स्पेन का सबसे बुरा हाल
दक्षिण यूरोप के देशों की स्थिति बदतर है। इसमें सबसे ज़्यादा बुरा हाल स्पेन का है, जहां की अर्थव्यवस्था 18.5 प्रतिशत सिकुड़ी है। गुरुवार को जर्मनी ने कहा कि उसके कारोबार में पिछली तिमाही की तुलना में इस तिमाही में 10.1 प्रतिशत की गिरावट आई है।फ्रांस
फ्रांस की अर्थव्यवस्था में 13.8 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन वहाँ लॉकडाउन ख़त्म होने और लोगों के क्वरेन्टाइन से बाहर निकलने के बाद आर्थिक गतिविधियाँ थोड़ा-बहुत शुरू हुई हैं। सरकार का कहना है कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही है।इटली
लॉकडाउन की वजह से इटली के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 12.4 प्रतिशत का कमी हो चुकी है। हालांकि सरकारी हस्तक्षेप और मदद से अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है, पर पर्यटन, सेवा क्षेत्र और उपभोक्ता खर्च में तेज़ी अभी भी नहीं आई है।अमेरिकी अर्थव्यवस्था 32 प्रतिशत सिकुड़ी
अमेरिका की स्थिति तो और बदतर है। वहां 1940 में आई महा मंदी के बाद से अब तक की सबसे बुरी आर्थिक स्थिति है। वाणिज्यिक विभाग ने गुरुवार को कहा कि पिछली तिमाही के दौरान जीडीपी में 9.5 प्रतिशत की कमी आई।दूसरी छमाही के अमेरिकी कारोबार में 32.9 प्रतिशत की कमी मानी जाएगी। यह 1947 के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है। उस समय जीडीपी में 34.5 प्रतिशत की कमी हुई थी, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए रिकॉर्ड है।
भारत पर असर
भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा, इसे इससे समझा जा सकता है कि देश के सबसे अहम 8 कोर सेक्टर की दुर्गति हो चुकी है। मशहूर व्यावसायिक पत्रिका 'द इकोनॉमिस्ट' ने कहा है कि अप्रैल-जून की तिमाही में भारत के इन 8 कोर सेक्टर के कारोबार में 24.6 प्रतिशत की कमी हुई। इसी दौरान पिछले साल कोर सेक्टर में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की गई थी।
जिस तरह फ्रांस और दूसरी यूरोपीय सरकारों ने हस्तक्षेप किया और उद्योग जगत को कई तरह की रियायतें दीं और पैसे दिए, जिससे उनकी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटने लगी है, क्या भारत में वैसा कुछ होगा। यह सवाल लाजिमी है, पर इसका उत्तर बहुत सकारात्मक नहीं है।
भारत सरकार ने जो 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का एलान किया, उससे मांग निकलेगी, यह उम्मीद नहीं की जा सकती है। इस पैसे का बड़ा हिस्सा कर्ज की गारंटी के रूप में है। लेकिन वह तब इस्तेमाल होगा जब लोग कर्ज लेने जाएंगे। उसकी ज़रूरत तब होगी जब मांग निकलेगी।
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