पाकिस्तान समर्थक कश्मीरी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी का बुधवार देर शाम निधन हो गया। वह 92 साल के थे। श्रीनगर में अपने घर पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से बीमार थे। उन्होंने पिछले साल हुर्रियत से इस्तीफा दे दिया था और वह राजनीति से पूरी तरह अलग हो गए थे। वह जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी राजनीति का चेहरा रहे।
गिलानी के निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने गहरा दुख जताया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'गिलानी साहब के निधन की ख़बर से दुखी हूँ। हम भले ही अधिकतर मसलों पर सहमत नहीं रहे हों, पर मैं उनकी दृढ़ता और उनके विश्वासों पर अडिग होने के लिए उनका सम्मान करती हूँ। अल्लाहताला उन्हें जन्नत प्रदान करें। उनके परिवार तथा शुभचिंतकों के प्रति संवेदना।'
Saddened by the news of Geelani sahab’s passing away. We may not have agreed on most things but I respect him for his steadfastness & standing by his beliefs. May Allah Ta’aala grant him jannat & condolences to his family & well wishers.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) September 1, 2021
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने ट्वीट कर कहा कि 'सैयद अली शाह गिलानी के परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना। मेरे दिवंगत पिता के एक सम्मानित सहयोगी थे। अल्लाह उन्हें जन्नत दे।'
गिलानी के पाकिस्तान स्थित प्रतिनिधि अब्दुल्ला गिलानी ने भी ट्वीट किया कि क्रांति के जनक सैयद अली गिलानी का आज रात निधन हो गया। उन्होंने यह भी लिखा कि 'उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें श्रीनगर में दफनाया जाएगा'।
बुधवार देर शाम उनके निधन के बाद कश्मीर घाटी में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। आशंका है कि उनके अंतिम संस्कार में बड़ी भीड़ आ सकती है। इंटरनेट को बाधित किया गया है और पूरी घाटी भर में प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। हुर्रियत के कुछ वरिष्ठ सदस्यों को हिरासत में लिया गया है। हुर्रियत के वरिष्ठ नेता मुख्तार अहमद वाजा को दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग शहर में उनके आवास से गिरफ्तार किया गया है।
गिलानी विधायक भी रहे थे। वह 1972, 1977 और 1987 में जम्मू-कश्मीर के सोपोर निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी समर्थक दलों के समूह, ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था। वह एक दशक से अधिक समय घर में नजरबंद रखे गए थे।
गिलानी का निधन ऐसे वक़्त में हुआ है जब उनके और हुर्रियत के उदारवादी धड़े ऐसे मुहाने पर खड़े हैं जहाँ जम्मू कश्मीर में हालात बिल्कुल बदल गए हैं। अनुच्छेद 370 को निरस्त किया जा चुका है, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदला जा चुका है, राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए जम्मू कश्मीर में लगातार कार्रवाई कर रही है।
कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए सशस्त्र संघर्ष के प्रबल समर्थक रहे गिलानी 1993 में गठित हुर्रियत कांफ्रेंस के सात कार्यकारी सदस्यों में शामिल थे। लेकिन कश्मीर पर उग्रवाद वाली विचारधारा को उनके समर्थन की वजह से उनके और उनके सहयोगियों के बीच कलह हुई। इसका नतीजा यह हुआ कि 2003 में हुर्रियत में विभाजन हो गया। बाद में हुर्रियत के दोनों धड़े अलग-अलग ही काम करते रहे।
अपनी राय बतायें