हिजाब को लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट में आज चौथे दिन भी जोरदार बहस हुई। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण दीक्षित और जस्टिस जे एम खाजी की बेंच में यह केस लगा हुआ है। सुनवाई आज पूरी नहीं हो सकी। यह कल यानी गुरुवार को भी जारी रहेगी।कर्नाटक के उड्डुपी की मुस्लिम लड़कियों ने स्कूलों में स्कार्फ पहनने पर सरकारी प्रतिबंध को चुनौती दी है। राज्य की बीजेपी सरकार ने 5 फरवरी को एक आदेश जारी कर सभी शिक्षण संस्थानों में हिजाब या कोई अन्य धार्मिक पहचान वाली चीज पहनने पर रोक लगा दी थी।
याचिकाकर्ता लड़कियों के वकील रवि वर्मा कुमार ने जजों से सवाल किया कि जब दुपट्टे, चूड़ियाँ, पगड़ी, क्रॉस और बिंदी जैसे सैकड़ों धार्मिक प्रतीक रोजाना पहने जा रहे हैं तो हिजाब को क्यों अलग किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि उनका कहने का आशय यह है कि समाज के सभी वर्गों में धार्मिक प्रतीकों की विशाल विविधता है। सरकार अकेले हिजाब का मामला क्यों उठा रही है और यह शत्रुतापूर्ण भेदभाव कर रही है? महिलाएं चूड़ियां भी पहनती हैं? क्या वे धार्मिक प्रतीक नहीं हैं? आप इन गरीब मुस्लिम लड़कियों को क्यों चुन रहे हैं? वकील वर्मा ने कहा, ऐसा सिर्फ उनके धर्म के कारण हो रहा है। उन्हें क्लास से बाहर भेजा जा रहा है। वहीं एक बिंदी पहनने वाली लड़की को बाहर नहीं भेजा जाता है। चूड़ी पहनने वाली लड़की बाहर नहीं भेजी जाती है। एक ईसाई क्रॉस पहने हुए बाहर नहीं भेजा जाता। उन्होंने कहा -
एडवोकेट रवि कुमार वर्मा की दलील पूरी होने के बाद मुंबई के जाने-माने वकील यूसुफ मुछाला ने भी अपनी दलील पेश करने की अनुमति मांगी। अदालत की सहमति के बाद वकील यूसुफ मुछाला ने कहा कि वो इससे पहले एडवोकेट कामत, एडवोकेट वर्मा आदि की दलीलों से सहमत हैं। लेकिन वो उसमें कुछ और भी जोड़ना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार का हिजाब बैन करने का आदेश मनमाना है। सरकार ने पैरंट्स टीचर्स एसोसिएशन (पीटीए) कमेटी से सलाह क्यों नहीं ली? इस आदेश को लागू करने की ऐसी क्या जल्दी थी? उन तमाम स्कूलों में हिजाब पहनने की प्रथा उन मुस्लिम लड़कियों के प्रवेश लेने के समय से ही थी I उन्होंने कहा-
एडवोकेट यूसुफ मुछाला ने कहा - धर्म के अभिन्न अंग के बारे में सवाल तब उठता है जब अनुच्छेद 26 के तहत एक संप्रदाय द्वारा अधिकार का दावा किया जाता है, न कि तब जब कोई व्यक्ति अनुच्छेद 25 के तहत अंतरात्मा की स्वतंत्रता का दावा कर रहा हो।
इस पर हाईकोर्ट की बेंच ने कहा, हम समझ गए हैं कि यह आवश्यक नहीं है कि अनुच्छेद 25 किसी धार्मिक प्रथा में लागू हो।
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