लगता नहीं कि 'कॉल ड्रॉप' की समस्या से जल्दी कोई राहत मिलेगी, हालाँकि देश के सभी मोबाइल ऑपरेटरों के ग्राहकों में 'कॉल ड्रॉप' को लेकर असंतोष बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे 'कॉल ड्रॉप' की शिकायतों में बढ़ोतरी होती जा रही है। इस समस्या को दूर करने के लिए केंद्र सरकार भी अभी तक कोई ठोस पहल नहीं कर पाई है।
ख़ुद ट्राई (टेलिकॉम क्षेत्र को नियंत्रित करने वाली वैधानिक संस्था टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी) के अनुसार एयरटेल और वोडाफ़ोन-आइडिया ने 'कॉल ड्रॉप' में सुधार के लिए जो समय-सीमा दी थी, वे उस पर खरे नहीं उतरे हैं। ट्राई के अनुसार एक सर्वेक्षण में एयरटेल के क़रीब 37% ग्राहक और वोडाफ़ोन-आइडिया के क़रीब 32% ग्राहक 'कॉल ड्रॉप' के चलते असंतुष्ट पाए गए। ट्राई ने हालाँकि रिलायंस जिओ को संतोषप्रद बताया है, लेकिन satyahindi.com को तमाम उपभोक्ताओं ने बताया कि इसकी सेवा में भी 'कॉल ड्रॉप' की शिकायतें लगातार बढ़ती जा रही हैं जबकि इस कंपनी के शुरुआती महीनों में ऐसा नहीं था ।
वेब माध्यमों से टेलिफ़ोन का चलन
इस सबके चलते तमाम लोग अब वॉट्सऐप और अन्य वेब माध्यमों का इस्तेमाल टेलिफ़ोन करने के लिए करने लगे हैं। आम धारणा यह भी है कि सरकारें और एजेंसियाँ लाखों लोगों के फ़ोन अवैध ढंग से टैप करती रहती हैं और वेब ऐप से फ़ोन करना टैपिंग से बचाता है। एक अनुमान है कि क़रीब 20 से 30 प्रतिशत उपभोक्ता अब फ़ोन कॉल के लिए वेब माध्यमों का इस्तेमाल करने लगे हैं।
56% तक 'कॉल ड्रॉप'
ग़ैर-सरकारी अनुमान है कि क़रीब-क़रीब सभी उपभोक्ता औसतन 56% तक 'कॉल ड्रॉप' या फ़ोन न मिल पाने की समस्या का सामना कर रहे हैं। ख़र्चे घटाने के लिए कंपनियाँ इस समस्या के हल को टाल रही हैं जबकि अपने उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ाने के लिए वे प्रचार की ज़बरदस्त होड़ में लगी हुई हैं।
एक सौ पंद्रह करोड़ सिम कार्ड प्रचलन में
देश में क़रीब एक सौ पंद्रह करोड़ सिम कार्ड इस समय प्रचलन में हैं। सिर्फ़ 4G स्पेक्ट्रम पर सवार रिलायंस जिओ ने ही पच्चीस करोड़ उपभोक्ता हासिल कर लिए हैं। लेकिन स्पेक्ट्रम को उपभोक्ताओं के कान तक पहुँचाने वाली प्रणाली लगभग वही है, जो 2जी के समय में तैयार हुई थी। 3जी स्पेक्ट्रम की बोली बहुत अधिक होने के कारण कंपनियों ने अपनी जेब में हाथ नहीं डाले और 4जी के प्रणेता मुकेश भाई बीएसएनएल के कंधे पर ही सवार रहे।
अब जब टेलिकॉम इन्फ़्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश की ज़रूरत है, तब रिलायंस के सिवा बाक़ी सब मोबाइल कम्पनियाँ देशी बैंकों से कर्ज़ की मीयाद बढ़वाने और विदेशी क़र्ज़दाताओं से निवेश कराने की क़तार में जा पहुँची हैं। तमाम अर्थविशेषज्ञ तो इस क्षेत्र को मंदी का शिकार तक बता रहे हैं!
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