क्या कहा था वित्त मंत्री ने?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा था, 'गाड़ी और उसके कल पुर्जे बनाने वाले उद्योग पर बीएस-6 (भारत स्टेज-6) का असर पड़ा है। उन पर नई सहस्राब्दी में जन्म लेने वाली पीढ़ी की मानसिकता का भी असर पड़ा है जो गाड़ी ख़रीदने के बजाय ओला और उबर को तरजीह देती है।'
क्या सचमुच?
इन कंपनियों के कारोबार के अध्ययन से जो तसवीर उभरती है, वह वित्त मंत्री के दावे को ग़लत ठहराती है। इन दो कंपनियों के कामकाज में वृद्धि पहले से कम हुई है। साल 2016 में जहाँ इनका कारोबार 90 प्रतिशत बढ़ा था, साल 2017 में सिर्फ़ 57 प्रतिशत की वृद्ध देखी गई। इसके बाद यानी 2018 में ओला-उबर का कारोबार सिर्फ़ 20 प्रतिशत बढ़ा।
ओला-उबर वृद्धि दर कम
इसके साथ ही इन दो कंपनियों से जो गाड़ियाँ जुड़ी हैं, उनकी संख्या में भी लगातार गिरावट ही देखी गई है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। महाराष्ट्र में साल 2017-18 में ओला और उबर से 66,683 गाड़ियाँ जुड़ीं तो साल 2018-19 में सिर्फ़ 24,386 गाड़ियाँ ही इन दो कंपनियों से जुड़ीं।
राइड्स वृद्धि दर में गिरावट
पिछले छह महीने के डेली राइड्स यानी लोग रोज़ाना जो गाड़ी बुक करते हैं, उसमें सिर्फ़ 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इन 6 महीनों में डेरी राइड्स 35 लाख से बढ़ कर 36.50 लाख हो गई है। इस वजह से लोगों को पहले से अधिक इंतजार करना पड़ता है और उन्हें पैसे भी अधिक देने होते हैं। पहले जहाँ 2-4 मिनट इंतजार करना होता था, अब 12-15 मिनट इंतजार करना होता है। नॉन-पीक आवर्स यानी सबसे व्यस्त समय को छोड़ कर बाकी समय राइड्स बुक करने से उन्हें पहले 12 से 15 प्रतिशत अधिक चुकाना पडता है।
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जिस समय ओला और उबर बहुत ही अच्छा काम कर रही थीं, उस दौरान ऑटो उद्योग भी अच्छा कर रहा था। जिस समय ऑटो उद्योग मंदी की चपेट में आया, उबर और ओला का कामकाज भी गिरने लगा।
शशांक श्रीवास्तव, कार्यकारी निदेशक (विपणन व बिक्री), मारुति सुजु़की इंडिया
मारुति सुज़ुकी के निदेशक का मानना है कि भारत में 46 प्रतिशत गाड़ियाँ वे लोग खरीदते हैं जो अपने जीवन की पहली गाड़ी खरीद रहे होते हैं। ऐसे लोग रोज़ दफ्तर जाने के लिए भले ही ओला और उबर का इस्तेमाल करते हों, पर हफ़्ते के अंत में परिवार के साथ बाहर वे अपनी गाड़ी से ही जाते हैं।
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