1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में दलित समुदाय के सदस्यों पर जातीय हिंसा की जाँच कर रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने माना है कि एल्गार परिषद कार्यक्रम की हिंसा में कोई भूमिका नहीं थी। यह जाँच अधिकारी उप-विभागीय पुलिस अधिकारी गणेश मोरे हैं। द वायर की रिपोर्ट के अनुसार मोरे ने यह बात हिंसा की जांच के लिए गठित दो सदस्यीय न्यायिक आयोग के सामने कबूल की है। तो सवाल है कि पिछले चार साल में सरकार से लेकर पुलिस और एनआईए तक दलितों, दलितों के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों और दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता के पीछे किस आधार पर पड़ी हैं?
भीमा कोरेगाँव हिंसा में एल्गार परिषद का हाथ नहीं- जाँच अधिकारी: रिपोर्ट
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- 27 Dec, 2022
भीमा कोरेगाँव हिंसा का दोषी कौन है? सरकार, पुलिस और एनआईए चार साल में भी जवाब नहीं ढूँढ पाई? क्या इस मामले में एल्गार परिषद का कुछ भी हाथ नहीं था? जानिए शीर्ष जाँच अधिकारी की स्वीकारोक्ति।

गणेश मोरे की इस स्वीकारोक्ति के बाद क्या पुणे पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए के दावों पर सवाल नहीं खड़े होते हैं? एनआईए का दावा है कि 16 एक्टिविस्टों ने भीमा कोरेगांव में अपने भाषणों से भीड़ को 'भड़काने' और भीमा कोरेगांव हिंसा भड़काने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इस मामले के तीन आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया है, और एक व्यक्ति की हिरासत में मृत्यु हो गई, बाक़ी 12 मुंबई की जेलों में हैं।