सरकार का तर्क
उस समय वित्त मंत्रालय का काम अरुण जेटली देख रहे थे। उनका तर्क था कि भारतीय रिज़र्व बैंक दुनिया के सबसे अधिक कैपिटलाइज्ड केंद्रीय बैंकों में से एक है, यानी यह उन चुनिंदा बैंकों में शामिल है, जिनके पास सबसे ज़्यादा अतिरिक्त पैसे पड़े हुए हैं। यह पूरी दुनिया में स्वीकृत औसत रिज़र्व से ज़्यादा है।सरकार का तर्क था कि आर्थिक पूंजी ढाँचा यानी बैंक का रिज़र्व और उसमें से पैसे निकाल कर सरकार को देने का जो अनुपात है वह बहुत ही दकियानूसी, पुराना और एकतरफ़ा है. उसमें जोखिम का सही आकलन नहीं किया गया है और सरकार की रजामंदी भी नहीं है।
मालेगाम कमेटी
सरप्लस रिज़र्व का यह मामला इससे भी पुराना है। वाई. एच. मालेगाम की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 2013 में अपनी रपट में कहा था कि रिज़र्व बैंक को चाहिए कि वह अपनी परिसंपत्ति बढ़ाने के लिए और आपातकाल से निपटने के लिए फंड के लिए ज़रूरी पैसे रख कर पूरा पैसा केंद्र सरकार के दे दे, यानी इसे पूरा सरप्लस रिज़र्व ही दे देना चाहिए, क्योकि इसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।राकेश मोहन कमेटी
इसके पहले डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन की अगुआई में बनी कमेटी ने अपनी रपट इस पर दी थी। उस कमेटी ने केंद्रीय बैंक के सरप्लस रिज़र्व से पैसे निकाल कर केंद्र सरकार को देने की प्रवृत्ति को ख़तरनाक बताया था और उसके ख़िलाफ़ चेतावनी दी थी। उस समिति का भी यही कहना था कि इससे देश की मौद्रिक स्थिरता पर बुरा असर पड़ेगा।बिमल जालान कमेटी
केंद्रीय बैंक के पूर्व गर्वनर बिमल जालान की अगुआई में 6 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई थी और उसे इस पर सुझाव देने को कहा गया था। बिमल जालान कमेटी ने भी यही कहा था कि सरप्लस रिज़र्व से पैसे निकाल कर केंद्र सरकार को दिए जाएँ। लेकिन इस कमेटी में राकेश मोहन भी थे और उन्होंने पहले की तरह इस बार भी इसका विरोध किया था।सुब्बाराव का विरोध
बीते साल रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी इसका यह कह कर विरोध किया था कि यह रिज़र्व बैंक पर सरकार का 'छापा मारना' है। उन्होंने कहा कि 'सरकार परेशान है, हमें सरप्लस रिज़र्व बैंक से पैसे निकालने के बारे में काफ़ी चौकन्ना रहना होगा।'“
दुनिया में कहीं भी, कोई भी सरकार केंद्रीय बैक के बैलंस शीट पर छापा मारे, यह अच्छी बात नहीं है। यह दिखाता है कि सरकार एकदम परेशान है।
डी. सुब्बाराव, पूर्व गवर्नर, रिज़र्व बैंक
उर्जित पटेल का इस्तीफ़ा
रिज़र्व बैंक के गवर्नर पद पर रहते हुए ही उर्जित पटेल ने सरप्लस रिज़र्व से पैसे देने का ज़ोरदार विरोध किया था। इस्तीफ़ा देते हुए उन्होंने इसकी वजह निजी कारण बताया था और वित्त मंत्रालय ने भी उनके कामकाज की तारीफ की थी, पर यह साफ़ था कि वह सरप्लस रिज़र्व के मुद्दे पर ही पद से हट रहे थे। उन्होंने इस्तीफ़े में केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता पर ज़ोर दिया था और यह भी कहा था कि देश की मौद्रिक स्थिरता के मामले से जुड़े फ़ैसले रिज़र्व बैंक को ही करने चाहिए।उर्जित पटेल के कहने का मतलब साफ़ था, सरप्लस रिज़र्व से पैसे निकालने पर फ़ैसला केंद्र सरकार नहीं, रिज़र्व बैंक करे। इसके पहले वह सरप्लस पैसे सरकार को देने का विरोध यह कह कर चुके थे कि इससे मौद्रिक स्थिरता प्रभावित होगी।
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