टाटा समूह में होली की रंगत दोगुनी हो गई है। होली से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने सायरस मिस्री को हटाए जाने के मामले में टाटा सन्स के पक्ष में फैसला सुना दिया है। अदालत ने नैशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के उस फ़ैसले को उलट दिया है जिसमें मिस्त्री को वापस टाटा संस का चेयरमैन बनाने का निर्देश दिया गया था। टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा और टाटा सन्स की मौजूदा मैनेजमेंट टीम के लिए यह बहुत बड़ी जीत है।
टाटा सन्स की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 10 जनवरी को एनक्लैट यानी कंपनी मामलों के अपीलेट ट्रिब्यूनल के फ़ैसले पर रोक लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे के साथ जस्टिस ए. एस. बापन्ना और वी. रामसुब्रह्मण्यन की बेंच ने 17 दिसंबर को इस मामले पर फैसला रिजर्व कर लिया था, जो आज सुनाया गया।
अदालत ने इस मामले में टाटा समूह की तरफ से जारी सभी याचिकाएँ मंजूर कर लीं और माना कि साइरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन और एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर के पद से हटाने का फैसला सही था।
क्या है मामला?
मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने कहा कि इस मामले से जुड़े सभी कानूनी सवालों के जवाब टाटा समूह के पक्ष में हैं और टाटा समूह की सभी अर्जियाँ मंजूर की जाती हैं।
इससे पहले मामले की आखिरी सुनवाई के दिन यानी 17 दिसंबर को शापुरजी पल्लोनजी समूह यानी एसपी ग्रुप ने अदालत में कहा था कि अक्टूबर 2016 में टाटा सन्स की बोर्ड मीटिंग में सायरस मिस्री को हटाए जाने की कार्रवाई एकदम एक खूनी खेल की तरह थी, जिसमें उनपर घात लगाकर हमला किया गया था। उनकी तरफ से यह दलील भी दी गई कि टाटा ग्रुप का यह काम कॉरपोरेट गवर्नेंस के नियमों के ख़िलाफ़ था और इससे टाटा सन्स के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन की भी अवहेलना होती है।
जवाब में टाटा सन्स की तरफ से कहा गया था कि इस फैसले के पीछे कोई भी ग़लत काम नहीं हुआ और बोर्ड को ऐसा फैसला करने का पूरा अख्तियार था।
विवाद क्या है?
एनक्लैट ने 18 दिसंबर 2019 को साइरस मिस्त्री की याचिका मंजूर करते हुए फ़ैसला दिया था कि टाटा समूह से उन्हें हटाए जाने का फ़ैसला ग़लत था। ट्राइब्युनल ने टाटा समूह को निर्देश दिया था कि मिस्त्री को वापस टाटा सन्स का चेयरमैन बनाया जाए। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ टाटा सन्स सुप्रीम कोर्ट गया जहाँ जनवरी 2020 में उसे स्टे मिल गया था।
लंबी तलाश के बाद रतन टाटा की जगह साइरस मिस्त्री को 2102 में टाटा सन्स का चेयरमैन बनाया गया, था लेकिन चार साल बाद ही अचानक एक दिन उन्हें हटाने का फैसला हुआ और उनसे इस्तीफा माँग लिया गया।
कॉरपोरेट लड़ाई
इसके बाद से ही इस मसले पर कानूनी लड़ाई भी चल रही थी और दोनों पक्षों से एक दूसरे पर तरह तरह के इल्जाम लगाने का सिलसिला भी। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उम्मीद है कि भारतीय कॉर्पोरेट जगत के सबसे विवादास्पद अध्यायों में से एक अब खत्म होगा।इसके साथ ही भारत के सबसे इज्जतदार कारोबारी घराने पर नियंत्रण को लेकर चल रही छीछालेदर भी खत्म होने के आसार हैं। सायरस मिस्त्री और उनके परिवार के पास अब भी टाटा संस में 18.4 प्रतिशत शेयर हैं। टाटा संस टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है यानी इस ग्रुप की सभी कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी और उनका नियंत्रण टाटा सन्स के पास ही है। इसीलिए टाटा सन्स के चेयरमैन की कुर्सी का इतना महत्व है।
मिस्त्री परिवार ने अदालत में यह माँग भी की थी कि उनकी हिस्सेदारी के अनुपात में उम्हें टाटा संस के बोर्ड में डायरेक्टर के पद मिलने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने कहा कि वे इस मामले के ब्योरे में नहीं जाएगी और यह भी तय नहीं करेगी कि क्या किसी को कोई मुआवजा मिलना चाहिए।
एसपी ग्रुप की हिस्सेदारी
टाटा सन्स में शापुरजी पल्लोनजी परिवार के शेयरों की कितनी कीमत हो, इसका फ़ैसला अदालत ने दोनों पक्षों पर ही छोड़ दिया है। अदालत ने कहा कि दोनों पक्ष चाहें तो इस मसले पर कानूनी रास्ता भी अपना सकते हैं। हालांकि एसपी ग्रुप की तरफ से पहले सुप्रीम कोर्ट में कहा जा चुका है कि वो टाटा सन्स में अपनी हिस्सेदारी बेचने को तैयार है बशर्ते इस मामले का जल्दी हल हो जाए और वो भी न्यायसंगत और सम्मानजनक हो।
ऐसी खबरें आई थीं कि टाटा सन्स ने उनकी हिस्सेदारी का दाम 70 से 80 हज़ार करोड़ रुपए के बीच लगाया था, जबकि मिस्त्री परिवार का दावा था कि उनके शेयरों का सही दाम 1.75 लाख करोड़ रुपए होना चाहिए। बाज़ार का हाल देखें तो तब से अब तक टाटा समूह के करीब करीब सभी शेयरों के दाम में तगड़ा उछाल आया है। मतलब साफ है कि आज की तारीख में इस हिस्सेदारी का भाव और भी बढ़ चुका होगा।
लेकिन लंबी लड़ाई के बाद अब लगता है कि इस कारोबारी झगड़े का अंत नज़दीक है।
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