ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक और पत्रकार मोहम्मद जुबैर ने यूपी में अपने खिलाफ दर्ज सभी छह एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस घटनाक्रम के अलावा दिल्ली की कोर्ट में जुबैर की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने सरकारी वकील से कई सवाल पूछे। दिल्ली की अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। वो शुक्रवार 2 बजे फैसला सुना सकती है। जुबैर को गुरुवार को हाथरस की एक कोर्ट में भी पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
मोहम्मद जुबैर ने सुप्रीम कोर्ट में भी अपने खिलाफ दर्ज 6 एफआईआर में उत्तर प्रदेश में गठित एसआईटी की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। जुबैर के खिलाफ हाल ही में 6 मामले हिन्दू संगठनों या नेताओं की ओर से दर्ज कराए गए थे। यूपी पुलिस जुबैर को अब अलग-अलग शहरों की कोर्ट में पेश करने ले जाती है। पिछले दिनों जुबैर की ओर से सिर्फ सीतापुर वाले मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, उस केस में उन्हें जमानत मिल गई थी। लेकिन यूपी के लखीमपुर खीरी, हाथरस आदि में उनके खिलाफ एफआईआर होने के कारण वो जेल से बाहर नहीं आ सके थे।
दिल्ली की अदालत में भी गुरुवार को जुबैर की जमानत अर्जी पर सुनवाई हुई। यह केस दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर से जुड़ा है। जैसे ही जुबैर की जमानत याचिका गुरुवार को अदालत में सुनवाई के लिए आई, अदालत ने विशेष लोक अभियोजक से मामले में दर्ज बयानों की संख्या और आहत लोगों की संख्या के बारे में ब्यौरा देने को कहा। जज ने पूछा तो विशेष लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव ने अदालत को बताया, हमारे पास ट्वीट और रीट्वीट हैं। इस पर जज ने कहा-
“
पत्रकार मोहम्मद जुबैर के ट्वीट से कितने लोग आहत हुए हैं, कितने पीड़ितों के बयान पुलिस ने दर्ज किए हैं? आप ट्वीट और रीट्वीट के आधार पर कुछ नहीं कह सकते। आपको सीआरपीसी के रास्ते से जाना होगा और बयान दर्ज करना होगा।
- दिल्ली कोर्ट, गुरुवार को जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी
इस मामले में सुनवाई स्थगित होने के दो दिन बाद अदालत गुरुवार को मामले की सुनवाई कर रही थी। क्योंकि विशेष अभियोजक ने पिछली तारीख पर अपनी गैरमौजूदगी का हवाला दिया था। अदालत शुक्रवार को जुबैर की जमानत याचिका पर फैसला सुना सकती है।
जुबैर को पिछले महीने दिल्ली पुलिस ने 2018 के एक ट्वीट पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। 2018 के ट्वीट में फारूक शेख और दीप्ति नवल वाली 1983 में बनी बॉलीवुड फिल्म का संदर्भ था।
इस बात पर कि ईरान, सऊदी अरब और पाकिस्तान से फ़ैक्ट चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज द्वारा दान प्राप्त किया गया था, अदालत ने जानना चाहा कि क्या एफसीआरए (विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम) के तहत जुबैर की जांच करने के लिए सबूत हैं। यानी एफसीआरए में केस दर्ज किस तरह किया गया।
इसके जवाब में श्रीवास्तव ने कहा कि सबूत जुटाए गए हैं। उन्होंने कहा, जुबैर का भाई एक दशक से अधिक समय से विदेश में रह रहा है। दावों को खारिज करते हुए, जुबैर की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि वह यह साबित करेंगी कि एफसीआरए उल्लंघन का कोई मामला जुबैर पर नहीं बना था।
उन्होंने कहा कि दान प्रावदा मीडिया द्वारा मांगा गया था। जो AltNews की मूल कंपनी है। लेकिन उसने शुरू से ही यह स्पष्ट किया था कि वे विदेशी पैसा प्राप्त नहीं करते हैं। ऐसा पैसा तभी आ सकता है कि संभावित दाता द्वारा एक स्व-घोषणा की जानी चाहिए कि उसका एक भारतीय बैंक में खाता है।
जुबैर की वकील ने कहा कि ऑल्ट न्यूज़ को केवल भारतीय बैंक खातों से दान प्राप्त करने की अनुमति थी। कोई विदेशी कंट्रीब्यूशन पाने की अनुमति नहीं थी। सरकारी पक्ष के बयान निराधार हैं।
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