शेख़ अब्दुल्ला के सामने यह सवाल था कि जम्मू-कश्मीर को भारत के साथ रहना चाहिये या फिर पाकिस्तान के, तब उनके दिमाग़ में किसी तरह का कन्फ्यूजन नहीं था। आज भले ही संघ परिवार और बीजेपी शेख़ अब्दुल्ला की कैसी भी तसवीर पेश करे, वह एक आज़ाद ख़्याल, आधुनिक सोच के नेता थे। वह इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि पाकिस्तान के साथ जाना कश्मीर के लिये विकल्प नहीं हो सकता। वह यह भी जानते थे कि कश्मीर एक आज़ाद मुल्क नहीं हो सकता। शेख़ अब्दुल्ला का ख़्वाब था ‘नया कश्मीर’। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा, ‘ग़ुलामी की ज़ंजीरें उनके क़ब्ज़े (पाकिस्तान) में बनी रहेंगी। लेकिन भारत अलग है। भारत में ऐसे नेता और दल हैं जिनके विचार हमसे मिलते हैं। भारत के साथ विलय होने पर क्या हम अपने लक्ष्य के क़रीब नहीं पहुँचेंगे? हमारे पास दूसरा विकल्प आज़ादी का है लेकिन चारों तरफ़ से बड़े देशों से घिरे होने के कारण एक छोटे देश का आज़ाद रह पाना मुमकिन नहीं होगा।’