तब्लीग़ी जमात पर लगे तमाम आरोपों को खारिज करने और फिर डॉ. कफील खान को जमानत मिलने के बाद अब जम्मू एवं कश्मीर हाई कोर्ट ने राजद्रोह के नाम पर दर्ज केस को लेकर अहम टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा है कि केवल अपमानजनक टिप्पणी करना ही राजद्रोह का केस लगाने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।
नेताओं के लिए अपमानजनक शब्द कहने मात्र से राजद्रोह का केस नहीं बनता: हाई कोर्ट
- जम्मू-कश्मीर
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- 25 Sep, 2020

राजद्रोह का यह कानून अंग्रेजों के जमाने का है। तब अंग्रेज इस कानून का इस्तेमाल उन भारतीयों के ख़िलाफ़ करते थे, जो अंग्रेजों की बात मानने से इनकार कर देते थे। ये कानून 1870 में वजूद में आया था। बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी को भी राजद्रोह का आरोपी बनाया गया था। तब से अब तक कई कानूनों में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन यह कानून बना हुआ है और पिछले कुछ सालों में इसे लेकर खूब विवाद भी हुए हैं।
जे एंड के हाई कोर्ट की यह टिप्पणी उस वक्त आयी है जब देश की सबसे बड़ी अदालत में सोशल मीडिया पर रोक लगाने को लेकर बहस जारी है। एक मामले में सुनवाई के दौरान खुद केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में कह चुकी है कि सोशल मीडिया पर लगाम लगनी चाहिए।
क्या था मामला?
लद्दाख ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल (एलएएचडीसी) के एक चुने काउंसलर ने भारत-चीन सीमा पर बढ़ते हुए तनाव को देखते हुए सोशल मीडिया में एक टिप्पणी कर दी। करीब 6 मिनट के वायरल ऑडियो टेप में काउंसलर जाकिर हुसैन को भारतीय राजनीति में बड़े पदों पर बैठे नेताओं और आर्म्ड फोर्सेज के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हुए सुना गया।