श्रीनगर की गुपकार रोड से दिल्ली के लोक कल्याण मार्ग तक के सफ़र को मंज़िल तक पहुंचने में 22 महीने का वक्त लग गया, लेकिन यदि अब भी दिल्ली दरबार के दरवाज़े कश्मीर के लोगों की आवाज़ सुनने के लिए खुले हैं तो कह सकते हैं कि देर आयद दुरस्त आयद। जम्हूरियत में आगे बढ़ने और मंज़िल को हासिल करने का एक ही रास्ता है जनता के नुमाइंदों से बातचीत और उनके मन की बात सुनने की कोशिश।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आज कश्मीरी नेताओं के साथ होने वाली बैठक जम्मू-कश्मीर के लिए अरसे से बंद दरवाजों को खोलने में मदद कर सकती है।
ठंडे और अविश्वास भरे रिश्तों के बीच ईमानदार गर्मजोशी बर्फ पिघला सकती है, ऐसा मुश्किल भी नहीं कि बात फिर से शुरू ना हो सके, लेकिन ज़रूरी है कि आमने-सामने बैठने वाले लोगों को एक-दूसरों की आंखों में भरोसा जागता दिखाई दे।
दोनों पर अहम जिम्मेदारी
केंद्र सरकार को इस बात का अहसास कश्मीर के नेता दिला सकें कि वो हिन्दुस्तान के संविधान के दायरे में ही आगे बढ़ना चाहते हैं, वैसे प्रधानमंत्री के न्यौते को मंज़ूर करके उन्होंने यह जताने की कोशिश की है कि उनके लिए कश्मीर और हिन्दुस्तान एक ही है। अब केंद्र सरकार को यह भरोसा दिलाना है कि उसके मन को कश्मीर की तकलीफ सिर्फ़ समझ ही नहीं आती बल्कि वो उसे दूर भी करना चाहता है।
कुछ मीठी शुरुआत के लिए कुछ कड़वी यादें भुलानी भी पड़ती हैं क्या वो इस बातचीत से पहले भुलाई गई हैं, कश्मीरी अवाम की नुमाइंदगी करने वालों को गुपकार गैंग बताने को क्या गलती माना जाएगा और एक अस्थायी धारा को हटाने से केंद्र उनका दुश्मन नहीं हो गया, इस बात को भी गांठ बांधना ज़रूरी है।
आगे बढ़ना ज़रूरी
सवाल बहुत हो सकते हैं कि अब इस मुलाकात, इस बैठक और इस बातचीत की ज़रूरत क्यों पड़ी, लेकिन उससे ज़्यादा जरूरी है यह समझना कि अब इस बहाने से भी आगे बढ़ा जाए तो कुछ बिगड़ेगा नहीं। कई महीनों तक हाउस अरेस्ट और तमाम कानूनी धाराओं में उलझे नेताओं को लोक कल्याण मार्ग पर प्रधानमंत्री आवास की खुली हवा रास आएगी।
केंद्र सरकार के निमंत्रण पर आठ राजनीतिक दलों के 14 नेता दिल्ली पहुंचे हैं। उसमें ज्यादातर लोग कश्मीर घाटी से हैं तो कुछ जम्मू से भी और कुछ राष्ट्रीय दलों के नेता, यानी हर एक की बात को समझने के लिए हर बार अलग तरह से सोचना पड़ेगा।
केंद्र सरकार की तैयारी
बैठक में शामिल होने वाले सभी नुमाइंदों को जिद और अहम का रास्ता छोड़ना होगा, बीच का रास्ता निकालना होगा और यह भी कि इस बैठक के नतीजे किसी की हार या जीत तय नहीं करेंगे, इससे कश्मीर जीतेगा यानी देश जीतेगा। बैठक से पहले केंद्र ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है तो कश्मीर के नेताओं ने भी मन बना लिया होगा।
केंद्र सरकार के अफसर पिछले काफी समय से जम्मू-कश्मीर के नेताओं से संपर्क में थे। उन नेताओं की रिहाई से ही इस बात का अंदेशा तो हो गया था कि सरकार कुछ आगे बढ़ने के लिए सोच रही है और कई बार आगे बढ़ने के लिए यू टर्न भी लेना पड़ता है।
पांच अगस्त 2019 के बाद केंद्र की कश्मीरी नेताओं से यह पहली अहम बातचीत होगी। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह, उप राज्यपाल मनोज सिन्हा और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के अलावा कई आला अफसरों के साथ बैठकों के कई दौर किए हैं।
ये नेता होंगे शामिल
इस बैठक में पीपल्स अलांयस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फ़ारूक़ अब्दुल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती, पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद और उमर अब्दुल्ला तो होंगे ही। इनके अलावा जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के मुखिया अलताफ बुखारी, सीपीएम लीडर मोहम्मद युसूफ तारीगामी, कांग्रेस के जम्मू कश्मीर के अध्यक्ष जी ए मीर, बीजेपी के रवीन्द्र रैना और पैंथर पार्टी के भीम सिंह समेत कई नेता शामिल होंगे।
उम्मीद की जा रही है कि बैठक में जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया फिर से शुरू होगी, इस पर चर्चा होगी। राज्य में चुनावों के लिए भी विचार किया जा सकता है हालाकि इस वक्त वहां विधानसभा और लोकसभा सीटों के परिसीमन काम काम चल रहा है जो मार्च 2022 में पूरा होगा, हो सकता है कि उसके बाद चुनाव कराए जाएं।
370 की बहाली नामुमकिन!
रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में परिसीमन आयोग को यह काम सौंपा गया है। इससे पहले यहां 1995 में परिसीमन का काम हुआ था। क्या सरकार चुनावों से पहले जम्मू-कश्मीर का फिर से राज्य का दर्जा बहाल करने पर सोच रही है। कांग्रेस इस पर ज़ोर दे रही है। ज्यादातर दल और नेता जानते हैं कि धारा 370 की बहाली तो अब मुमकिन नहीं है, भले ही औपचारिक तौर पर इसकी मांग बैठक में की जाए लेकिन यह बातचीत की पहली शर्त शायद नहीं होगी।
सिन्हा का बेहतर काम
राज्य में लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा के काम की तारीफ हुई है। इसमें हर नागरिक के लिए पांच लाख रुपये के हैल्थ इंश्योरेंस जैसी स्कीम, बैक टू विलेज और बैक टू टाउन जैसे कई कार्यक्रम शामिल हैं। सिन्हा के कार्यकाल के दौरान ही यहां डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव भी हुए और उसमें लोगों की सक्रिय हिस्सेदारी रही, ज्यादातर स्थानीय राजनीतिक दलों ने इसमें हिस्सा लिया।
धीरे-धीरे बदले हालात
पांच अगस्त, 2019 को जब केंद्र ने अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाने का एलान किया, इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया और लद्दाख को अलग कर दिया गया तब से पूरा राज्य कमोबेश बंद की गिरफ्त में रहा, सभी बड़े नेताओं को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन उसके कुछ दिनों बाद वहां पहले फोन और फिर इंटरनेट सेवाएं शुरु की गईं। पहले उप राज्यपाल जी सी मर्मु को भेजा गया और फिर राजनीतिक समझदारी और प्रक्रिया के लिए अगस्त, 2020 में मनोज सिन्हा भेजे गए।
पिछले विधानसभा चुनावों के बाद जब किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो काफी मशक्कत के बाद राज्य में पीडीपी और बीजेपी ने सरकार बनाई और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृ्त्व में यह सरकार तब तक चली जब तक कि बीजेपी ने उससे समर्थन वापस नहीं ले लिया।
18 जून, 2018 से वहां राज्यपाल शासन लगा था। फिर नवम्बर 2018 में विधानसभा भंग कर दी गई। लेकिन विधानसभा चुनाव नहीं हुए। पिछले लोकसभा चुनावों में स्पष्ट और मजबूत बहुमत हासिल करने के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को खत्म करने का एलान संसद में कर दिया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया और लेफ्टिनेंट गवर्नर के मार्फत वहां केंद्र का शासन चल रहा है।
गुपकार गठबंधन
सरकार के इस एलान से एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को श्रीनगर में डॉ. फ़ारूक़ अब्दुल्ला के निवास पर सभी राजनीतिक दलों की बैठक हुई। डॉ. अब्दुल्ला का घर गुपकार रोड पर है, इसलिए उस बैठक में जो बयान जारी किया गया, उसे गुपकार डिक्लेरेशन कहा गया। इसमें जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायतता और विशेष दर्जे के लिए लड़ाई जारी रखने की बात कही गई थी।
उस बैठक में कांग्रेस, नेशनल कान्फ्रेंस, पीडीपी समेत कई प्रमुख पार्टियां मौजूद थीं। फिर 15 अक्टूबर 2020 को डॉ. अब्दुल्ला के घर पर एक और बैठक हुई तब इस बैठक में शामिल पार्टियों की भागीदारी को पीपुल्स अलांयस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन का नाम दिया गया। इन नेताओं के साथ ही सरकार बातचीत कर रही है।
विस्थापित हिंदुओं का मुद्दा
इस बैठक को लेकर जम्मू के नेताओं की नाराजगी यह है कि कोई भी केंद्र सरकार हो, हमेशा कश्मीर की समस्या पर ही ध्यान दिया जाता है और जम्मू के हितों की अनदेखी होती है। क्या इस बैठक में जम्मू से विस्थापित हिंदुओं की वापसी पर भी कोई बातचीत होगी, इसको लेकर भी अभी कुछ साफ नहीं है। सरकार कई और विकास कार्यक्रमों और पैकेज की घोषणा भी कर सकती है।
ढेर सारी उम्मीदें
इस पहली बैठक में ही सब कुछ तय हो जाएगा, इसकी उम्मीद तो नहीं की जानी चाहिए लेकिन यह बैठक अगली बातचीत के दरवाजे खोलेगी तो फिर जम्मू-कश्मीर की हवा में केसर सी महक जाग उठेगी।
प्रधानमंत्री मोदी को जोखिम भरे और चौंकाने वाले फैसले करने के लिए जाना जाता है और ऐसे फैसले ही एक मजबूत इमारत की नींव तैयार करते हैं। लेकिन जोखिम भरे फैसले के लिए हार के डर को दूर भगाना पड़ता है क्योंकि कहते हैं कि डर के आगे जीत है।
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