जब भारत 1947 में आज़ाद हुआ तब भारत में बनने वाली, बिकने वाली सारी चीज़ों की कीमत और देश में होनेवाला सारा लेनदेन जोड़कर होता था 2,70,000 करोड़ रुपए। आज देश में चौदह ऐसी कंपनियाँ हैं जिनका मार्केट कैप यानी उनके शेयरों की कुल क़ीमत इस रकम से ज्यादा है।

‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे के साथ अचानक ‘सबका प्रयास’ जोड़ने की नौबत क्यों आ गई? क्या अब तक देश के लोग प्रयास नहीं कर रहे थे? क्या 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद यह बात बार- बार नहीं कही गई कि अब देश की प्रगति व्यक्तिगत उद्यम का नतीजा है?
इस लिस्ट के टॉप पर एक ही ऐसी कंपनी है जिसका मार्केट कैप 13 लाख 82 हज़ार करोड़ से ऊपर है। यानी एक अकेली कंपनी उस वक्त के भारत की पूरी अर्थव्यवस्था से पाँच गुना हो चुकी है।
पूरे देश की अर्थव्यवस्था का आकार तो इस वक़्त करीब 150 लाख करोड़ रुपए हो चुका है। डेढ़ सौ ट्रिलियन। आज़ादी के वक्त भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सारी अर्थव्यवस्था का महज तीन परसेंट थी।
हालांकि आज भी दुनिया की जीडीपी में भारत की हिस्सेदारी सवा तीन परसेंट से ऊपर नहीं है, लेकिन फिर भी भारत दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। फ्रांस और इंग्लैंड से ऊपर।