एक दिन पहले ही खुदरा महंगाई दर बढ़ने की ख़बर आई थी और अब थोक महंगाई दर बढ़ी है। नवंबर महीने में यह थोक महंगाई दर इतनी ज़्यादा रही कि यह 16 सालों में सबसे ज़्यादा है। मंगलवार को सरकार ने यह आँकड़ा जारी किया है। खाने के तेल और डीजल-पेट्रोल के महंगे होने के बीच अब थोक महंगाई की ख़बर चिंता पैदा करने वाली है। यह आम आदमी के लिए तो है ही और सरकार के लिए भी। सरकार के लिए इसलिए कि अगले कुछ महीनों में ही पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। विपक्षी दल कांग्रेस ने महंगाई को मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। जयपुर में कांग्रेस ने 'महंगाई हटाओ महारैली' कर अपनी चुनावी रणनीति साफ़ कर दी है।
थोक महंगाई अक्टूबर में 12.54 फ़ीसदी थी जो नवंबर में बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गई। इस साल अप्रैल से शुरू होकर लगातार आठ महीने से थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति यानी महंगाई दहाई अंक में बनी हुई है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि मुद्रास्फीति की उच्च दर मुख्य रूप से खनिज तेलों, बुनियादी धातुओं, कच्चे पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, रसायन उत्पादों और खाद्य पदार्थों की क़ीमतों में वृद्धि के कारण है।
ईंधन और बिजली की कीमतें 39.81 प्रतिशत बढ़ीं जबकि अक्टूबर महीने में यह 37.18 प्रतिशत बढ़ी थीं। विनिर्मित उत्पाद की कीमतों में 11.92 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पिछले महीने में यह 12.04 प्रतिशत थी।
आर्थिक विश्लेषक इन उत्पादों के महंगे होने का कारण कोरोना बाद के हालात को बताते हैं।दरअसल, हुआ यह है कि पिछले साल कोरोना के कारण तगड़े झटके और लॉकडाउन के बाद से दुनिया भर में कारोबार और बाक़ी कामकाज पहले धीरे धीरे और अब तेज़ी से वापस पटरी पर लौटता दिख रहा है।
इसी वजह से कोयले, तेल और गैस की मांग भी बढ़ रही है। दूसरी तरफ़ सप्लाई लाइन उतनी तेजी से पटरी पर लौटी नहीं है। कच्चा माल और तैयार माल फैक्टरियों तक और बाज़ार तक पहुँचने में जैसी बाधाएँ आ रही हैं वैसी ही मुश्किलें तेल और गैस के मामले में भी हैं।
अपनी राय बतायें