द रेजिस्टेंस फ़ोर्स (टीआरएफ़) और पीपल अगेन्स्ट फ़ासिस्ट फ़ोर्सेज जैसे संगठनों के बाद जम्मू-कश्मीर में एक और नया आतंकवादी गुट सामने आया है, जो पाकिस्तान के मंसूबों को उजागर करता है। यह है कश्मीर टाइगर्स। सोमवार को श्रीनगर के पास पुलिस बस पर हुए हमले के पीछे इसी संगठन का नाम आ रहा है।
सोमवार को तीन आतंकवादियों ने घात लगा कर पुलिसकर्मियों को ले जा रही बस पर फ़ायरिंग की, जिसमें पुलिस के तीन लोग मारे गए और 11 घायल हो गए।
पुलिस का कहना है कि कश्मीर टाइगर्स ने इस हमले को अंजाम दिया है।
क्या है कश्मीर टाइगर्स
विश्लेशकों का कहना है कि यह मूल रूप से पाकिस्तान में बसे आतंकवादी गुट जैश-ए-मुहम्मद की एक शाखा है। पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ने इस आतंकवादी संगठन से कुछ लोगों को निकाल कर इस गुट का गठन किया है और इसका नाम कुछ तरह रखा है कि इसे सीधे किसी इसलामी चरमपंथी गुट से जोड़ कर न देखा जाए और पाकिस्तान तक उसकी पहुँच को साबित करना मुश्किल हो।
दरअसल, आईएसआई की यह रणनीति है कि जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकवाद को स्थानीय लोगों के विद्रोह के रूप में प्रचारित किया जाए और उसे उस रंग में रंगा जाए।
पाक रणनीति
इससे पाकिस्तान को इसके लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ठहराना मुश्किल होगा और इन आतंकवादी कार्रवाइयों को भारत सरकार के ख़िलाफ़ जनता के आन्दोलन के रूप में पेश किया जा सकेगा।
इस रणनीति के तहत ही जैश-ए- मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और कुछ दूसरे गुटों के कुछ लोगों को मिला कर 2019 में टीआरएफ़ यानी द रेजिस्टेन्स फ़ोर्स का गठन किया गया।
इन गुटों का नाम भी जानबूझ कर ऐसा रखा जा रहा है कि इन्हें इसलाम से जोड़ कर न देखा जाए। इसी क्रम में पीपल अगेन्स्ट फ़ासिस्ट फ़ोर्सेज और कश्मीर टाइगर्स जैसे नाम सामने आ रहे हैं।
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि नए-नए नाम सामने आने से यह भी प्रचारित किया जा सकेगा कि जम्मू-कश्मीर में बहुत बड़ी तादाद में चरमपंथी सक्रिय हैं और भारतीय सुरक्षा बलों पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं।
पाकिस्तान की इस बदली रणनीति का एक उदाहरण तब मिला था जब कुछ दिन पहले घाटी के अलग-अलग जगहों पर हमले कर छह आम नागरिकों की हत्या कर दी गई। जम्मू-कश्मीर पुलिस के आईजी ने पत्रकारों से कहा था कि ये सभी हमले हाइब्रिड आतंकवादियों ने किए थे।
हाइब्रिड आतंकवादी
हाइब्रिड आतंकवादी वे लोग होते हैं जो आम नागरिकों की तरह सामान्य जीवन जीते रहते हैं, लेकिन एक इशारे पर कहीं कोई हमला कर अपने ठिकाने पर लौट आते हैं और पहले की तरह रहने लगते हैं। इनका पुलिस में कोई रिकॉर्ड नहीं होता, लिहाज़ा पुलिस इनका पता नहीं लगा पाती है न ही इन तक पहुँच पाती है।
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