सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ कहा है कि 2017-18 के बजट ख़र्च में काफ़ी ज़्यादा गड़बड़ियाँ पाई गई हैं। नियमों की धज्जियाँ उड़ा कर अनुदान के बजटीय ख़र्च 'मनमाने' तरीक़े से बढ़ाये गये हैं। सिर्फ़ एक साल में ही 99 हज़ार 6 सौ करोड़ से ज़्यादा रुपये ख़र्च कर दिये गये। यानी संसद से जितने रुपये के अनुदान की मंज़ूरी ली गयी थी, उससे कहीं ज़्यादा रुपये ख़र्च कर दिये गये। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ तौर पर लिखा है कि संसद से मंज़ूर अनुदान से इतना ज़्यादा ख़र्च करना संसद की गरिमा और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है। मूल सिद्धांत यह है कि बिना संसद की मंज़ूरी के एक रुपया भी ख़र्च नहीं किया जा सकता है और इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। हालाँकि सीएजी ने यह भी कहा है कि इसी तरह की गड़बड़ियाँ लगातार पहले की सीएजी रिपोर्ट में भी बतायी जाती रही हैं, लेकिन जिम्मेदार लोग इसे रोकने के लिए प्रभावी क़दम नहीं उठा पा रहे हैं।
सीएजी यानी कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में अनुदान के बजटीय ख़र्च को लेकर गंभीर चिंता जतायी है। इसने कहा है कि ख़र्च अनुदान के मामले देखने वाले नीचे से लेकर ऊपर तक के अफ़सर ठीक से ज़िम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। सीएजी का इतने कड़े शब्दों में चेताने का एक मतलब यह भी है कि नियमों को तोड़कर ख़र्च बढ़ाने में विभागों और मंत्रालयों को चलाने वाले या तो जान-बूझकर ऐसा कर रहे हैं या फिर विभागों-मंत्रालयों में उनकी पकड़ कमज़ोर है।
इन मामलों में भी हुई नियमों की अनदेखी
सीएजी ने नए नीतिगत फ़ैसले यानी नये कार्यों पर वित्त मंत्रालय को 'मनमाने' तौर पर ख़र्च के रुपये बढ़ाने को बड़ा गंभीर मामला माना है। इसने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा है कि बिना संसद की मंज़ूरी के ही वित्त मंत्रालय ने ऐसे नये कार्यों वाले 13 मामलों में क़रीब 1156 करोड़ रुपये ज़्यादा ख़र्च कर दिये। रिपोर्ट के अनुसार किसी भी कार्य में 2.5 करोड़ या तय अनुदान का 10 फ़ीसदी से ज़्यादा की बढ़ोतरी करनी हो तो संसद की मंज़ूरी ज़रूरी होती है। लेकिन 13 मामलों में ऐसा नहीं किया गया। ऐसा तब है जब पब्लिक अकाउंट्स कमिटी यानी पीएसी ने इस पर बार-बार चेताया है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में पीएसी की 83वीं रिपोर्ट का ज़िक्र किया है।रिपोर्ट में सीएजी ने पीएसी के हवाले से कहा है कि अनुदान ख़र्च के ऐसे गंभीर मामले अनुदान के आकलन और इस पर नज़र रखने वाले संबंधित विभागों और मंत्रालयों की गड़बड़ी की ओर इशारा करते हैं।
- पीएसी ने रिपोर्ट में यह भी चेताया था कि सिर्फ़ निर्देश देने से सही परिणाम नहीं आएँगे। ऐसे मामले बार-बार न हों और वित्तीय अनुशासन लाया जा सके, इसके लिए वित्त मंत्रालय को प्रभावी कदम उठाने होंगे।
बिना अनुदान के ख़र्च कर दिये 160 करोड़
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ़-साफ़ लिखा है कि रेल मंत्रालय ने भी गड़बड़ियाँ की हैं। मंत्रालय ने संसद से बिना मंज़ूरी लिए ही 160 करोड़ रुपये रेलवे सेफ़्टी फ़ंड को जारी कर दिये।
41-सीक्रेट सर्विस के ख़र्च में गड़बड़ी?
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वित्त मंत्रालय ने अपने ही नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए '41-सीक्रेट सर्विस के ख़र्च' के दो मामलों में अनुदान के ख़र्च ग़लत तरीके से बढ़ा दिये। सीएजी के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने फ़रवरी 2010 में अपने 1956 और 1969 के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा था कि '41-सीक्रेट सर्विस का ख़र्च' अपने तय ख़र्च से 25 फ़ीसदी या इससे ज़्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सीएजी से पहले अनुमति ली जाए। लेकिन इन दो मामलों में बिना सीएजी की मंज़ूरी के ही ख़र्च की राशि बढ़ा दी गयी। ये दो मामले हैं-
- गृह मंत्रालय के अधीन आने वाली पुलिस के ग्रांट-48 के तहत '41-सीक्रेट सर्विस का ख़र्च' 2017-18 में 163.65 करोड़ रुपये तय था। लेकिन गृह मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय की मंज़ूरी के साथ इस ख़र्च की राशि में 150 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर दी।
- ग्रांट-47 के तहत '41-सीक्रेट सर्विस का ख़र्च' का प्रावधान 5 करोड़ रुपये तय था, लेकिन वित्त मंत्रालय की मंज़ूरी के साथ गृह मंत्रालय ने इसको 1.25 करोड़ रुपये बढ़ा दिया।
हालाँकि वित्त मंत्रालय ने यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि ऐसे ख़र्च बढ़ाने से पहले सीएजी से मंज़ूरी लेने की ज़िम्मेदारी संबंधित विभागों की है, न कि वित्त मंत्रालय की।
ग़लत बजट बनाए गये
सीएजी ने कहा है कि परमाणु ऊर्जा से जुड़े विभागों के कार्यों के लिए 61.13 करोड़ रुपये का अनुदान डेलिगेशन ऑफ़ फाइनेंशियल पावर्स के नियमों का उल्लंघन कर बनाया गया। इसी तरह दूर संचार विभाग, सूक्ष्म, छोटे और मध्यम उद्यम मंत्रालय, जहाजरानी मंत्रालय और युवा एवं खेल मंत्रालय के पाँच मामलों में 2.76 करोड़ रुपये का ग़लत बजट बनाया गया है। सीएजी ने रिपोर्ट में कहा है कि संबंधित मंत्रालयों और विभागों ने इन गड़बड़ियों को दुरुस्त करने की बात कही है।
ग्रांट के 250 हज़ार करोड़ कैसे बच गये?
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में ग्रांट के रुपये 100 करोड़ से ज़्यादा की बचत होने पर भी सवाल उठाए हैं। इसने पब्लिक अकाउंट्स कमिटी यानी पीएसी के हवाले से कहा है कि ऐसा लगता है कि मंत्रालय और विभाग ख़र्च का बजट सही तरीक़े से तैयार नहीं कर पाए। इसी कारण 2017-18 में ग्रांट के 250 हज़ार करोड़ रुपये बच गये। सीएजी का कहना है कि ऐसा ख़राब बजट तैयार करने के कारण होता है। पीएसी ने अपनी 60वीं रिपोर्ट में कहा था कि 100 करोड़ या इससे ज़्यादा की बचत होने का मतलब यह होता है कि अनुदान के बजटीय ख़र्च को तैयार करने में कमियाँ हैं।
माध्यमिक और उच्च शिक्षा सेस
सीएजी ने कहा है कि माध्यमिक और उच्च शिक्षा सेस 2006-07 में लगाया गया था और अब तक 94 हज़ार 36 करोड़ रुपये जमा हो गये हैं। सेस के रूप में वसूले गये इन रुपयों को नियमों के ख़िलाफ़ कंसोलिडेटेड फ़ंड ऑफ़ इंडिया यानी सीएफ़आई में रखा गया है। हालाँकि इसके लिए अगस्त 2017 में माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा कोष बनाया गया था, लेकिन अभी तक यह चालू नहीं हो पाया है। सीएजी ने इस मुद्दे पर अपनी पहले की रिपोर्टों में बताती आयी है, इसके बावजूद इस पर कुछ नहीं किया गया।
अपनी राय बतायें