भारत में सीआरपीसी कानून में बदलाव किया जा रहा है। प्रस्तावित कानून के संबंध में एक बिल संसद में पेश किया गया है। प्रस्तावित बदलावों में इस कानून के तहत पुलिस को आरोपियों की फिजिकल (भौतिक) और जैव (बायोलॉजिकल) सैंपल लेने, उन्हें स्टोर करने और उनका विश्लेषण करने का अधिकार मिल जाएगा। अभी जो सीआरपीसी कानून है वो 1920 में बना है। उसके तहत पुलिस को इस तरह के सैंपल लेने का अधिकार नहीं है। प्रस्तावित सीआरपीसी संशोधन कानून का विपक्ष यह कहकर विरोध कर रहा है कि इससे लोगों की प्राइवेसी में दखल बढ़ेगा और पुलिस इसका अनुचित इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में ये बदलाव बायोमीट्रिक सिस्टम के तहत लागू हो चुके हैं।
भारत के विधेयक में कहा गया है कि इससे जांच एजेंसियों को कानूनी रूप से पर्याप्त स्वीकार्य सबूत इकट्ठा करने और आरोपी व्यक्ति के अपराध को स्थापित करने में मदद मिलेगी।
पुराने कानून को अब 102 साल हो गए हैं। कैदियों की पहचान अधिनियम 1920 में केवल उंगलियों के निशान और पैरों के निशान स्टोर करने के लिए बना था। उसके बाद दुनिया में ढेरों तकनीकी और वैज्ञानिक परिवर्तन हुए हैं, अपराध और इसकी प्रवृत्ति बढ़ी है। इसलिए सरकार आपराधिक प्रक्रिया ( पहचान) विधेयक, 2022 लाई है।
क्या है प्रस्तावित कानून में
उंगलियों के निशान, हथेली के निशान और पैरों के निशान, फोटोग्राफ, आईरिस और रेटिना स्कैन, भौतिक, जैविक नमूने और उनके विश्लेषण आदि। इसमें उस शख्स की अनुमति की जरूरत नहीं पड़ेगी।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) को सैंपल के रिकॉर्ड को जमा करने, संग्रहीत करने और संरक्षित करने और रिकॉर्ड को साझा करने, प्रसार और निपटान के लिए सशक्त बनाना।
किसी भी व्यक्ति का नमूना लेने का निर्देश देने के लिए मजिस्ट्रेट की पावर को मजबूत बनाना। एक मजिस्ट्रेट लॉ एनफोर्समेंट एजेंसीज को दोषी और गैर-दोषी व्यक्तियों के उंगलियों के निशान, पैरों के निशान और तस्वीरें एकत्र करने का निर्देश दे सकता है।पुलिस या जेल अधिकारियों को किसी भी ऐसे व्यक्ति का सैंपल लेने के लिए ज्यादा पावरफुल बनाना जो सैंपल देने का विरोध करता है या मना करता है।
इन तमाम दायरों के अलावा, यह बिल पुलिस को विश्लेषण के मकसद के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 53 या धारा 53ए में संदर्भित हस्ताक्षर, लिखावट या अन्य व्यवहार संबंधी विशेषताओं को रिकॉर्ड करने के लिए भी अधिकृत करता है।
विधेयक के अनुसार, किसी भी निवारक निरोध कानून के तहत दोषी ठहराए गए, गिरफ्तार किए गए या पकड़े गए किसी भी व्यक्ति को पुलिस अधिकारी या जेल अधिकारी को "सैंपल" देने की जरूरत होगी।
प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक इन सैंपलों का रिकॉर्ड स्टोर करने की तारीख से 75 साल के लिए डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखा जा सकता है।
इसमें कहा गया है कि ऐसे मामलों में रिकॉर्ड को नष्ट कर दिया जाना चाहिए, जिसे पहले कभी किसी भी कानून के तहत किसी भी अवधि के लिए दंडनीय अपराध का दोषी नहीं ठहराया गया है। या फिर इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उसका सैंपल लिया गया है, बिना मुकदमे के रिहा कर दिया गया है या सभी कानूनी उपायों को समाप्त करने के बाद, अदालत द्वारा छुट्टी दे दी गई या बरी कर दिया गया है। ऐसे मामलों में, अदालत या मजिस्ट्रेट, लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए, एजेंसियों को रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए निर्देश दे सकते हैं।
आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की कोई भी राज्य सरकार अपने संबंधित अधिकार क्षेत्र में किसी व्यक्ति के सैंपल को लेने, स्टोर करने और साझा करने के लिए एक उपयुक्त एजेंसी को सूचित कर सकती है।
इस अधिनियम के तहत सैंपल लेने की अनुमति का विरोध या इनकार करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 186 के तहत अपराध माना जाएगा।
बिल के मुताबिक दुनिया भर के विकसित देश विश्वसनीय नतीजों के लिए नए "सैंपल" तकनीकों पर भरोसा कर रहे हैं। भारत में कैदियों की पहचान अधिनियम 1920 इन शरीर सैंपलों को लेने के लिए अनुमति नहीं देता है क्योंकि उस समय कई तकनीकों और प्रौद्योगिकियों का विकास नहीं हुआ था।
अमेरिका में क्या नियमअमेरिका में अलग-अलग राज्यों में बायोमीट्रिक लेने के अलग-अलग नियम हैं। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, एपल, फेसबुक की तमाम तकनीकों के जरिए अमेरिकी जांच एजेंसियों के पास लोगों का बायोमीट्रिक डेटा पहले से ही आ चुका है। तमाम डेटा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए जुटाए गए हैं। अमेरिका के 45 राज्यों में ऐसी इमेज या सैंपल लेने का अधिकार बिना उस शख्स की मर्जी के है। न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया, वॉशिंगटन, इलनॉय और टेक्सास में बिना अनुमति सैंपल नहीं लिया जा सकता। यहां तक कि कोई भी सोशल मीडिया साइट उनका कमर्शल इस्तेमाल भी नहीं कर सकती। इन राज्यों के प्राइवेसी लॉ भी अलग हैं।
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