सवाल है कि नेगेटिव ग्रोथ क्या होती है और उसका असर क्या है, ख़ासकर भारत के संदर्भ में? लेकिन उसपर चलें उससे पहले यह जानना ज़रूरी है कि जीडीपी ग्रोथ क्या होती है। यही बहुत बड़ा सवाल है। बहुत से लोग जानना चाहते हैं कि इसके बढ़ने को लेकर इतना हल्ला क्यों मचा रहता है। और यह तब की बात थी जब कम से कम इतना तो तय था कि जीडीपी बढ़ती रहती है।1990 के पहले तीन साढ़े तीन प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ती थी। इसे हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ कहा जाता था। प्रोफ़ेसर राज कृष्णा ने यह नामकरण कर दिया था और तब किसी ने गंभीर सवाल भी नहीं उठाया। हालाँकि अभी हाल में इतिहास और अर्थशास्त्र पर समान अधिकार रखनेवाले कुछ पुनरुत्थानवादी विद्वानों ने इस अवधारणा पर सवाल उठा दिए हैं।
जीडीपी का चक्का उल्टा घूमा तो कैसे बनेगी पाँच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी?
- अर्थतंत्र
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- आलोक जोशी
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- 28 Aug, 2020
अगर देश की जीडीपी में तेज़ गिरावट आई तो उसका आम इंसान की ज़िंदगी पर क्या फ़र्क पड़ेगा? भारत को फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर यानी पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने का क्या होगा और इस हालत से उबरने का रास्ता क्या है? आम आदमी की ज़िंदगी पर जीडीपी गिरने का कोई असर सीधे नहीं पड़ता। बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि आम आदमी की ज़िंदगी में आ चुकी दुश्वारियों को ही जीडीपी का आँकड़ा गिरावट के तौर पर सामने रखता है।
