कृषि क़ानून 2020 के ख़िलाफ़ लगभग डेढ़ महीने से आन्दोलन कर रहे किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित कमेटी के सामने पेश होने और उनसे बात करने से साफ इनकार कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि वे इस आन्दोलन को और तेज़ करेंगे।
बता दें कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश में तीनों कृषि क़ानूनों पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी। इसके साथ ही अदालत ने एक चार-सदस्यीय कमेटी के गठन का एलान किया। इस कमेटी को पहली बैठक से दो महीने में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देनी है।
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
कोर्ट ने कहा कि यदि किसान समस्याओं का समाधान चाहते हैं तो उन्हें इस कमेटी के सामने आकर अपनी बात कहनी ही होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके साथ ही कड़ा रुख अख़्तियार करते हुए कहा कि उसे कमेटी गठित करने का अधिकार है और उसके तहत ही ऐसा कर रही है।
लेकिन किसान संगठन इससे खुश नहीं हैं। उनका मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित कमेटी के सभी सदस्य इन क़ानूनों के पक्षधर हैं, उन्होंने कई बार इन क़ानूनों का समर्थन किया है और इसलिए उनकी निष्पक्षता संदेह से परे नहीं है।
पंजाब किसान यूनियन के एक नेता ने एनडीटीवी से कहा,
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"हम कमेटी को स्वीकार नहीं करेंगे, इसके सभी सदस्य सरकार के समर्थक हैं और कृषि क़ानूनों को उचित ठहराते रहे हैं।
पंजाब किसान यूनियन के बयान का अंश
'मक़सद लोगों का ध्यान बँटाना'
उन्होंने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के जरिए यह कमेटी गठित कर रही है। इसका मक़सद सिर्फ लोगों का ध्यान भटकाना है। इस यूनियन का कहना है कि यदि कमेटी के सदस्य बदल दिए गए तब भी वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
पंजाब किसान यूनियन ने कहा, "यह अच्छी बात है कि क़ानूनों पर रोक लगा दी गई है, हम इसका स्वागत करते हैं, पर हम क़ानूनों को रद्द किए जाने से कम पर राज़ी नहीं होंगे।"
'सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया'
ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेश कमिटी ने एक बयान में कहा है कि कमेटी का गठन करने में सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया गया है। इसमें उन लोगों को रखा गया है जो सरकार के समर्थक रहे हैं और उन्होंने इन कृषि क़ानूनों को अब तक उचित ही ठहराया है।
बता दें कि सरकार की प्रस्तावित कमेटी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जिन लोगों के नाम की सिफ़ारिश की है वे हैं, भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकरी संगठन के अनिल घनावत, प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी।
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा,
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"सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के सदस्यों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि वे यह लिखते रहे हैं कि किस तरह ये कृषि क़ानून किसानों के हित में हैं।"
बलबीर सिंह राजेवाल, किसान नेता
उन्होंने इसके साथ ही किसान आन्दोलन चालू रखने का एलान किया।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के पक्ष में कमेटी सदस्य घनावत!
दूसरी ओर, शेतकरी संगठन के अनिल घनावत ने कहा कि उनका संगठन जिन चीजों की माँग लंबे समय से करता रहा है, इन कृषि क़ानूनों में वह आंशिक रूप से पूरा होता है। इसमें सुधार करने की ज़रूरत है।
उन्होंने ठेके पर खेती और दूसरे कृषि सुधारों का समर्थन करते हुए कहा कि सबसे पहले इन सुधारों की माँग बहुत पहले शेतकरी संगठन के शरद जोशी ने की थी।
प्रस्तावित कमेटी के दूसरे सदस्य भूपिंदर सिंह मान भी कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन चला रहे क्रांतिकारी किसान यूनियन के दर्शन पाल ने कहा, "मैं भूपिंदर सिंह मान को जानता हूँ, वे पंजाब से हैं और वह कृषि मंत्री से मिलकर कानून का समर्थन कर चुके हैं।"
किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच अगली बैठक शुक्रवार को है।
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