिकारी' कहा था। उन्होंने यह टिप्पणी कुछ दिनों पहले बेंगलुरु शहर के उपायुक्त के दफ्तर में कार्यरत एक उप तहसीलदार पीएस महेश की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की थी।
जस्टिस संदेश ने अपने आदेश में दर्ज किया कि 1 जुलाई को पूर्व मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी को विदाई देने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा आयोजित विदाई रात्रिभोज समारोह के दौरान उन्हें एक मौजूदा न्यायाधीश द्वारा स्थानांतरण की अप्रत्यक्ष धमकी दी गई थी।
जस्टिस संदेश ने 4 जुलाई को एक सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से खुलासा किया था कि बेंगलुरु उपायुक्त (शहरी) से जुड़े एक मामले में एसीबी की जांच की प्रगति की निगरानी करने पर स्थानांतरण की अप्रत्यक्ष धमकी दी गई थी।
जस्टिस संदेश ने अदालत में ही कहा, 'ऐसा लगता है कि एसीबी के एडीजीपी कोई ताकतवर इंसान हैं और मुझे यह बताया गया है कि मेरा तबादला किया जा सकता है।' उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अदालत पर हमला है। जस्टिस संदेश ने एसीबी और इसके वकील की खिंचाई करते हुए कहा कि वह किसी पद के जाने से नहीं डरते, वह एक किसान के बेटे हैं और खेत में हल चलाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी राजनीतिक दल या किसी विचारधारा से नहीं बल्कि संविधान से संबंध रखते हैं।
जस्टिस संदेश की इस टिप्पणी पर खूब बवाल हुआ था। सोमवार को जज ने खुलासे को लिखित आदेश का हिस्सा बनाया है।
'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार के आदेश में जस्टिस संदेश ने कहा, 'जब इस मामले की सुनवाई 29-06-2022 को हुई और इस अदालत ने असली आरोपी को पकड़ने में एसीबी की ओर से निष्क्रियता पाई, तो एक अवलोकन किया। वास्तविक दोषियों को लाने में एसीबी की ओर से निष्क्रियता के संबंध में मामले को 4-7-2022 तक के लिए स्थगित कर दिया गया।'
उन्होंने आगे कहा, "इस बीच सेवानिवृत्ति के कारण, इस अदालत द्वारा 01-07-2022 को माननीय मुख्य न्यायाधीश को विदाई देने के लिए एक रात्रिभोज की व्यवस्था की गई थी। मेरे बगल में बैठे एक मौजूदा न्यायाधीश ने बोलना शुरू किया... 'उन्हें दिल्ली से एक कॉल आया था (नाम का खुलासा नहीं किया) और कहा कि जिस व्यक्ति ने दिल्ली से फोन किया, उसने मेरे बारे में पूछताछ की और तुरंत मैंने जवाब दिया कि मैं किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हूं। जज यहीं नहीं रुके और कहा कि एडीजीपी उत्तर भारत से हैं और ताकतवर हैं…। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि आगे की रिकॉर्डिंग स्पष्ट नहीं थी।
सोमवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस संदेश ने मौखिक रूप से कहा कि न्याय देने में हस्तक्षेप न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ख़तरा है।
न्यायाधीश ने आदेश में यह भी कहा है कि राज्य को 'दागी अधिकारियों' को शीर्ष पदों तैनात नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, 'मुख्य सचिव को निर्देश दिया जाता है कि अधिकारियों की नियुक्ति से पहले, वह भी भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए स्थापित संस्था में जनहित का ध्यान रखें और भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए संस्था के शीर्ष पर किसी भी दागी अधिकारी को तैनात न करें।'
उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारी की विश्वसनीयता होनी चाहिए और उसे बाहरी या आंतरिक प्रभाव के आधार पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, 'यदि अधिकारी या उसके परिवार के सदस्य एसीबी या लोकायुक्त द्वारा किसी जांच का सामना कर रहे हैं, तो ऐसे अधिकारी के नाम पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।'
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