तमिलनाडु की सियासत में एक नया तूफ़ान खड़ा हो गया है। मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने केंद्र के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलते हुए राज्यों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित कर दी है। यह क़दम न केवल डीएमके की 2026 के लिए चुनावी रणनीति का आगाज है, बल्कि संघवाद की जंग में तमिलनाडु को सबसे आगे ला खड़ा करता है। क्या यह समिति केंद्र-राज्य संबंधों को फिर से परिभाषित करेगी, या यह स्टालिन का बीजेपी के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा सियासी दाँव है?

दरअसल, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने विधानसभा में मंगलवार को एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा की। इसका काम राज्यों के अधिकारों को बचाने और भारत के संघीय ढाँचे को पुनर्संतुलित करने के लिए सुझाव देने का होगा। स्टालिन ने संघवाद और राज्य की स्वायत्तता को अपनी पार्टी की प्राथमिकता क़रार दिया है। इस समिति का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ करेंगे और इसमें पूर्व आईएएस अधिकारी अशोक वर्धन शेट्टी और अर्थशास्त्री एम नागनाथन शामिल हैं। यह क़दम केंद्र सरकार पर राज्यों के संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण करने का आरोप लगाते हुए डीएमके की रणनीति को और मज़बूत करता है।