बाबूलाल मरांडी
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बाबूलाल मरांडी
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चंपाई सोरेन
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तमाम इनकार और इकरार के बाद आख़िरकार अब जीएसटी पर खुलकर तकरार का वक़्त आ गया है। गुरुवार को जीएसटी काउंसिल की बैठक में पहली बार सिर्फ़ इस बात पर चर्चा होनी है कि राज्यों को मिलनेवाले हिस्से की भरपाई कैसे होगी। केंद्र सरकार अप्रैल के बाद से अभी तक राज्यों को उनके हिस्से की रक़म एक बार भी नहीं दे पाई है। क़ायदे से हर दो महीने में एक बार यह भुगतान होना चाहिए। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार ने राज्यों को लगभग एक लाख पैंसठ हज़ार करोड़ रुपए का भुगतान किया था। केंद्र की मुश्किल और बढ़ गई है क्योंकि सूत्रों के अनुसार अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सरकार को बता दिया है कि वसूली हो या न हो, केंद्र सरकार राज्यों को पूरा मुआवज़ा देने के लिए ज़िम्मेदार है। वित्त मंत्रालय ने अटॉर्नी जनरल से इस मसले पर राय माँगी थी।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बाद जीएसटी वसूली में भारी गिरावट आई है। इसीलिए केंद्र राज्यों को उनके हिस्से का पैसा भी नहीं दे पा रहा है। अब राज्य सरकारें पूरा ज़ोर लगा रही हैं कि इस बैठक में केंद्र से न सिर्फ़ बकाए का हिसाब ले लिया जाए बल्कि आगे का रास्ता भी तय हो जाए।
राज्यों की माँग है कि केंद्र सरकार चाहे बाज़ार से क़र्ज़ ले या कहीं और से लाए लेकिन उनके हिस्से की रक़म चुकाई जाए। राज्यों की तरफ़ से यह दबाव भी बनेगा कि उन चीज़ों की लिस्ट बढ़ाई जाए जिनपर उन्हें जीएसटी के बदले हिस्सा या मुआवज़ा मिलता है। यही नहीं, अभी के क़ानून में सिर्फ़ पाँच साल तक सेस वसूलकर जो मुआवज़ा देने का इंतज़ाम है वो इसे बढ़ाकर दस साल करना चाहते हैं। साथ में जीएसटी कंपनसेशन एक्ट के हिसाब से उन्हें जो चौदह पर्सेंट हिस्सा समय पर दिए जाने का इंतज़ाम किया गया है उसका पालन पक्का किया जाए।
मामला कितना गर्म है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने इस मसले पर मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस की और उसमें सिर्फ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री ही नहीं। ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे और हेमंत सोरेन भी शामिल हुए। सोनिया गाँधी ने कड़े तेवर दिखाए और कहा कि केंद्र सरकार जिस तरह राज्यों का हिस्सा नहीं दे रही है वो सरासर धोखा है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का कहना है कि अब विपक्षी राज्य सरकारों को तय करना है कि वो केंद्र से डरेंगे या लड़ेंगे। उनका कहना है कि पैसा ही नहीं होगा तो राज्य सरकारें काम कैसे करेंगी?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि ऐसा ही हाल रहा तो राज्य सरकार के पास और टैक्स लगाने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचेगा। हेमंत सोरेन ने तो आरोप लगा दिया कि मुआवज़ा बाँटने में भेदभाव हो रहा है और ख़ासकर उन राज्यों को पैसा नहीं दिया जा रहा है जहाँ बीजेपी की सरकार नहीं है।
आसार हैं कि केंद्र राज्य सरकारों से कह सकता है कि वो अपने-अपने बॉन्ड जारी करके बाज़ार से क़र्ज़ उठा लें। इसके लिए इजाज़त दी जा सकती है, ऐसी सलाह अटॉर्नी जनरल ने भी दी है। लेकिन इसपर विपक्ष से ज़्यादा रोचक प्रतिक्रिया तो बीजेपी नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की है। उन्होंने सवाल उठा दिया है कि अगर राज्यों को क़र्ज़ लेना पड़ा तो सरकार को उसके लिए गारंटी देनी होगी। मतलब यह होगा कि आनेवाले समय में जीएसटी के मुआवज़े की जो रक़म मिलेगी उससे यह क़र्ज़ चुकाया जाएगा। लेकिन ऐसा कैसे होगा जब यहाँ महीने की ज़रूरतें ही पूरी नहीं हो पा रही हैं।
साफ़ है कि बैठक में बहस गर्म रहने वाली है और विपक्ष तो सामने है लेकिन बीजेपी की अपनी राज्य सरकारें भी क्या रवैया अपनाएँगी कहना मुश्किल है क्योंकि ख़र्च तो उन्हें भी चलाना ही है।
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