कोरोना के बाद जो आर्थिक बदहाली होगी, उस वजह से देश के तकरीबन 13.60 करोड़ लोगों का रोज़गार ख़तरे में पड़ जाएगा। ये असंगठित क्षेत्र के मज़दूर हैं जो अस्थायी तौर पर, ठेके पर छोटी-मोटी नौकरी करते हैं या दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फ़ॉर इनफॉर्मल सेक्टर एंड लेबर स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर संतोष मेहरोत्रा के एक शोध के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है।
असंगठित क्षेत्र में कितने?
संतोष मेहरोत्रा ने एक अध्ययन में पाया कि 2017-18 में देश में 46.50 करोड़ कामगार थे, जिनमें से लगभग 13.60 करोड़ लोग ग़ैर कृषि क्षेत्र में काम करते थे। ये वे लोग थे जो असंगठित क्षेत्र में ठेके पर अस्थायी नौकरी करते थे। उस समय से अब तक इस संख्या में बहुत का अंतर नहीं आया है।
अर्थशास्त्री मेहरोत्रा का कहना है कि इन लोगों को बग़ैर किसी कारण या नोटिस के किसी भी वक़्त हटाया जा सकता है। इस समूह में दिहाड़ी मज़दूर और कैजुअल वर्कर भी आते हैं।
पर्यटन, होटल
ट्रैवल एंड टूअरिज़्म सेक्टर पर कोरोना की सबसे अधिक मार पड़ने वाली है। कॉनफ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के अनुसार अक्टूबर 2020 तक टूअरिज़्म व हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में लगभग दो करोड़ रोज़गार ख़त्म हो जाएंगे। इसकी वजह यह है कि लोग भारत घूमने नहीं आएंगे, घरेलू पर्यटन पर भी बुरा असर पड़ेगा। इस सेक्टर में गाइड, होटल व रेस्तरां के कर्मचारी, ड्राइवर, क्लीनर की नौकरी तो जाएगी ही, इससे जुड़े दूसरे लोगों, मसलन, सब्जी-फल बेचने वाले लोग, फूलों के व्यवसायी सब की नौकरी चली जाएगी।
इस सेक्टर में अच्छे वेतन और ऊंचे पदों मसलन होटल मैनेजमेंट के लोग, टूअर ऑपरेटर कंपनियों में बड़े लोग भी कोरोना से उपजी मंदी की चपेट में आएंगे।
चौतरफा मार
एडेको ग्रुप इंडिया ने लाइव मिंट से कहा कि इस तरह की बेरोज़गारी संगठित क्षेत्रों में भी फैलेगी।
टेक्सटाइल्स, सीमेंट, फूड प्रोडक्ट्स, मेटल, प्लास्टिक, रबड़ व इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों में यह मंदी और बेरोज़गारी बहुत साफ़ दिखेगी।
एडीको ग्रुप ने यह भी कहा कि विमानन उद्योग का बहुत ही बुरा हाल होगा। इस सेक्टर में ग्राउंड व सपोर्ट स्टाफ़ में लगभग 6 लाख रोज़गार चले जाएंगे।
विमानन
रिपोर्ट यह भी है कि पूरे विमानन उद्योग का बुरा हाल होगा और कई विमानन कंपनियां बंद भी हो सकती हैं।
जस्ट जॉब्स नेटवर्क्स की अध्यक्ष सबीना दीवान ने लाइव मिंट से कहा है कि मंदी का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, लेकिन सबसे बुरा हाल अस्थायी कर्मचारियों का ही होगा।
टेक्सटाइल्स
विमानन उद्योग जैसा ही हाल टेक्सटाइल्स का हो सकता है। पूरा यूरोपीय बाज़ार बंद हो चुका है। भारत के लिए रेडीमेड गार्मेंट का बड़ा बाज़ार यूरोप था। लेकिन वहां से कोई ऑर्डर नहीं आ रहा है, जो माल भेजा जा चुका था, वह लेने वाला भी कोई नहीं है, पैसे के भुगतान की बात कौन करे।
सिर्फ़ तिरुप्पुर शहर में लगभग 5,000 करोड़ रुपए कपड़ा उद्योग के लोगों के फंसे हुए हैं, जो शिपमेंट रुक जाने के कारण नहीं मिल रहे हैं। इसके अलावा लगभग 2,500 करोड़ रुपए के नए ऑर्डर रुके पड़े हैं।
चमड़ा
लाइव मिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि चमड़ा उद्योग बदहाल हो चुका है। सिर्फ़ आगरा शहर में तैयार चमड़ा से जूते-चप्पल बनाने वाले 250 कारखाने हैं। इनके साथ छोटी-छोटी 5,000 इकाइयाँ जुड़ी हुई हैं। इस शहर में चमड़ा उद्योग से जुड़े हुए 4 लाख कर्मचारी हैं, इनमें से आधे दिहाड़ी मज़दूर हैं।
सिर्फ़ बीते दो महीने यानी जनवरी-फरवरी में आगरा की कंपनियों के 450 करोड़ रुपए के ऑर्डर रद्द हो चुके हैं।
मैन्युफ़ैक्चरिंग
श्रम विभाग के आँकड़ों के अनुसार मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में 5.64 करोड़ लोग काम करते हैं। इस सेक्टर में खनन, बिजली, उवर्रक, स्टील, निर्माण हैं।
मैन्युफ़ैक्चरिंग क्षेत्र की स्थिति में जनवरी में थोड़ा सुधार दिखा था, वह अब ख़त्म हो जाएगा। यही हाल रीटेल का होगा। यह सूची बहुत लंबी हो सकती है। सवाल है, ये लोग कहा जाएंगे, क्या करेंगे, क्या खाएंगे?
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