अपनी बात शुरू करने से पहले मैं एक छोटा-सा क़िस्सा सुनाना चाहता हूँ। मेरे साथ हाईस्कूल में पढ़ने वाला एक सहपाठी कोई चालीस साल बाद मुझे अचानक ट्रेन में मिल गया।। संयोग से हम दोनों ने ही एक-दूसरे को पहचान लिया। मैंने पूछा, तुम हाईस्कूल में मेरे साथ थे। फिर क्या पढ़ाई के लिए बाहर चले गए थे?’
उसने कहा, 'नहीं। फिर पढ़ा ही नहीं।'
मैंने पूछा, 'क्यों?
उसने जवाब दिया, 'मैं संघ में चला गया।'
'संघ मतलब?'
'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में।'
'ओह, फिर पढ़े क्यों नहीं?'
उसने गर्व से कहा, 'संघ में पढ़ाई की क्या जरूरत? फिर संघ ही हमें पढ़ाता है।'
पढ़ाई-लिखाई की ज़रूरत नहीं
इस क़िस्से के प्रकाश में भगवा नेताओं के अजीबोग़रीब बयानों को समझा जा सकता है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान कि पहली प्लास्टिक सर्जरी भारत में हुई, जिसने आदमी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया था। किसी का यह बयान कि सीता का जन्म परखनली से हुआ था। यह बयान कि गाय के रंभाने की आवाज से मनुष्य के अनेक मानसिक रोग दूर हो जाते हैं, और यह कि एक तोला घी से यज्ञ करने पर एक टन आक्सिजन बनती है। और अब योगी आदित्यनाथ का यह बयान कि छुआछूत मुग़लों की देन है।
इससे साफ़ समझा जा सकता है कि भगवा नेताओं को वाक़ई पढ़ाई-लिखाई की ज़रूरत नहीं है। उनकी पढ़ाई-लिखाई संघ में होती है। संघ जो सिखाता है, वही उनकी पढ़ाई-लिखाई है। उसके सिवा उन्हें किसी पढ़ाई-लिखाई की ज़रूरत नहीं है। वे न इतिहास जानते हैं, और न विज्ञान। उनका इतिहास भी वही है, जो संघ बताता है, और विज्ञान भी वही है, जो संघ की प्रयोगशाला में समझाया जाता है। संघ उन्हें उसी तरह सिखाता है, जिस तरह पिंजड़े में बंद तोते को उसका मालिक सिखाता है। तोते रट लेते हैं और फिर दिन भर उसी को दुहराते रहते हैं। संघ के तोते भी रटे हुए हैं, इसलिए रिकार्ड या सीडी की तरह सब जगह बजते रहते हैं। यह बयान योगी जी का नहीं है, आरएसएस का है। उसने अपने सभी विद्यार्थियों को यही इतिहास पढ़ाया है। अब आइए, देखते हैं कि सच्चाई क्या है?
आरएसएस ब्राह्मणों का संगठन है और भारत में हिंदुत्व के नाम पर ब्राह्मण राज कायम करना चाहता है, इसने बहुत शातिर ढंग से मुसलमानों और ईसाइयों को बाहरी घोषित करके भारत में हिंदू बहुसंख्यक का भ्रम पैदा कर दिया है, जबकि हज़ारों जातियों में विभाजित हिंदुओं में कोई भी बहुसंख्यक नहीं है।
पर इस भ्रम से उसका काम बहुसंख्यक के नाम पर हिंदुओं को मुसलमानों से लड़ाने का है, जिसमें वह सफल हो रहा है। उसके हिंदू राष्ट्र बनाम ब्राह्मण राज के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा दलित वर्ग है, जो डा. आंबेडकर की वैचारिकी से जुड़कर हिंदुत्व के लिए चुनौती बन गया है। छुआछूत की घटनाएँ भी इसी वर्ग के साथ होती हैं। आज भी बहुत से गाँवों में दलित जातियों को घुढ़चढ़ी की इजाज़त नहीं है, और उन्हें घुढ़चढ़ी से बारात निकालने के लिए अदालत या प्रशासन की मदद लेनी पड़ती है।
आरएसएस की मुश्किल
आरएसएस के लिए इस वर्ग को साधना मुश्किल बना हुआ है। इस मिशन में उसकी डा. आंबेडकर को हिंदुत्ववादी और मुस्लिम-विरोधी बनाने की मुहिम भी काम नहीं आई, क्योंकि डा. आंबेडकर हिंदू राज को हर क़ीमत पर रोके जाने की पहले ही चेतावनी दे चुके थे। अब आरएसएस के पास दलितों को अपने मिशन से जोड़ने का एक ही मार्ग था कि वह उन्हें यह बताए कि भारत में छुआछूत मुसलमानों की देन है। हालाँकि यह आरएसएस का अपना मिशन नहीं है, बल्कि आर्य समाज का है। आर्य समाज ने सफ़ाई कर्मचारियों को ऋषि वाल्मीकि से जोड़कर उन्हें स्वामी अछूतानन्द और मंगू राम के आदि धर्मी आन्दोलन से अलग करने में सफलता प्राप्त कर ली थी। इसमें अमीचंद शर्मा नाम के एक ब्राह्मण ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसका आधुनिक अवतार बिंदेश्वर पाठक हैं।आरएसएस इस तरह के सारे मिथ्या इतिहास-पाठों का प्रयोग चुनावों के दौरान बीजेपी के पक्ष में हिंदू-मुस्लिम का मामला भड़काने के लिए करता है। इसलिए उसके रट्टू तोते चुनावों के मौसम में सक्रिय हो जाते हैं। योगी का यह बयान इसी साज़िश के तहत आया है कि छुआछूत मुग़लों से आया है। अब चूँकि योगी जैसे ज़हिलों से कोई पलटकर सवाल पूछने की हिम्मत नहीं करता, इसलिए उनका अनर्गल प्रलाप करने का दुस्साहस बढ़ता जाता है।
मुसलमानों में छुआछूत नहीं
योगी जैसे लोग निराधार बयान देकर दलितों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि दलित जातियाँ छुआछूत के लिए हिंदुओं को दोषी न मानें, बल्कि मुसलमानों को अपना दुश्मन समझें। क्यों भई, मुसलमानों को वे अपना दुश्मन क्यों मानें? अगर वे छुआछूत के लिए जिम्मेदार होते, तो मुसलमान आज भी छुआछूत कर रहे होते। पर मुसलमानों में कोई छुआछूत नहीं है। यह सच्चाई है कि जो क़ौम जिस चीज़ को माना करती है, वह उस को लागू भी करती है। हिंदू क़ौम छुआछूत को मानती है, इसीलिए वह उसे अपने यहाँ लागू करती है। यदि मुसलमान छुआछूत मानते होते, तो दलित-मुसलमानों की बस्तियाँ पास-पास नहीं हो सकती थीं, जो किसी भी शहर की सबसे बड़ी सच्चाई है। अगर वे छुआछूत मानते होते, तो मुस्लिम बहुल इलाकों में दलितों का जीना दूभर हो गया होता। पर इसके विपरीत दलितों का जीवन हिंदुओं ने दूभर कर रखा है। देश भर में दलितों के साथ छुआछूत और जातीय भेदभाव की जितनी भी घटनाएँ हुई हैं और होती हैं, वे हिंदुओं द्वारा ही की गई हैं और की जाती हैं।क्या संघ परिवार के योगियों से यह पूछे जाने की जरूरत नहीं है कि अगर छुआछूत मुगलों से आया, तो हिंदुओं ने उसे क्यों अपनाया? हिंदू समुदाय के संस्कार में ही छुआछूत है, जो उसमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रहा है। अगर छुआछूत मुगलों का संस्कार था, या है, तो वह हिन्दुओं का संस्कार कैसे बन गया?
हिंदुओं में तो आज भी किसी भंगी-चमार को किराए पर कमरा नहीं मिलता है, जबकि मुसलमान घरों में आसानी से कमरा मिल जाता है। किसके संस्कार में है छुआछूत?
गढ़ा हुआ इतिहास
कुछ साक्ष्य इतिहास से भी उल्लेखनीय हैं, हालाँकि संघ परिवार अपने गढ़े गए इतिहास को ही मानता है। फिर भी इतिहास के जिन तथ्यों को मैं दे रहा हूँ, उनको झुठलाने का साहस आरएसएस भी नहीं कर सकता। सबसे पहले मैं चांडाल शब्द की बात करता हूँ। क्या योगी या आरएसएस का कोई नेता यह बतायेगा कि मुग़लों ने चांडाल किस काल में बनाए थे? किसी के पास भी इसका जवाब नहीं होगा, क्योंकि इतिहास के जिस काल खंड में चांडाल आते हैं, उसमें मुग़ल क्या, सल्तनत काल का भी अस्तित्व भारत में नहीं था। डा। विवेकानंद झा ने भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद की शोध पत्रिका 'इतिहास' के जनवरी 1992 के अंक में प्रकाशित अपने शोधपत्र 'चांडाल और अस्पृश्यता का उद्भव' में लिखा है, 'तीसरी से छठी सदी ई. के ब्राह्मण परम्परा की विष्णु, याज्ञवल्क्य, नारद, बृहस्पति और कात्यायन स्मृतियों से अस्पृश्यता के पालन के विस्तार के प्रमाण मिलते हैं और इस काल में चांडाल की स्थिति में और भी गिरावट आई। इसी काल में हमें 'अस्पृश्य' शब्द का प्रथम प्रयोग भी देखने को मिलता है। विष्णु ने इसका प्रयोग दो स्थलों पर किया है। अस्पृश्य योनि में जन्म लेने का कारण मलिन कर्म करना बताया गया है, और किसी अस्पृश्य द्वारा जानबूझकर किसी द्विज का स्पर्श करने के लिए मृत्यु दंड का विधान किया गया है—अस्पृश्य: कामकारेण अस्पृश्यं स्पृशंवध्य:' (पृष्ठ 29)
क्या ये विष्णु, याज्ञवल्क्य, नारद, बृहस्पति और कात्यायन स्मृतियाँ मुग़लों ने बनाई थीं? क्या मनुस्मृति का विधान भी मुग़लों का बनाया हुआ है, जिसमें कहा गया है कि चांडालों के साथ कोई भी सामाजिक व्यवहार न करे, तथा चांडाल और श्वपच के रहने का स्थान गाँव के बाहर रहना चाहिए। (10/51-54) क्या यह छुआछूत नहीं है? जब इन स्मृतियों के विधाता मुसलमान नहीं हैं, ब्राह्मण हैं, तो फिर छुआछूत के लिए ब्राह्मण ही जिम्मेदार क्यों नहीं हैं? एक साक्ष्य मध्यकालीन इतिहास से भी देख लिया जाए। यह वह काल है, जब भारत में मुसलमान आ गए थे, पर बादशाहत नहीं आई थी। यह कबीर का काल है। कबीर स्वयं भी मुसलमान थे। उन्होंने पाखंड और आडम्बरों को मानने के लिए ब्राह्मण और मुल्ला दोनों को फटकार लगाई है। पर क्या कारण है कि छुआछूत को मानने के लिए उन्होंने ब्राह्मण को ही फटकारा है, मुल्ला को नहीं। यथा—
1। काहे को कीजे पांडे छोति विचारा, छोति हीं तैं उपजा सब संसारा
2। पांडे बूझि पियहु तुम पानी,
3। जे तू बाभन बभनी जाया, आन बाट काहे नहिं आया।
इसका यही कारण है कि छुआछूत हिंदुओं के संस्कार में था, मुसलमानों के खून में नहीं। अत: हे आरएसएस के पंडो! छुआछूत मुग़लों से नहीं, ब्राह्मणों से आया है। इसके जनक भी ब्राह्मण हैं और प्रसारक भी।
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