श्रीनगर की डल झील में राजनीतिक बर्फ पिघलने के संकेत मिलने लगे हैं। जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35ए को हटाने के क़रीब दो साल बाद केन्द्र सरकार फिर से राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश में है। क़रीब 68 साल पहले 23 जून 1953 को जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर में ही संदेहास्पद स्थितियों में निधन हो गया था। उनका नारा था -‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे’। मोदी सरकार ने 5 अगस्त 2019 को डॉ. मुखर्जी के उस स्वप्न को तो पूरा कर दिया, लेकिन ज़्यादातर लोगों का मानना है कि तब से जम्मू कश्मीर ना तो चैन की नींद सो पाया और ना ही उसके सपने पूरे होने का रास्ता आगे बढ़ा।
कश्मीर : क्या मोदी सरकार वाजपेयी के रास्ते पर चलेगी?
- विचार
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- 24 Jun, 2021

प्रधानमंत्री मोदी को लीक से हटकर और जोख़िम भरे फ़ैसले करने के लिए जाना जाता है और अक्सर वो आपको चौंकाते हैं जैसा उन्होंने 5 अगस्त 2019 को संसद में किया था, जब उनके गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर के लिए एक नई इबारत लिख दी थी। अब फिर वक़्त है एक ऐसी नई इबारत लिखने का, जिससे जम्मू कश्मीर का दिल्ली में बैठी सरकार और भारत के लोगों में भरोसा मज़बूत हो सके।
गुरुवार को दिल्ली में केन्द्र और जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ होने वाली बैठक में फिर से हाथ मिलाने की कोशिश होगी। गुपकार ग्रुप के नेता तैयार हो गए हैं और दो पूर्व मुख्यमंत्री फारुख़ अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के साथ लेफ्ट नेता तारीगामी भी इस बैठक में शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस, बीजेपी के अलावा भी कई पार्टियों के नेता होंगे यानी साफ़ है कि केन्द्र सरकार ने कोई ऐसा इशारा इन नेताओं को दिया है कि वो पहले क़दम के तौर पर सरकार पर भरोसा कर सकते हैं। जम्मू कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा देना और पुनर्सीमांकन बातचीत का मुद्दा हो सकता है, लेकिन इस बात की संभावना कम ही दिखती है कि सरकार धारा 370 की वापसी पर बातचीत फिर से शुरू करे।