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ब्रिटेन में हाल ही में हुई जी-7 की बैठक में यह तय किया गया कि सभी देशों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने यहाँ कम से कम 15 प्रतिशत का कॉरपोरेट टैक्स सभी कंपनियों पर लगाएं।
ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि शून्य या शून्य के आसपास टैक्स लगने वाले देशों में पैसे निवेश करने और उस पैसे को फिर किसी और देश में भेजने पर रोक लगाया जा सके।
ऐसे कई देश हैं जहाँ कॉरोपरेट टैक्स शून्य या उसके आसपास है, इसका फ़ायदा उठा कर कई लोग फर्जी कंपनियाँ बना लेते हैं और उन कंपनियों के ज़रिए इन देशों में निवेश कर देते हैं। वहाँ उन्हें कर नहीं चुकाना होता है और फिर उसी पैसे को किसी और देश में निवेश कर देते हैं।
इससे यह होता है कि कुछ देशों में बहुत बड़ी रकम का निवेश हो जाता है जो कुछ समय के लिए वहाँ रहता है। लेकिन कुछ दूसरे देशों का पैसा वहाँ से निकल जाता है और किसी तीसरे देश में पहुँच जाता है।
इससे कुछ देशों को उनका जायज टैक्स नहीं मिलता है। इससे शेल कंपनी यानी फर्जी कंपनियों का कारोबार फलता फूलता रहता है और टैक्स हैवन के नाम से जाने जाने वाले देशों में पैसा जमा होता रहता है।
टैक्स विशेषज्ञ, चार्टर्ड एकाउंटेंट और कॉरपोरेट वकील सैकड़ों शेल कंपनियों का ऐसा मकड़जाल बुन लेते हैं कि सारा मुनाफा टैक्स हैवन में जमा हो जाता है और जिन देशों में कारोबार होता है, उन्हें कोई कर नहीं मिलता है या नाम मात्र का कर मिलता है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक शोध के अनुसार, इन शेल कंपनियों ने लगभग 12 खरब डॉलर इन टैक्स हैवन में जमा कर रखा है।
इसके पहले ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने एक ऐसी टैक्स प्रणाली विकसित करने की बात कही थी, जिससे इन शेल कंपनियों पर लगाम लगाई जा सके और इन टैक्स हैवन पर भी नकेल कसी जा सके। एक बैठक में 140 देशों ने इस पर सहमति जताई थी।
कोई कंपनी अपना मुनाफ़ा शून्य भी दिखा सकती है और उस पर टैक्स देने से बच सकती है। इसलिए भारत समेत कुछ देशों ने व्यवस्था की है कि ये बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ टैक्स कारोबार पर चुकाएं, मुनाफ़े पर नहीं।
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इससे नाराज़ हुए थे और भारत को बदले की कार्रवाई करने की धमकी भी दी थी।
कई देशों की पूरी अर्थव्यवस्था ही इस काले धन और गोरखधंधे पर टिकी हुई है। स्विटज़रलैंड अपने बैंकों की गोपनीयता से जुड़े नियमों के आधार पर ही अरबों डॉलर का निवेश हर साल एकत्रित कर लेता है।
सिंगापुर, आयरलैंड, मॉरीशस, नीदरलैंड ऐसे ही देश हैं। एमेज़ॉन ने यूरोपीय देश लग़्जमबर्ग से ऐसी साठगांठ की कि वहाँ के टैक्स क़ानून में बदलाव किया गया और इस कंपनी को वहाँ कोई टैक्स नहीं देना होता है।
जो बाइडन ने राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिकी नीति बदली और वे एक अंतरराष्ट्रीय टैक्स व्यवस्था पर राजी हो गए हैं, जिसके तहत टैक्स देना ही होगा।
इसकी वजह यह है कि आतंकवादी और ड्रग माफ़िया भी इस रास्ते का इस्तेमाल करते हैं और अमेरिका पर बहुत ही ज़बरदस्त दबाव हुआ कि वह इस तरह टेरर फंडिंग को समर्थन दे रहा है।
नई व्यवस्था के तहत हर कंपनी को हर हालत में कम से कम 15 प्रतिशत का अल्टरनेट मिनिमम टैक्स यानी वैकल्पिक न्यूनतम कर चुकाना ही होगा, भले ही उन्हें सरकार किसी तरह की कोई छूट दे।
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