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ऐसी आर्थिक तरक्की? महंगे सामान की मांग बढ़ी, सस्ते वाले की घटी

30 हज़ार रुपये के ज़्यादा के फोन की बिक्री बढ़ी है तो उससे कम क़ीमत के फोन की बिक्री घटी है। ऐसी ही स्थिति कारों को लेकर है और महंगी कारें ज़्यादा बिक रही हैं। प्रीमियम और लग्जरी मकान ज्यादा खरीदे जा रहे हैं। तेल, साबुन, बिस्किट, टुथपेस्ट जैसे एफ़एमसीजी की भी वैसी ही स्थिति है। शहरों में तो इसने रफ़्तार पकड़ ली, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह धीमा है। कहा जा रहा है कि ख़राब मानसून के कारण इसपर ऐसा ही असर आगे भी रहेगा। तो सवाल है कि इसका संकेत क्या है? क्या अमीरों और शहरों में रहने वालों की आय कोविड के पूर्व काल की तरह हो गई है या फिर ज़्यादा हो रही है और गांवों में आय उस तरह नहीं बढ़ी है या फिर कम हुई है?

कोविड महामारी के बाद के समय की जो रिपोर्टें आती रही हैं उसमें आय के असमान वितरण की कहानियाँ साफ़ दिखती हैं। अमीरी गरीबी के आँकड़े भी यही बताते रहे हैं। अब उपभोक्ता सामान की बिक्री या इस सेगमेंट में जो वृद्धि दिखती है उसका भी कुछ इसी तरह का संकेत मिलता है। लक्जरी अपार्टमेंट, फैंसी कारें और महंगे उपभोक्ता सामान की ख़पत बढ़ रही है। बढ़ती मांग के बीच मॉल और रेस्तरां भरे हुए हैं जबकि होटल के कमरे पहले से कहीं अधिक महंगे हैं। एफएमसीजी कंपनियाँ बिस्कुट, साबुन, शैंपू जैसे सामान उतना नहीं बेच पा रही हैं जितना वे चाहती हैं। 

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एफएमसीजी सामान की स्थिति शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग है। देश भर में एफएमसीजी का 40 फ़ीसदी बाज़ार ग्रामीण क्षेत्रों में है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई और अनियमित मानसून के कारण एफएमसीजी सामान की मांग में गिरावट आई है। जबकि शहरों में स्थिति इसके उलट है। शहरी आय अधिक लचीली है और वेतन बेहतर है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार साल-दर-साल जुलाई-सितंबर 2023 में ग्रामीण एफएमसीजी बिक्री क़रीब 6% बढ़ी, जबकि शहरी बिक्री 8% की वृद्धि हुई। महामारी के दौरान इसके उलट स्थिति थी। गाँवों में एफएमसीजी का जबर्दस्त विस्तार हुआ था, जबकि शहरों में बिक्री सिमटी थी।

किराने के सामान और घरेलू उत्पादों के उपभोग में भी ऐसा ही पैटर्न है। शहरी बाजारों में सौंदर्य प्रसाधन जैसे महंगे सामान की खूब बिक्री है तो ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी बिक्री कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता या तो सस्ते उत्पादों की ओर रुख कर रहे हैं या स्थानीय ब्रांडों के सामान खरीद रहे हैं। ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में छोटी और क्षेत्रीय कंपनियों के उत्पादों की भारी मांग है, खासकर डिटर्जेंट, साबुन, स्नैक्स और चाय जैसे सामानों के मामले में। हालाँकि, समग्र एफएमसीजी माँग बढ़ रही है, लेकिन यह धीमी गति से बढ़ रही है।

स्मार्टफोन के बाजार में दो तरह के आँकड़े दिखते हैं। 2022 के बाद से इस बाजार में गिरावट आ रही है। लेकिन यदि 30,000 रुपये से अधिक कीमत वाले स्मार्टफोन का आकलन किया जाए तो इसका बाज़ार बढ़ रहा है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल सितंबर) में, 30,000 रुपये से अधिक मूल्य बैंड में वॉल्यूम में साल-दर-साल 65% की वृद्धि हुई है। जबकि इसी अवधि में 10,000-30,000 रुपये की कीमत वाले फोन में 15% की गिरावट आई है। हालाँकि दक्षिण भारत की एक प्रमुख सेलफोन रिटेल श्रृंखला संगीता मोबाइल्स के निदेशक चंदू रेड्डी का कहना है कि कम आय वाले भी अब प्रीमियम स्मार्टफोन पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये लंबे समय तक चलेंगे। इसकी बढ़ोतरी में आसान ईएमआई का भी हाथ है।
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2023 में भारत के शीर्ष शहरों में 500,000 से अधिक घर बिकने की संभावना है। यह एक दशक में सबसे अधिक होगा। अंग्रेजी अख़बार ने ख़बर दी है कि हालाँकि, कुल बिक्री में लक्जरी घरों की हिस्सेदारी बढ़ रही है, बजट और मध्यम आय वाले आवास की हिस्सेदारी कोविड के बाद गिर रही है। सीबीआरई के अनुसार, 2021 की तीसरी तिमाही में कुल बिक्री में किफायती आवास की हिस्सेदारी 26% थी, मध्य खंड की 50% और लक्जरी और प्रीमियम आवास की 22% थी। 2023 की तीसरी तिमाही में किफायती आवास की हिस्सेदारी गिरकर 16% हो गई और मध्य खंड की हिस्सेदारी घटकर 46% हो गई। इस बीच प्रीमियम और लक्जरी घरों की हिस्सेदारी 35% तक बढ़ गई। साफ़ है कि अमीर लोग बड़े और बेहतर घर खरीद रहे हैं। 

महामारी के बाद सभी श्रेणियों में प्रीमियम वाहनों की बिक्री बढ़ रही है। जबकि मोटरसाइकिलों और छोटी कारों की मांग कमजोर बनी हुई है। 

वित्त वर्ष 2024 की पहली छमाही में 10 लाख रुपये से अधिक कीमत वाली कारों की बिक्री 27.8% बढ़ गई है। इस बीच इसी अवधि में 10 लाख रुपये से कम कीमत वाली कारों की मांग 6% घट गई है।
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इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार ऑटो कंसल्टेंसी फर्म जाटो डायनेमिक्स के अध्यक्ष रवि भाटिया का कहना है कि कोविड के बाद अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। एलएंडटी के समूह मुख्य अर्थशास्त्री सच्चिदानंद शुक्ला ने कहा कि आय पिरामिड के शीर्ष पर मौजूद कुछ लोगों की आय पर कोई असर नहीं पड़ा है। जिन लोगों पर महामारी का असर नहीं हुआ, उन्होंने अपनी अतिरिक्त बचत शेयर बाजार में लगा दी। महामारी से अधिक प्रभावित कम आय वर्ग वाले महंगाई से कराह रहे हैं और अब ख़राब मानसून ने भी ग्रामीण क्षेत्र में हालत सुधरने की रफ्तार को धीमा कर दिया है। तो सवाल है कि यह खाई कब तक रहेगी?

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क़मर वहीद नक़वी
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