'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म अपनी रिलीज के समय से ही विवादों में है। कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स मार्च में जब रिलीज हुई तो बीजेपी शासित तमाम राज्य उसे अपने-अपने ढंग से प्रमोट करने में जुट गए थे। लेकिन अधिकतर फ़िल्म समीक्षकों और विपक्षी दलों के नेताओं ने इसे प्रोपेगेंडा फ़िल्म बताया। इन आरोपों-प्रत्यारोपों पर एक समय ख़ूब हंगामा हुआ था। फिर यह विवाद धीरे-धीरे गायब हो गया। लेकिन सोमवार को एक बार फिर से यह विवाद तब खड़ा हो गया जब 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव यानी आईएफएफआई के समापन समारोह में महोत्सव के जूरी प्रमुख नादव लापिड ने कह दिया कि द कश्मीर फाइल्स फिल्म फेस्टिवल की स्पर्धा में शामिल भी किए जाने लायक नहीं थी। उन्होंने कहा, 'अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में 15 फ़िल्में देखीं। उनमें से 14 में सिनेमाई गुण थे, चूक थी और इन पर चर्चाएँ हुईं। 15वीं फिल्म द कश्मीर फाइल्स से हम सभी परेशान और हैरान थे। यह एक प्रोपेगेंडा, भद्दी फिल्म की तरह लगी, जो इस तरह के प्रतिष्ठित फिल्म समारोह के कलात्मक प्रतिस्पर्धी वर्ग के लिए अनुपयुक्त है।' तो सवाल है कि आख़िर इस फ़िल्म में ऐसा क्या है कि जूरी प्रमुख को यह कहना पड़ा?