देश की आर्थिक हालत सुधारने की बात कर रही मोदी सरकार के लिए अब मानसून ही बड़ी परेशानी बनता दिख रहा है। देश के आधे से ज़्यादा हिस्से में सूखे जैसे हालात हैं। खेती-किसानी की बात छोड़िए, लाखों लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। नदी-तालाब सूखे पड़े हैं। ज़मीन के नीचे का पानी ख़त्म होता जा रहा है। कई हिस्सों में मानसून पहुँचा ही नहीं है और जहाँ पहुँचा है वहाँ भी बहुत कम बारिश हुई है। मौसम विभाग के अनुसार अब तक जितनी बारिश होनी चाहिए थी, उससे 38 फ़ीसदी कम बरसात हुई है। इसका साफ़ मतलब यह हुआ कि फ़सलों की बुवाई और अनाज के उत्पादन पर असर पड़ेगा। पहले से ही दयनीय हालत में पहुँच चुके कृषि क्षेत्र के लिए यह चिंताजनक स्थिति होगी। चिंताजनक स्थिति तो आर्थिक विकास के लिए भी होगी। यदि फ़सलें प्रभावित होंगी तो इसका सीधा असर कृषि की विकास दर और सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी पर भी पड़ेगा। बता दें कि 2018-19 में कृषि की विकास दर सिर्फ़ 2.9 फ़ीसदी रही और आख़िरी तिमाही में तो यह सिर्फ़ 0.1 फ़ीसदी थी। जीडीपी विकास दर भी मार्च तिमाही में गिरकर 5.8 फ़ीसदी पर आ गई है। इसका असर तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार पर भी पड़ेगा और बेरोज़गारी बढ़ने की आशंका रहेगी। हाल ही में सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 45 साल में रिकॉर्ड बेरोज़गारी है। यानी स्थिति और बदतर होने की आशंका है।