सरकार कई चीजों पर टैक्स बढ़ाने जा रही है। इसके साथ ही जिन चीजों पर अभी कोई टैक्स नहीं लगता है, उनमें से कई वस्तुओं पर अब टैक्स लगेगा। जीएसटी कौंसिल ने साफ़ कह दिया है कि वह जीएसटी दरों के स्लैब में बदलाव करेगी और रियायतों में कटौती करेगी। इसकी वजह यह है कि सरकार की जीएसटी राजस्व उगाही उम्मीद से बहुत ही कम है।
नया स्लैब?
जीएसटी परिषद की अगली बैठक 18 दिसंबर को है। उसमें इस पर फ़ैसला हो जाएगा। पर्यवेक्षकों का कहना है कि उस बैठक में कुछ वस्तुओं को कम दर वाले स्लैब से निकाल कर ऊँची जीएसटी दर वाले स्लैब में डाल दिया जाएगा। ये वे उत्पाद होंगे, जिन पर कम टैक्स लगता है, लेकिन उनकी ब्रिकी अधिक होती है।
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पहले ही इसके संकेत दे चुकी हैं कि जीएसटी कर-स्ट्रक्चर में बदलाव किया जा सकता है। लेकिन अब परिषद ने सभी राज्यों को चिट्ठी लिख कर इसकी जानकारी दे दी है और उनसे इस पर विस्तृत जानकारी माँगी है।
जीएसटी के 7 स्लैब हैं और सभी उत्पादों को इन्हीं स्लैबों में रखा गया है। पर सबसे ज्यादा चीजें 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत टैक्स वाले स्लैब में हैं। परिषद का सोचना है कि इन्हें मिला कर एक ऐसा स्लैब बनाया जाए, जिन पर 15 प्रतिशत का टैक्स लगे। ज़्यादातर उत्पादों को इसी स्लैब में डाल दिया जाए।
ख़राब अर्थव्यवस्था!
इसकी बड़ी वजह यह है कि देश की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ रही है, कारोबार कम हो रहा है। माँग-खपत कम होने और उस वजह से उत्पादन कम होने के कारण कम चीजें बिक रही हैं, लिहाज़ा उन पर मिलने वाला टैक्स भी कम हो रहा है।जीएसटी परिषद ने 27 नवंबर को सभी राज्यों को लिखी गई चिट्ठी में कहा है कि जिन वस्तुओं पर अभी कर नहीं लगता है, उनमें से कुछ पर अब कर लगाना होगा।
जीएसटी की वजह से राज्यों को होने वाले नुक़सान के एक हिस्से की भरपाई केंद्र सरकार करती है। इस पैसे का इंतजाम लग्ज़री वस्तुओं पर ऊँची दर की जीएसटी लगा कर किया जाता है। इसे ‘सिन टैक्स’ कहा जाता है, जो अमूमन शराब, बहुत ही महँगी गाड़ियों तंबाकू उत्पादों, मसलन, सिगरेट, गुटका वगैरह पर लगाया जाता है।
पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली और महाराष्ट्र के वित्त मंत्रियों ने कहा था कि मुआवज़े का भुगतान नहीं हो रहा है। अब जीएसटी परिषद ने इस पर चिंता जताई है और संकेत दिया है कि भविष्य में यह मुआवज़ा बंद किया जा सकता है।
वित्त आयोग का अध्ययन
पहले यह तय हुआ था कि साल 2022 तक राज्यों को मुआवज़ा मिलता रहेगा और उस समय तक स्थिति ऐसी हो जाएगी कि इसकी ज़रूरत नहीं रहेगी क्योंकि राज्यों की राजस्व उगाही पर्याप्त होगी और जीएसटी की वजह से उन्हें नुक़सान नहीं होगा।लेकिन 15वें वित्त आयोग ने एक अध्ययन में पाया है कि साल 2022 के पहले ही यह मुआवज़ा बंद कर देना होगा, क्योंकि राजस्व उगाही कम होगी। इस अध्ययन में पाया गया है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान सभी राज्यों को कुल मिला कर 1.67 ट्रिलियन रुपए का मुआवज़ा केंद्र सरकार को देना होगा। इसकी वजह यह है कि उस समय तक हर साल 14 प्रतिशत की दर से विकास नहीं हो सकेगा।
लक्ष्य से कम उगारी
जीएसटी कर उगाही लक्ष्य से बहुत ही कम हुई है। इसे इससे समझा जाता है कि कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि अप्रैल-अक्टूबर में सिर्फ़ 9 लाख करोड़ रुपए की कर-उगाही हुई, जबकि लक्ष्य 19.72 लाख करोड़ रुपए था। यानी, जो लक्ष्य था, उसकी लगभग आधी उगाही ही हो सकी है।अब सवाल यह भी उठता है कि जब सरकारी एजेंसी जीएसटी परिषद ख़ुद मानती है कि कम राजस्व उगाही हुई है तो सरकार यह क्यों नहीं मानती कि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में कहा कि उन्हें सबसे बुरा वित्त मंत्री कहा जाता है और उनकी आलोचना की जाती है। वे हर तरह की आलोचना के लिए तैयार हैं। पर उसी वित्त मंत्री ने इसके कुछ दिन पहले ही मंदी की आशंका से साफ़ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि न तो मंदी है, न ही इसकी कोई आशंका है।
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