हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
आगे
विश्व गुरु के घोष पर हर्षोल्लास व कटाक्ष का सिलसिला देश के भीतर और विदेश में बसी भारतीय बिरादरी के बीच तो खूब चला है, पर अब ऐसा लग रहा है कि पूरी दुनिया में भारत का डंका बजने वाला है, खासकर विश्व की अर्थव्यवस्था में। सबसे महत्वपूर्ण बयान आए हैं अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की तरफ से।
आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा का कहना है कि इस वक्त दुनिया के आर्थिक क्षितिज पर जो अंधकार दिख रहा है, उसमें भारत को एक प्रकाश पुंज की तरह देखना पड़ेगा। इसकी एक वजह यही है कि मुश्किल दौर में भी भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती रही।
हालांकि, एक ही भारत के अलग-अलग पहलू हैं। एक पहलू यह भी है, जो ताजा ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के आंकड़े दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत छह पायदान नीचे खिसककर 121 देशों में 107वें स्थान पर पहुंच गया है। वैश्विक सूची में भारत दक्षिण एशियाई देशों में सिर्फ युद्धग्रस्त अफगानिस्तान से बेहतर बताया गया है। मतलब, विशाल आबादी वाले देश में भूख एक पहलू है।
लेकिन कुल मिलाकर, एक मजबूत भारत भी है, जो एक साल के लिए जी-20 की अध्यक्षता करने जा रहा है। जी-20 असल में 19 राष्ट्रों और यूरोपीय संघ के सारे देशों को मिलाकर बना है। दुनिया की जीडीपी का लगभग 80 प्रतिशत और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 75 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा जी-20 के सदस्य देशों से आता है। आगामी 1 दिसंबर से भारत इसका अध्यक्ष बनेगा, और इसके बाद एक साल के भीतर उसे इस समूह की 200 से ज्यादा बैठकों की मेजबानी करनी है।
क्रिस्टालिना जॉर्जीवा का कहना है कि जिस वक्त भारत इस संगठन का नेतृत्व संभालने जा रहा है, वह खुद बहुत मजबूत स्थिति में है, और यह तय है कि इसके बाद भारत पूरी दुनिया पर छाप छोड़ेगा।
जॉर्जीवा ही नहीं, आईएमएफ के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे ओलिवियर गौरिंचस का भी कहना है कि जिस वक्त पूरी दुनिया पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है, भारत की तेज चमक तारीफ के काबिल है। हालांकि, पिछले हफ्ते आईएमएफ ने भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटा दिया, पर यह भी बताया है कि भारत दुनिया में सबसे तेज रफ्तार से बढ़ेगा।
आईएमएफ ने 2021 में भारत की जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार 8.7 प्रतिशत के मुकाबले 2022 में 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। उधर, 2022-23 के लिए उसे लगता है कि भारत की जीडीपी में 6.1 फीसदी की बढ़त होगी, जबकि जनवरी में उसका अनुमान 8.2 प्रतिशत था, जो जून में घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया गया था। फिर भी यह काफी है, क्योंकि इसी दौरान चीन में 4.4 प्रतिशत, अमेरिका में एक प्रतिशत, जापान में 1.6 प्रतिशत, यूरोपीय देशों में 0.5 प्रतिशत और ब्रिटेन में महज 0.3 प्रतिशत बढ़त का अनुमान है।
संभवत: यह भी एक बड़ी वजह है कि दुनिया को भारत में बड़ी उम्मीद दिख रही है और आईएमएफ के बयान उस उम्मीद की अभिव्यक्ति माने जा रहे हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था भले अभी 3.5 ट्रिलियन डॉलर के करीब हो, पर इसकी विशाल आबादी, आगे बढ़ता मध्यवर्ग और तेजी से फैलता बाजार पूरी दुनिया को बड़ी संभावना की तरह दिखता है। कारों व महंगे मोबाइल फोन की बिक्री के आंकड़े और ऑनलाइन खरीद-बिक्री या डिजिटल लेन-देन की रफ्तार व आकार, दुनिया के अनेक देशों को हैरान कर देते हैं।
वैसे, आईएमएफ की तरह विश्व बैंक ने भी हाल में भारत की ग्रोथ का अनुमान घटाया है। पहले जहां उसे उम्मीद थी कि वित्त वर्ष 2022-23 में भारत 7.5 प्रतिशत बढ़ेगा, वहीं अब उसका अनुमान 6.5 प्रतिशत ही रह गया है। दक्षिण एशिया पर अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट में उसने कहा है कि अनिश्चितता और कर्ज महंगा होने की वजह से भारत में निजी क्षेत्र का निवेश मंदा रहने का डर है। दुनिया भर में मांग कम होने का असर भी भारत के निर्यात पर पड़ सकता है।
इन सबके बावजूद आईएमएफ की तरफ से यह अनुमान साफ है कि भारत 2027-28 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। हालांकि, 2025 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का सपना 2025-26 में भी पूरा होता मुश्किल दिखता है, लेकिन साल 2027-28 में भारत की जीडीपी 5.36 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंचने की उम्मीद है। उस वक्त की तस्वीर देखें, तो तीसरे नंबर पर पहुंचने के बावजूद भारत 30.28 ट्रिलियन डॉलर वाले अमेरिका और 28.25 ट्रिलियन डॉलर वाले चीन से काफी पीछे दिखाई पड़ेगा।
मगर अर्थशास्त्री हालात को बेहतर तरीके से दिखाने के लिए एक और फॉर्मूला इस्तेमाल करते हैं। इसे ‘पर्चेजिंग पावर पैरिटी’ (क्रय शक्ति समता) कहा जाता है। मतलब यह कि किसी एक देश में कुछ खास सामान खरीदने के लिए कितनी रकम खर्च होती है, उसके मुकाबले वही सामान दूसरे देश में कितना खर्च करने पर मिलता है। इस आधार पर दोनों देशों की मुद्रा के बीच तालमेल का अनुपात बनाया जाता है, और फिर उन देशों की जीडीपी की तुलना भी उस अनुपात से की जाती है।
जैसे ही आप इस पैमाने पर देखेंगे, तो पाएंगे कि 2027-28 में अमेरिका 42.05 ट्रिलियन डॉलर, चीन 30.28 ट्रिलियन डॉलर और भारत 17.85 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन चुके होंगे।
यह तस्वीर बहुत सुहानी दिखती है, जब तक आप यह न देखें कि दुनिया में अमीर और गरीब की खाई किस तेजी से बढ़ रही है। पिछले ही हफ्ते विश्व बैंक ने चेतावनी दी कि 2030 तक दुनिया के नक्शे से गरीबी मिटा देने का काम अपने लक्ष्य से बहुत दूर है। उसके ताजा अनुमान के मुताबिक, 2022 के अंत तक दुनिया में 68.5 करोड़ लोग बेहद गरीब होंगे। हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में गरीबी की चपेट में फंसे लोगों में से 80 फीसदी भारत में हैं। इसके साथ ताजा हंगर रिपोर्ट को भी जोड़ा जा सकता है।
चुनौती दुनिया के स्तर पर और देश के स्तर पर एक ही है। अमीर इंसान और अमीर ज्यादा से ज्यादा अमीर और गरीब ज्यादा से ज्यादा गरीब हो रहे हैं। इसे कैसे रोका जाए और कैसे विकास की रफ्तार इतनी तेज हो कि सबकी जरूरतें पूरी करने की स्थिति आए? लगता तो यही है कि सब जगह हालात इतने खराब हैं कि अब सबको भारत में ही उम्मीद दिख रही है।
(हिंदुस्तान से साभार)
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें