वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार चुशुल स्थित चीनी चौकी पर भारतीय और चीनी सेना में कमांडर स्तर की बातचीत शुरू हो चुकी है। पर महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या पीपल्स लिबरेशन आर्मी पैंगोंग त्सो झील के किनारे और डेपसांग के इलाक़ों को खाली कर देगा।
यह सवाल अहम इसलिए भी है कि चीनी सेना अब तक इस मुद्दे पर कोई बात करने को ही तैयार नहीं थी। मंगलवार की यह बातचीत बेहद पेचीदी और कठिन होगी, इसलिए समझा जाता है कि एक ही दिन में कोई समाधान नहीं निकलेगा और शायद इसके बाद भी कई दौर की बातचीत हो।
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उत्तरी कमान के 16वीं कोर के कमांडर लेफ़्टीनेंट जनरल हरिंदर सिंह चुशुल स्थित चीनी चौकी दिन के करीब 11.30 पहुँचे। पीएलए के दक्षिण शिनजियांग सैन्य ज़िले के कमांडर मेजर जनरल लिउ लिन ने उनका स्वागत किया। शुरुआती औपचारिकताओं के बाद आगे की बातचीत शुरू हो चुकी है। समझा जाता है कि बातचीत का यह दौर शाम तक चलेगा।
केंद्र में है पैंगोंग त्सो
यह बातचीत पैंगोंग त्सो और डेपसांग के इलाक़े खाली करने को लेकर हो रही है। यह दोनों ही सेनाओं के लिए अहम है, पर भारत के लिए अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है कि चीनी सेना ने पैंगोंग त्सो के फ़िंगर 4 से फिंगर 8 तक के इलाक़े पर कब्जा कर लिया है। उसने फिंगर 4 से आगे का रास्ता काट दिया है और भारत के सैनिक फिंगर 4 से आग नहीं जा सकते, वे उसके आगे गश्त नहीं लगा सकते।मौजूदा संकट शुरू होने के पहले भारत के सैनिक फिंगर 4 से फिंगर 8 तक की गश्त लगाया करते थे। चीन के सैनिक भी इस इलाके की गश्त किया करते थे और दोनों को एक दूसरे की जानकारी होती थी। लेकिन इस बार चीनी सेना चुपके से आई और गश्त लगाने के बाद नहीं लौटी, वह वहीं जम कर बैठ गई और संगर (पत्थर की दीवाल) जैसी संरचनाएं बना लीं।
पूरा तैयार है चीन
पैंगोंग त्सो झील के किनारे-किनारे पहाड़ियाँ हैं, ऊँची चोटियां है और ऊपर से देखने पर वे हाथ की अंगुलियों की तरह दिखती हैं। इसलिए इसका नाम 8 फिंगर्स है। पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने फिंगर 4 से फिंगर 8 के बीच ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लिया है, वहाँ अपना कैंप या बेस बना लिया है। वहाँ चीनी सैनिक बड़ी तादाद में मौजूद हैं, उनके साजो सामान हैं।चीन का जमावड़ा इतना मजबूत है कि वह छोटी अवधि की लड़ाई लड़ सकता है। आर्टिलरी यानी तोपखाने की मदद भी चीनी सैनिकों को मिल सकती है क्योंकि चीनी सेना का जमावड़ा वहाँ से बहुत दूर नहीं है, जो उनके इलाक़े में ही है।
डोभाल-वांग यी बात
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच पिछले हफ़्ते हुई बातचीत में यह तय हुआ था कि दोनों सेनाएं दूसरे इलाक़ों से भी पीछे हटें और इसके लिए उनके कमांडर फिर बात करें। मंगलवार की बात इस परिप्रेक्ष्य में ही रही है।सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन पैंगोंग त्सो और डेपसांग से अपने सैनिक वापस बुला लेगा?
पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीनी सैनिकों के लौटने की संभावना फिलहाल बेहद कम है और इन इलाकों को चीनियों के हाथ से लेना भारत के लिए बहुत मुश्किल काम होगा।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस इलाक़े के लेकर दोनों देशों के बीच पहले भी विवाद रहा है। चीनी सैनिक इन जगहों की गश्त पहले भी करते थे। उनका दावा है कि यह पूरा इलाक़ा ही उनका है।
ज़मीनी हक़ीक़त
ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि पैंगोंग त्सो के किनारे भारत का अंतिम सैनिक बेस फिंगर फोर के पास है, जो इंडो टिबेटन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) की चौकी है। भारत का कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा इसके भी आगे यानी फिंगर 6 से गुजरती है यानी वहाँ तक भारतीय इलाक़ा है। चीन का कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा फिंगर फोर के भी पहले यानी फिंगर टू से गुजरती है। भारत के पास अपना दावा साबित करने के लिए पुराने नक्शे और फोटोग्राफ़्स हैं तो चीन के पास भी हैं।दूसरा कारण रणनीतिक है। चीन ने एक बार जब ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लिया है जहाँ से वह नीचे बड़े आराम से निगरानी रख सकता है तो उससे यह उम्मीद करना अव्यावहारिक होगा कि वह वहां से हट जाए।
डेपसांग का बुरा हाल
डेपसांग की स्थिति और बुरी है। वहाँ पहले भी चीनी सेना घुसपैठ कर चुकी है। पीएलए के एक पूरे प्लाटून ने 15 अप्रैल 2013 को डेपसांग तक पहुँच कर भारतीय सेना को चौंका दिया था। चीनी सेना ने दौलत बेग ओल्डी से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर रुकी नला में अपना कैंप लगा दिया था। लंबी बातचीत के बाद 5 मई को चीनी सैनिक वहां से हटे थे।भारत ने कहा था कि चीनी सेना उनके इलाक़े में 10 किलोमीटर अंदर तक आ गई थी। भारत और चीन के बीच 1993 और 1996 में जो दो क़रार हुए थे, उसके अनुसार एलएसी उस जगह से 19 किलोमीटर दूर है, जहाँ होने का दावा चीनी सेना करती है।
डेपसांग का रणनीतिक महत्व
डेपसांग का रणनीतिक महत्व यह है कि यह दौलत बेग ओल्डी के नज़दीक है, जहाँ भारतीय वायु सेना का एअर बेस है। यह एअर बेस इतना सक्षम है कि यहाँ सबसे बड़े परिवहन विमान हर्क्यूलस को उतारा जा चुका है।लेकिन डेपसांग का इलाक़ा अक्साई चिन के भी नज़दीक है, जिस पर चीन का कब्जा है। यहाँ भारतीय सेना की मौजूदगी चीन के लिए दिक्क़त पैदा कर सकती है, क्योंकि अक्साई चिन से हाईवे गुजरता है जो तिब्बत को शिनजियांग से जोड़ता है। इसके अलावा यहां से कराकोरम दर्रा नज़दीक है और उसी दर्रे से कराकोरम हाईवे गुजरता है जो पाकिस्तान को शिनजियांग से जोड़ता है। यही हाईवे आगे चल कर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से मिलता है। यह आर्थिक गलियारा पाकिस्तानी प्रांत बलोचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक पहुँचता है।
डेपसांग और पैंगोंग त्सो पर बातचीत इसलिए ही पेचीदी और अहम है। यह भारत और चीन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
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