नरेंद्र मोदी सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह मान लिया है कि अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हो गई है। वित्त मंत्रालय ने मार्च के माहवारी रिपोर्ट में यह कहा है कि निजी खपत कम होने, निवेश गिरने और निर्यात कम होने की वजह से अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई है। अर्थव्यवस्था के जानकार, उद्योग जगत और मीडिया यह बात काफ़ी पहले से कह रहे हैं। वे यह बता रहे हैं कि किस तरह अर्थव्यवस्था के तमाम इंडीकेटर यह दिखा रहे हैं कि अर्थव्यवस्था धीमी चल रही है, पर सरकार यह मानने को तैयार नहीं थी। वह तरह तरह के तर्क देती रही है, बहाने बनाती रही है और तमाम खबरों और रिपोर्टो को खारिज करती रही है। पहली बार मोदी सरकार ने माना है कि अर्थव्यवस्था धीमी है।
अर्थतंत्र से और खबरें
आर्थिक मामलों की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है, लगता है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में अर्थव्यवस्था थोड़ी धीमी हो गई है। इसके कई कारणों में खपत में कमी, निवेश में बहुत ही मामूली बढ़ोतरी और निर्यात कम होना हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्तीय वर्ष की चौथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर 6.50 प्रतिशत थी, इसी तरह पूरे वित्तीय वर्ष में यह दर 7 प्रतिशत रही। आयात में कमी होने से यह साफ़ है कि अर्थव्यवस्था धीमी है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने भी पहले इस तरह की बात कही थी।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमें लगता है कि निजी खपत में कमी के साथ ही सरकारी खर्च में कटौती होने से भी बैंकों पर दबाव बढ़ा है और उनके एनपीए में इजाफ़ा हुआ है।’
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मुद्रा नीति का असर अभी दिखना शुरू नहीं हुआ है, बैंकों ने जो ब्याज़ दर में कटौती की है, उसका असर भी कुछ समय बात ही दिखेगा। मुद्रा विनिमय में स्थिति सुधरी है और इसका असर निर्यात पर पड़ेगा।
विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है और नौ महीने के आयात का बिल चुकाने लायक विदेशी मुद्रा ही बची हुई है। यह साल 2016 के बाद सबसे नीचले स्तर पर है।
बताया कम, छुपाया ज़्यादा
इससे यह तो साफ़ है कि अब अर्थव्यवस्था में गिरावट होने और उसकी रफ़्तार धीमी होने के मुद्दे पर कोई मतभेद नहीं है। लेकिन सरकार अभी भी यह नहीं बता रही है कि इस सुस्ती की वजह क्या है। सरकार यह छिपा रही है कि उसकी ग़लत आर्थिक नीतियों की वजह से ही अर्थव्यवस्था की यह स्थिति हो गई है। इसके कई कारणों में एक कारण नोटबंदी भी है। नोटबंदी की वजह से मझोले और छोटे उद्योग धंधे लगभग चौपट हो गए हैं क्यों वे नकद लेनदेन पर टिके हुए थे। इसके अलावा जीएसटी का भी असर हुआ है।जीएसटी जिस तरह बग़ैर किसी तैयारी के ही एकदम से शुरू कर दी गई, उससे व्यापार जगत में अफरातफरी मची और उसका व्यापार पर पड़ा। इसी तरह यह भी सच है कि सरकार ने रोज़गार सृजन की दिशा में कोई काम नहीं किया, सिर्फ थोथे दावे करती रही। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इन कमियों की ओर इशारा करने वालों को सत्तारूढ़ दल निशाने पर लेती रही है। नतीजा सबके सामने है।
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