महंगाई एक ऐसी चीज़ है जो कभी ख़बरों से बाहर नहीं होती। कभी इसके बढ़ने की ख़बर है तो कभी घटने की। कभी एक चीज़ बढ़ती है तो दूसरी घटती है। बताया जाता है कि महंगाई ने इस देश में कई बार सरकारें भी गिरा दी हैं। हालाँकि आजकल के हालात देखकर यक़ीन करना मुश्किल है कि ऐसा भी होता होगा।

सामानों के दाम बढ़ने की वजह यही है कि कंपनियों का ख़र्च बढ़ गया है। और वो भी तब जबकि वो किफायत के सारे रास्ते आजमा चुकी हैं। ऐसे में दाम काबू करने का दबाव शायद बहुत से क़ारोबारों के लिए ख़तरनाक भी साबित हो सकता है।
पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ना तो अब ख़बर ही नहीं रह गई है। पिछले पंद्रह दिन में बारह बार पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ चुके हैं। सौ रुपए लीटर पहुँचने तक की चर्चा तो बहुत थी लेकिन अब तो मुंबई में पेट्रोल एक सौ दस के ऊपर जा चुका है और कोई ख़ास हल्ला-गुल्ला भी नहीं है।
महंगाई के मोर्चे पर पिछले कुछ दिनों में आई ख़बरों पर नज़र डालें तो क्या दिखता है? सितंबर में खुदरा महंगाई की दर पाँच महीने में सबसे नीचे आ गई है जो त्योहारी सीज़न में अच्छी ख़बर मानी जा रही है। दूसरी तरफ़ खाने के तेलों की महंगाई से परेशान केंद्र सरकार ने इनके आयात पर कस्टम ड्यूटी ख़त्म करने और सेस घटाने का एलान किया है।