देश की लगातार फिसलती अर्थव्यवस्था को रोकने के लिए कोई कारगर कदम उठाने में नाकाम नरेंद्र मोदी सरकार के ख़िलाफ़ अब उद्योगपति खुल कर बोलने लगे हैं। मोटे तौर पर राजनीति से दूर रहने वाले या सत्तारूढ़ दल से फ़ायदा उठाने की जुगत में चुपचाप रहने वाला कॉरपोरेट जगत अब ऊब चुका है, ऐसा लगने लगा है। इसे इससे समझा जा सकता है कि बजाज ऑटो के अध्यक्ष राहुल बजाज ने केंद्र सरकार की तीखी आलोचना कर दी है।
कंपनी की 12वीं सालाना आम बैठक में शिरकत करते हुए बजाज ने जो कुछ कहा वह नया भले ही न हो लेकिन चौंकाने वाला ज़रूर है। चौंकाने वाला इसलिए कि उन्होंने सरकार की आलोचना करने की हिम्मत दिखाई। बजाज ने कहा, 'सरकार चाहे जो कुछ कहे, सच यह है कि बीते तीन साल से लगातार विकास कम हो रहा है। सरकार यह कहे या न कहे, पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने यह साफ़ संकेत दे दिया है कि पिछले तीन-चार साल में विकास की दर में कमी आई है। किसी भी सरकार की तरह ये लोग भी खुशनुमा चेहरा दिखा सकते हैं, पर जो सच है वह है।'
बजाज ने इसे निवेश और माँग से जोड़ कर देखा, जो किसी भी अर्थव्यवस्था के सामान्य इंडिकेटर यानी सूचक होते हैं।
“
माँग नहीं है, निजी निवेश नहीं है, ऐसे में विकास कहाँ से आएगा? यह आकाश से तो गिरता नहीं है। ऑटो उद्योग बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है। कार, वाणिज्यिक गाड़ियाँ, दोपहिया वाहन की बिक्री बहुत ही ख़राब स्थिति में है।
राहुल बजाज, अध्यक्ष, बजाज ऑटो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक ओर
5 साल में देश की अर्थव्यवस्था को 5 खरब डॉलर पर ले जाने की बात करती हैं, दूसरी ओर बीते 50 साल से उद्योग जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला 81 साल का एक उद्योगपति पूछता है कि विकास क्या आकाश से गिरेगा? यह अपने आप में कई दूसरे सवाल खड़े कर देता है।
राहुल बजाज ने यह बात ऐसे समय में कही है जब मारुति सुज़ुकी, टाटा मोटर्स, होन्डा, महिंद्रा एंड महिंद्रा, रेनो, निसन, स्कोडा और अशोक लीलैंड जैसी कंपनियाँ बीच-बीच में कुछ दिनों के लिए उत्पादन बंद कर रही हैं। वे अपना उत्पादन कम कर रही हैं। इसके बाद उनके पास पहले से ही इतनी अनबिकी गाड़ियाँ पड़ी हुई हैं कि वे परेशान हैं, ख़रीदार नहीं मिल रहे हैं।
सवाल यह उठता है कि ऐसे समय
जब खपत कम हो रही हो, माँग कम हो रही हो, निवेश कम हो रहा हो, बेरोज़गारी बढ़ रही है, क्या उद्योगपतियों को चुप रहना चाहिए? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार को ऐसे समय अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए कुछ नहीं करना चाहिए? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि
बजट में ऐसे कुछ नहीं है जिससे उद्योगपतियों को थोड़ी भी उम्मीद बंधती।
10 लाख नौकरियाँ गईं
अभी कुछ दिन पहले ही रिपोर्टआई थी कि गाड़ियों के कल-पुर्जे बनाने वाली कंपनियों में क़रीब 10 लाख लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं। यानी एक झटके में ही वे बेरोज़गार हो गए।पिछले 2 साल में 2000 करोड़ का नुक़सान
इसी साल मई महीने में ही ख़बर आई थी कि मोटरगाड़ी उद्योग की हालत इतनी बुरी है कि पिछले दो साल में गाड़ी बेचने वाले सेक्टर को 2,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ। इस दौरान 300 से ज़्यादा डीलरों को अपना कामकाज बंद कर देना पड़ा था।
'इकोनॉमिक टाइम्स' की ख़बर के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान निसान मोटर ने 38 तो हुंदे ने 23 डीलर हटा दिए। होंडा, मारुति, महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स के डीलर भी कामकाज समेटने पर मजबूर हुए। मोटरगाड़ी बिक्री में गिरावट से यह स्पष्ट होता है कि पूरे कार उद्योग पर संकट है। गाड़ी कम बिकने का मतलब है कि कम गाड़ियाँ बनाई गई हैं, यानी कम उत्पादन हुआ है। कम उत्पादन का मतलब है कि ऑटो सेक्टर में मंदी है।
मोटरगाड़ी बिक्री में कमी से यह संकेत मिलता है कि लोगों के पास गाड़ी खरीदने लायक पैसे नहीं है, यानी उनकी क्रय शक्ति घटी है।
इस उद्योग से जुड़े लोग कहते हैं कि यह क्षेत्र इस तरह के संकट में है जैसा पहले कभी नहीं रहा। हालाँकि दूसरे सेक्टर की भी स्थिति ख़राब है। उत्पादन गिरता जा रहा है और नौकरियाँ कम होती जा रही हैं।
अपनी राय बतायें