कई मसलों पर भारत और अमेरिका के बीच गहरे मतभेदों के बावजूद सामरिक रिश्ते निरंतर गहराते जा रहे हैं। जहाँ अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर अमेरिकी रणनीतिज्ञों ने भारत के साथ साझी रणनीति से किनारा कर लिया है, वहीं आतंकवाद व पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ के ख़िलाफ़ अमेरिका ने भारत को ताक़त दी है। इसी पृष्ठभूमि में गत 18 दिसम्बर को वाशिंगटन में भारत और अमेरिका के विदेश और रक्षा मंत्रियों की दूसरी सालाना ‘टू प्लस टू’ वार्ता हुई।
चीन द्वारा एकतरफा तौर पर दुनिया पर अपनी धाक जमाने की कोशिशों के मद्देनज़र भारत और अमेरिका के बीच आपसी सामरिक साझेदारी को गहरा करने की कवायद काफी अहम है। दुनिया के सबसे पुराने और सबसे ताक़तवर जनतांत्रिक देश अमेरिका और दुनिया के सबसे बड़े जनतांत्रिक देश और एक बड़ी आर्थिक ताक़त के तौर पर उभर चुके भारत के बीच पिछले क़रीब दो दशकों से सामरिक रिश्तों को नई ताक़त और गहराई देने का सिलसिला जारी है।
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'टू प्लस टू'
इन रिश्तों को लगातार नई दिशा देते रहने और नई ऊँचाई तक पहुँचाने के इरादे से ही दो साल पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तय किया था कि दोनों देशों के बीच शीर्ष स्तर पर हर साल विदेश और रक्षा मंत्रियों की साझा बैठक होगी।इस फ़ैसले के तहत पिछली वार्ता एक साल पहले नई दिल्ली में और अब दूसरी सालाना वार्ता वाशिंगटन में हुई है। ‘टू प्लस टू’ यानी दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की साझा बैठक यह संकेत देती है कि दोनों देशों के बीच आपसी सामरिक समझ और साझेदारी को नई ऊँचाई मिल चुकी है।
भारत का महत्व बढ़ा
‘टू प्लस टू’ ढाँचे के तहत चल रही इस वार्ता के नतीजों से साबित होता है कि दोनों देशों की सामरिक साझेदारी में निरंतर प्रगति हासिल की जा रही है। साल 1998 में जब भारत ने पोकरण में परमाणु परीक्षण किये थे, अमेरिकी प्रशासन काफी तिलमिलाया था और भारत के रक्षा और अन्य संवेदनशील वैज्ञानिक सहयोग के कार्यक्रमों को प्रतिबंधित कर दिया था।अमेरिका को भारत की नवअर्जित परमाणु ताक़त का आदर करना पड़ा और उसे लगा कि चीन की चुनौती से मुक़ाबला करने में भारत का साथ लिया जा सकता है।
द्विपक्षीय समझौते
अब दोनों देशों ने इस सामरिक साझेदारी को ज़मीन पर उतारने के लिये कई अहम समझौते पिछले कुछ सालों में किए। इसमें सबसे ताज़ा समझौता गत 18 दिसम्बर को दोनों देशों के बीच इंडस्ट्रियल सेक्योरिटी एनेक्स (आईएसए) का सम्पन्न होना शामिल है। आईएसए की बदौलत अमेरिकी रक्षा तकनीक का भारतीय सेनाओं और रक्षा उद्योग को हस्तांतरण आसान हो जाएगा।पिछले साल दोनों देशों ने कैमकासा (कम्युनिकेशंस कम्पैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट) किया था। इसके पहले 2017 में दोनों देशों ने लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट यानी लेमोआ किया था। इन समझौतों के ज़रिये दोनों देशों की तीनों सेनाओं और रक्षा उद्योगों के बीच तालमेल को काफी गहरा किया जाने लगा है।
अमेरिका का इरादा है कि इन समझौतों के ज़रिये भारत की सैन्य ताक़त को मज़बूत किया जाए ताकि दोनों देश साझा चुनौतियों का मिलकर मुक़ाबला कर सकें।
सामरिक सौदे
साल 2001 के बाद से दोनों देशों ने सैन्य और रक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का सिलसिला गहरा करना शुरू किया और 1992 से चल रहे द्विपक्षीय मालाबार नौसैनिक अभ्यासों का स्तर ऊँचा किया। 2008 तक नगण्य आपसी रक्षा व्यापार का स्तर अब क़रीब 22 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है। स्पष्ट है कि ये सामरिक वार्ताएँ रंग दिखाने लगी हैं।अमेरिका ने जहाँ भारत को किसी भी तरह के हथियारों की सप्लाई पर प्रतिबंध लगाया हुआ था, वहीं भारत के सभी वैज्ञानिक और रक्षा शोध संस्थानें भी अमेरिकी प्रतिबंध के शिकार हुए थे।
लेकिन अमेरिका ने भारत के साथ सामरिक रिश्तों की अहमियत समझी और धीरे-धीरे भारत के साथ कई रक्षा व सामरिक सहयोग समझौते किये। इसमें 2005 में दोनों देशों द्वारा सामरिक साझेदारी में अगला क़दम (एनएसएसपी) का समझौता भी शामिल था।
आज जब हम सामरिक रिश्तों का नया और ताज़ा दौर देखते हैं तो इसकी गहराई का अंदाजा लगता है।
शीत युद्द के बाद का समीकरण
शीत युद्ध के बाद दुनिया के बदले सामरिक समीकरणों के मद्देऩजर अमेरिका ने भारत की सामरिक ताक़त मज़बूत करने में सैन्य मदद देने का नीतिगत फ़ैसला इसलिये लिया था कि उसे चीन के मुक़ाबले खड़ा करना है ताकि चीन को संतुलित करने वाली एक ताक़त हिंद महासागर में विकसित कर चीन की दादागीरी पर रोक लग सकेगी। इसी इरादे से अमेरिका ने हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाले एशिया प्रशांत सागर का नाम हिंद प्रशांत इलाक़ा कर दिया और इसमें भारत को अहम स्थान दिया।इसी हिंद प्रशांत इलाक़े में सामरिक साझेदारी को गहरा करने के लिये दोनों देशों ने ‘क्वाड्रीलैटरल’ यानी चतुर्पक्षीय गुट की स्थापना की जिसमें जापान और ऑस्ट्रेलिया को शामिल किया गया।
क्वाड्रिलैटरल
दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की ‘टू प्लस टू’ डायलॉग में इस चतुर्पक्षीय गुट में में हो रही प्रगति की भी समीक्षा की गई। चतुर्पक्षीय गुट के दो अन्य सदस्यों भारत और जापान के बीच भी टू प्लस टू की तर्ज पर विदेश और रक्षा मंत्रियों की सालाना वार्ता का सिलसिला शुरू किया गया है।इस चतुर्पक्षीय गुट की स्थापना भी चीन की आक्रामक समर नीति से मुक़ाबला करने के लिये हुई थी, ताकि प्रशांत सागर और खासकर दक्षिण चीन सागर में चीन के सामुद्रिक विस्तार को रोकने और पूरे दक्षिण चीन सागर के इलाक़े पर उसके प्रादेशिक दावा करने से पैदा चुनौतियों से मिलकर मुक़ाबला किया जा सके।
दक्षिण चीन सागर का पेच
इस सामरिक साझेदारी के रिश्तों से फ़ायदा अमेरिकी रक्षा उद्योग को तो हुआ ही है भारतीय सेनाओं की भी ताक़त काफी बढ़ी है जिससे वह पड़ोसी देशों से पैदा किसी भी चुनौती का मुक़ाबला करने में अधिक से अधिक सक्षम होता जा रहा है।हालाँकि सामरिक साझेदारी के रिश्ते गहराते जाने के बावजूद अफ़ग़ानिस्तान जैसे मसलों पर दोनों देशों की समर नीति की खाई काफ़ी चौड़ी हो चुकी है। लेकिन जम्मू- कश्मीर और आतंकवाद के मसले पर जिस तरह अमेरिका ने भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान और चीन की साझा साजिशों को निष्फल किया है वह भारत के लिये काफ़ी अहम है।
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