बाज़ार में माल कम हो और मांग ज़्यादा तो क़ीमतें बढ़ती हैं। मांग कम हो तो बाज़ार में माल सप्लाई करनेवालों का कारोबार मुश्किल में आ जाता है। बहुत से कारखानों के लिए कम माल बनाने पर लागत निकालना ही टेढ़ी खीर हो जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि वो लोग माल बनाना बंद करते हैं, कम करते हैं या छोटे कारोबार तो खुद ही बंद होने लगते हैं। हालात ज्यादा बिगड़े तो यही पूरे देश में मंदी का कारण बन जाता है। मुसीबत और बड़ी हो जाती है जब महंगाई और मंदी का खतरा एक साथ खड़ा हो जाए। यानी एक तरफ तो काम धंधे बंद हो रहे हों या न चल पा रहे हों और दूसरी तरफ महंगाई सुरसा की तरह मुंह फाड़ रही हो। इसी को अंग्रेजी में स्टैगफ्लेशन कहा जाता है। स्टैगनेशन यानी ठहराव और इनफ्लेशन यानी महंगाई की जुगलबंदी।

अमेरिका, ब्रिटेन, चीन सहित दुनिया भर में आर्थिक हालात बेहद ख़राब होने के संकेत मिल रहे हैं तो क्या भारत इससे बच बाएगा? यदि भारत को इससे मुकाबला करना है तो इसे क्या करने की ज़रूरत है?
आज के दिन यह बात करने की वजह यह है कि पिछले कई महीनों से दुनिया के अलग अलग हिस्सों में इसी जुगलबंदी की आशंकाएं पैदा होती दिख रही हैं और लगातार यह आशंका बढ़ती जा रही है कि दुनिया एक गंभीर आर्थिक मंदी की चपेट में आ रही है। इस आशंका की सबसे बड़ी वजह तो कोरोना के बाद दुनिया भर में लगे लॉकडाउन और उसकी वजह से पूरी दुनिया में कारोबार के तमाम नट-बोल्ट ढीले हो जाना बताया जाता है। अब यूक्रेन पर रूस का हमला भी इस बीमारी को और बढ़ाने में भूमिका निभा रहा है। ताज़ा अनुमान है कि इस लड़ाई की कीमत यानी इसकी वजह से होने वाला आर्थिक नुकसान लगभग दो लाख अस्सी हज़ार करोड़ डॉलर होगा।