भारत की अर्थव्यवस्था की हालत ख़राब क्यों है? ख़पत लगातार कम क्यों बनी हुई है? क्या लोगों ने ज़रूरत की चीजों में ही कटौती करनी शुरू कर दी है? क्या ऐसा इस वजह से नहीं है कि लोगों की आमदनी उतनी नहीं बढ़ी है? कम से कम एक रिपोर्ट ने तो ऐसे ही संकेत दिए हैं। निजी क्षेत्र की कंपनियों का मुनाफ़ा भले ही 15 साल के रिकॉर्ड स्तर पर है, लेकिन इन कंपनियों में काम करने वाले लोगों की सैलरी वैसी नहीं बढ़ी है। बढ़ी भी है तो नाम मात्र की। यानी जितनी महंगाई बढ़ी है उसके अनुरूप भी सैलरी नहीं बढ़ पाई है। ऐसे में यह समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं होना चाहिए कि ख़पत आख़िर क्यों नहीं बढ़ रही है।
निजी क्षेत्र का मुनाफ़ा 15 साल में सबसे ज़्यादा, पर तनख्वाह नहीं बढ़ रही: रिपोर्ट
- अर्थतंत्र
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- 12 Dec, 2024
जीडीपी वृद्धि दर कम होकर 5.4 प्रतिशत पर आने की मुख्य वजह विनिर्माण और खनन क्षेत्र में सुस्ती है। लेकिन इसके साथ-साथ निजी खपत के कम होने से भी आर्थिक विकास प्रभावित हुआ है। जानिए, कंपनियों द्वारा सैलरी न बढ़ाये जाने का क्या नुक़सान हुआ।

इससे सिर्फ़ लोगों को ही मुश्किलें नहीं आईं, इससे चिंतित सरकार भी है। इस साल जुलाई-सितंबर में आर्थिक विकास दर में भारी गिरावट के साथ 5.4 प्रतिशत पर आ जाने से नीति निर्माताओं के बीच यह चिंता पैदा हो गई है कि पिछले चार वर्षों में मुनाफे में 4 गुना वृद्धि के बावजूद कॉर्पोरेट क्षेत्र में लोगों की आय में कम वृद्धि हुई। और यह मांग में कमी के पीछे के कारणों में से एक है। जाहिर है मांग कम होगी तो निर्माण पर असर पड़ेगा और आख़िरकार अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।