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बिटकॉइन 1 लाख डॉलर के पार; जानें ट्रंप की जीत के बाद तेजी क्यों

बिटकॉइन गुरुवार को पहली बार 100,000 डॉलर से ऊपर पहुंच गया। भारतीय रुपये में इसको देखें तो 87,31,612 के पार पहुँच गया। गुरुवार को एक दिन में इसमें क़रीब साढ़े चार फ़ीसदी की तेजी आई। डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद तो जैसे बिटकॉइन भयंकर उछाल पर है। पिछले एक महीने में इसमें 50 फीसदी से ज़्यादा उछाल आया है। पिछले एक साल में तो यह दोगुना से भी ज़्यादा हो गया है।

बिटकॉइन का पहली बार 100,000 डॉलर से ऊपर पहुंचना एक ऐसा मील का पत्थर है जिसको संदेह से देखने वाले भी क्रिप्टोकरेंसी को सराह रहे हैं। दरअसल, माना जा रहा है कि निवेशक बिटकॉइन को लेकर इसलिए बमबम हैं कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार आने वाली है। और इसी वजह से निवेशक इसमें अपना दाँव लगा रहे हैं। 

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एक रिपोर्ट में डेटा प्रदाता कॉइनगेको के हवाले से कहा गया है कि क्रिप्टोकरेंसी बाजार का कुल मूल्य इस साल अब तक लगभग दोगुना होकर 3.8 ट्रिलियन डॉलर के रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापक चुनावी जीत के बाद से चार हफ्तों में 50% से अधिक बढ़ गया है। कांग्रेस के लिए कई क्रिप्टो समर्थक सांसद भी चुने गए हैं। खुद डोनाल्ड ट्रंप को भी इसके समर्थकों में माना जाता है। जाहिर सी बात है कि जब ट्रंप सत्ता में होंगे तो बिटकॉइन में निवेश करने वालों को सुनहरा भविष्य दिखेगा ही!

क्रिप्टोकरेंसी क्या है? 

क्रिप्टोकरेंसी डिजिटल मुद्रा है। यह रुपए, पाउंड, डॉलर या यूरो की तरह नोट तो नहीं है जिसे जेब में रखा जा सकता है, लेकिन यह काम ऐसा ही करता है। यानी इसका मूल्य है। ठीक उसी तरह जिस तरह 10, 50, 100 या 500 रुपये के नोटों की क़ीमत है। यदि इस पर भरोसा है तो ये इतने मूल्य या क़ीमत के नोट हैं, नहीं तो यह सिर्फ़ कागज का एक टुकड़ा है। क्रिप्टोकरेंसी के साथ भी ऐसा ही है। वह कंप्यूटर के बेहद जटिल एन्क्रिप्टेड कोड से बनाई गई करेंसी है और इसका भी मूल्य या क़ीमत अब इसलिए है कि जो लोग लेनदेन करते हैं उनको इसमें भरोसा है। 

इसका इस्तेमाल कैसे?

क्रिप्टोकरेंसी को उपयोग करने के लिए न तो किसी बैंक की ज़रूरत है और न ही किसी सरकार की निगरानी की। क्रिप्टोकरेंसी को बिना किसी रोकटोक के दुनिया भर में कहीं भी ऑनलाइन भुगतान भेजा जा सकता है या प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए कोई शुल्क भी नहीं लगता है। 

बस आपके पास इंटरनेट की सुविधा है और मोबाइल या लैपटॉप है तो इस क्रिप्टोकरेंसी से लेनदेन बैठे-बैठे कर सकते हैं। बस मोबाइल पर क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी ऐप खोलकर और काम शुरू किया जा सकता है।

आसान शब्दों में कहें तो इसका इस्तेमाल पेटीएम, फोन पे की तरह है जिससे रुपये सेकंडों में भेजे जा सकते हैं। हालाँकि पेटीएम, फोन पे के माध्यम से दो लोगों के बीच लेनदेन में तीसरा पक्ष भी उसमें शामिल होता है जो अपनी सेवाओं के लिए शुल्क भी ले सकता है। लेकिन क्रिप्टोकरेंसी के साथ ऐसा नहीं है। इसमें कोई भी तीसरा पक्ष नहीं है। न तो बैंक और न ही ब्रोकर। दो लोगों के बीच लेनदेन में किसी भी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं होता है। 

बिटकॉइन क्या है?

बिटकॉइन एक क्रिप्टोकरेंसी है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि रुपया एक मुद्रा है और डॉलर, पाउंड, यूरो दूसरी मुद्राए हैं। इसी तरह से बिटकॉइन की तरह ही कई और क्रिप्टोकरेंसी भी हैं जिनमें इथेरियम, टीथर, कार्डानो, पोल्काडॉट, रिपल और डोजकॉइन आदि शामिल हैं। हालाँकि, चीन विरोध करता रहा है, लेकिन इसने भी अपनी क्रिप्टोकरेंसी युआन की शुरुआत की है। समझा जाता है कि अमेरिका जैसे विरोध करने वाले देश भी अपनी क्रिप्टोकरेंसी बनाने के प्रयास में हैं। 

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क्रिप्टोकरेंसी का प्रबंधन कौन करता है?

सवाल है रुपये, डॉलर जैसी मुद्राओं का प्रबंधन तो सरकारें करती हैं, लेकिन क्रिप्टोकरेंसी को कौन चलाता है?

दरअसल, क्रिप्टोकरेंसी ब्लॉकचेन नाम की टेक्नोलॉजी से संचालित होती है। ब्लॉकचेन एक बही खाते की तरह है जो जानकारी को रिकॉर्ड करने की एक प्रणाली है। यानी यह एक तरह का डाटाबेस है। 

क्रिप्टोकरेंसी के संचालन का काम ब्लॉकचेन करता है। इसके लिए किसी कर्मचारी की ज़रूरत नहीं होती है।

क्रिप्टोकरेंसी की लेनदेन की जानकारी जहाँ सुरक्षित रखी जाती है उसको 'डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर' कहते हैं जो एक ही समय दुनिया भर के हजारों कम्प्यूटरों में सुरक्षित होती है। इन हज़ारों कम्पयूटरों को 'नोड्स' कहा जाता है।

अब यदि आप सोच रहे हैं कि इसको हैक कर क्या कोई क्रिप्टोकरेंसी चुरा सकता है? तो इस सवाल का जवाब इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ देते हैं कि उन डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर या फिर नोड्स में जानकारी को बदलना या हैक करना लगभग असंभव है। यह ख़ास है क्योंकि सभी लेन-देन कंप्यूटरों के बहुत ही बड़े नेटवर्क में होते हैं और ये सभी एन्क्रिप्टेड, कॉपीड और ड्रिस्ट्रीब्यूटेड होते हैं।

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बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी कौन बनाता है?

सवाल है रुपये, डॉलर जैसी मुद्राओं को तो सरकारें बनाती हैं, लेकिन क्रिप्टोकरेंसी को कौन बनाता है? क्या कोई भी सामान्य से लैपटॉप-कंप्यूटर पर इसे बना सकता है? इसका जवाब है 'नहीं'। इसे हर कोई बना तो सकता है लेकिन इसके लिए शक्तिशाली कम्प्यूटरों का बड़े नेटवर्क के साथ, विशेषज्ञ और बहुत बड़ी मात्रा में बिजली की ज़रूरत होती है। 

क्रिप्टोकरेंसी वाले नेटवर्क से जुड़े कंप्यूटर यानी नोड्स  जटिल क्रिप्टोलॉजिकल गणित के सवाल को हल करते हैं और उसे सत्यापित करते हैं। उस नेटवर्क में शामिल होने के लिए अधिक से अधिक शक्तिशाली कंप्यूटरों को प्रोत्साहित किया जाता है। लेनदेन को और अधिक सुरक्षित बनाने के लिए और नए बनाए गए सिक्कों के लिए इस काम में लगे लोगों को सिस्टम पुरस्कृत करता है। नए बनाए गए सिक्कों के बदले में लेनदेन को सत्यापित करने और रिकॉर्ड करने की इस प्रक्रिया को 'माइनिंग' के रूप में जाना जाता है। माइनिंग की प्रक्रिया के लिए शक्तिशाली कम्प्यूटर, पेशेवर और काफ़ी ज़्यादा बिजली की ज़रूरत होती है। द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बिटकॉइन नेटवर्क की बिजली की खपत वाशिंगटन राज्य के वार्षिक उपयोग के बराबर है। इसी कारण क्रिप्टोकरेंसी को पर्यावरण के लिए ख़तरनाक भी माना जाता है। 

माना जाता है कि बिटकॉइन जैसी दूसरी क्रिप्टोकरेंसी की क़ीमतें इतनी अधिक होने का कारण भी इस पर आने वाला ख़र्च ही है।

क्रिप्टोकरेंसी पर विवाद क्यों है?

सरकारों को आशंका है कि जब क्रिप्टोकरेंसी पर सरकारों का नियंत्रण नहीं है तो इसका इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए किया जाएगा और इनका इस्तेमाल तस्कर और आतंकवादी भी करेंगे। क्रिप्टोकरेंसी के विरोध में यह भी तर्क दिया जाता है कि इसके मूल्य में काफ़ी ज़्यादा उतार-चढ़ाव होते हैं और यह शेयर बाज़ार की तरह व्यवहार करता है इस वजह से इस पर भरोसा उस तरह नहीं किया जा सकता है। वैसे भी, मुद्रा भरोसे पर ही टिकी होती है।

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क़मर वहीद नक़वी
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