मंगलवार, 15 अक्टूबर को झारखंड विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बीजेपी से एक ऐसा सवाल पूछा, जो उनके लिए मुश्किल भरा माना गया। जेएमएम ने एक्स पर सवालिया लहजा में पूछा- बीजेपी में सीएम पद का चेहरा कौन- बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन या मधु कोड़ा?
हालांकि जेएमएम के कई बड़े नेता पहले भी यह सवाल उठाते रहे हैं। अब चुनाव के दौरान यह सवाल बीजेपी को परेशान करे, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। वैसे, हालिया कई राज्यों के चुनावों में बीजेपी ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का चेहरा सामने नहीं किया है। अलबत्ता राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल करने के बाद भी सीएम का नाम तय करने में बीजेपी को कई दिन लगे थे।
लेकिन झारखंड में यह सवाल इसलिए भी सुर्खियों में है कि पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी प्रदेश में बीजेपी की कमान संभाल रहे हैं। साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी पार्टी की अगली कतार में शामिल हैं। पिछले 30 अगस्त को जेएमएम नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी को एक बड़ा आदिवासी चेहरा मिला है। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी बीजेपी की नाव पर सवार हैं। वैसे, कोड़ा अभी सजायाफ्ता होने की वजह से चुनाव नहीं लड़ सकते।
उधर, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को पार्टी द्वारा पिछले साल ओडिशा का राज्यपाल बनाये जाने के बाद झारखंड की राजनीति में उनकी वापसी को लेकर जब- तब कयासों का दौर चलता रहता है।
81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी को पूरा हो रहा है, लेकिन इस बार चुनाव नवंबर में कराए जा रहे हैं।
पहले चरण में 13 नवंबर को 43 सीटों के लिए और दूसरे चरण में 20 नवंबर को 38 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। 2014 और 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में पांच चरणों में मतदान हुआ था।
इस बार बीजेपी भी गठबंधन के साथ
इस बार बीजेपी ने गठबंधन में चुनाव लड़ने का फ़ैसला लिया है। पंद्रह साल बाद झारखंड में जदयू इस गठबंधन में शामिल हो रहा। 2019 के विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी सीट से रघुवर दास को हराने वाले सरयू राय ने हाल ही में जदयू का दामन थाम लिया है। इससे जदयू की उम्मीदें जागी हैं।
उधर 2019 में अलग चुनाव लड़ने वाली आजसू पार्टी को भी बीजेपी ने गठबंधन में शामिल किया है। लोजपा ने भी झारखंड में एनडीए के साथ चुनाव लड़ने की दावेदारी पेश की है। इससे पहले 2014 के चुनाव में बीजेपी और आजसू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार गठबंधन में आजसू पार्टी, जदयू और लोजपा के खाते में कितनी और कौन सी सीटें दी जाएंगी, इसकी घोषणा बाक़ी है। जाहिर तौर पर एनडीए कुनबा की नजर दिल्ली पर लगी है। साथ ही इंडिया ब्लॉक के रणनीतिकारों की भी।
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जाहिर तौर पर विधानसभा चुनाव में दोनों, सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में मुकाबला है।
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 33.37 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 25 सीटों पर जीत मिली थी। उधर अकेले दम पर 53 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आजसू पार्टी का भी बुरा हाल हुआ और उसने सिर्फ दो सीटों पर जीत दर्ज की थी। बाद में रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव में जीत दर्ज कर आजसू पार्टी के विधायकों की संख्या तीन हुई।
2019 में बीजेपी को आदिवासी इलाकों में मिली करारी हार के कारण सत्ता गंवानी पड़ी थी। झारखंड में आदिवासियों के लिए 28 सीटें रिजर्व हैं। सत्ता तक पहुंचने के लिए आदिवासी सीटों पर जीत- हार के आँकड़े महत्वपूर्ण माने जाते हैं। 2019 में बीजेपी को इन 28 में से सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी। जबकि कांग्रेस- जेएमएम गठबंधन ने 25 सीटें जीत कर बीजेपी से सत्ता छीन ली थी।
लोकसभा चुनावों में राज्य में आदिवासियों के लिए रिजर्व सभी पांच सीटों पर बीजेपी की हार ने पार्टी की बेचैनी बढ़ा दी है। लोकसभा चुनावों में झारखंड में बीजेपी का वोट शेयर भी 2019 की तुलना में 51.6 प्रतिशत नीचे 44.60 प्रतिशत पर आया है।
लिहाजा पार्टी के शीर्ष रणनीतिकार आदिवासी इलाक़ों में खोई जमीन वापस पाने की जद्दोजहद कर रहे। दूसरी तरफ़ बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, चंपाई सोरेन, मधु कोड़ा, गीता कोड़ा सरीखे नेताओं का दमखम भी तौला जाना है।
हेमंत सीएम का चेहरा
इधर इंडिया ब्लॉक के सबसे बड़े दारोमदार हेमंत सोरेन इस बार सीएम पद का चेहरा हैं, इसको लेकर सत्तारूढ़ दलों में कोई संशय नहीं है। हरियाणा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि वह झारखंड में जेएमएम के सामने कोई शर्त रखे या मुश्किल खड़ी करे।
हालाँकि सीट शेयरिंग को लेकर अभी इंडिया ब्लॉक में तस्वीर साफ़ नहीं है। संकेत मिल रहे हैं कि जेएमएम के साथ कांग्रेस, राजद और भाकपा माले गठबंधन के तहत चुनाव लड़ेंगे। फ़िलहाल सीटों को लेकर सबकी अपनी दावेदारी है। पिछले नौ अक्टूबर को हेमंत सोरेन की दिल्ली में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पार्टी के नेता राहुल गांधी से हुई मुलाकात के भी मायने निकाले जाते रहे हैं।
2019 विधानसभा चुनाव में जेएमएम को 30, कांग्रेस को 16, आरजेडी को एक-एक सीटें मिली थीं। इस गठबंधन ने सरकार बनाई। तब जेएमएम गठबंधन का वोट शेयर 41.91 प्रतिशत था। अब इस गठबंधन में भाकपा- माले भी शामिल है।
इस साल हुए लोकसभा चुनावों में आदिवासियों के लिए रिजर्व पांच सीटों में से तीन पर जेएमएम और दो पर कांग्रेस की जीत के बाद सत्तारूढ़ दलों का भरोसा बढ़ा है। हालाँकि विधानसभा चुनाव में एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच यह टसल बढ़ता दिख रहा है।
कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती दिख रही है कि वह 16 सीटों पर अपनी जीत बरकरार रख सकती है या नहीं। जेएमएम को भी इसका अहसास है।
हेमंत सोरेन की नज़रें जेएमएम के गढ़ माने जाने वाले संथाल परगना और कोल्हान में अपना क़िला बचाने पर है। संथाल परगना में 18 सीटें और कोल्हान प्रमंडल में 14 विधानसभा सीटों पर नज़रें हैं।
2019 विधानसभा चुनावों में संथाल परगना की 18 सीटों में भाजपा सिर्फ तीन पर जीत हासिल कर पाई थी और कोल्हान प्रमंडल की 14 सीटों पर भाजपा का खाता भी नहीं खुला था।
इस बार जेएमएम गैर आदिवासी इलाक़ों में भी अपना दायरा बढ़ाने की फिराक में है। हेमंत सोरेन इससे वाकिफ दिखते हैं कि आदिवासी इलाकों में कुछ सीटों का नुक़सान गैर आदिवासी सीटों पर जीत से ही पाटा जा सकता है। 2019 के चुनाव में जेएमएम ने अनारक्षित (सामान्य) आठ सीटों पर जीत दर्ज की थी।
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