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भारत की खुदरा मुद्रास्फीति की दर पिछले महीने की तुलना में कम हो गई है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार दिसंबर में खुदरा मुद्रास्फीति मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी के कारण एक साल के निचले स्तर 5.72 प्रतिशत पर आ गई है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने गुरुवार को यह आँकड़ा जारी किया है। यह नवंबर में 5.88 प्रतिशत थी।
दिसंबर महीने में यह लगातार दूसरी बार है जब महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय सीमा 2-6% के भीतर रही है। सरकार ने केंद्रीय बैंक को मार्च 2026 को समाप्त होने वाली पांच साल की अवधि के लिए खुदरा मुद्रास्फीति को 2 प्रतिशत के मार्जिन के साथ 4 प्रतिशत पर बनाए रखने का लक्ष्य रखा है।
बहरहाल, खुदरा मुद्रास्फीति मुख्य रूप से खाद्य और पेय पदार्थों की मुद्रास्फीति दर में गिरावट के कारण नरम हुई है। खाद्य मुद्रास्फीति दिसंबर में 4.19% पर आ गई, जबकि पिछले महीने यह 4.67% थी।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई आधारित खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर 2022 में 6.77 प्रतिशत और नवंबर में 5.88 प्रतिशत थी।
सितंबर महीने की खुदरा महंगाई का जब आँकड़ा आया था तो यह पाँच महीने के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गयी थी। तब खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 7.41 प्रतिशत हो गई थी जो अप्रैल के बाद से सबसे अधिक थी।
अगस्त महीने में यह महंगाई 7 प्रतिशत थी। उससे पहले के तीन महीनों में महंगाई कम होती हुई दिखी थी। तब सरकार ने दावा किया था कि महंगाई को धीरे-धीरे काबू करने का प्रयास किया जा रहा है और उसे तय सीमा के अंदर ला दिया जाएगा।
तब आरबीआई ने महंगाई को काबू में करने के लिए कई क़दम उठाए थे। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी ने सितंबर महीने मे रेपो रेट को 50 बेसिस प्वाइंट्स बढ़ा दिया था। इसके साथ ही रेपो रेट बढ़कर 5.90 प्रतिशत हो गया था।
सितंबर महीने से पहले अगस्त महीने में भी रेपो दर को 50 आधार अंक यानी बीपीएस बढ़ाकर 5.40 प्रतिशत कर दिया गया था।
आरबीआई जिस रेट पर दूसरे बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहा जाता है। रेपो रेट कम होने का मतलब होता है कि बैंक से मिलने वाले सभी तरह के लोन सस्ते हो जाते हैं जबकि रेपो रेट ज्यादा होने का मतलब है कि लोन चुकाने के लिए आपको ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे।
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