बिलकीस बानो के बलात्कारियों को मिली सजा में छूट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से कड़े सवाल किए हैं। इसने पूछा कि समय से पहले रिहाई की नीति चुनिंदा तरीके से क्यों लागू की जा रही है। अदालत ने यह तब कहा जब गुजरात सरकार ने दलील दी कि जघन्य अपराधों के दोषी कैदियों को सजा पूरी करने और पछतावा दिखाने पर समय से पहले जेल से रिहा कर सुधार का मौका दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो के बलात्कार और उनके परिवार की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए लोगों की असामयिक रिहाई पर याचिकाओं की एक श्रृंखला पर सुनवाई कर रहा है। बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी। इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था।
बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषी जब गुजरात सरकार की छूट नीति के तहत जेल से बाहर आए थे तो उन्हें रिहाई के बाद माला पहनाई गई थी और मिठाई खिलाई गई थी। इसी रिहाई मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
बहरहाल, अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई पर सवाल उठाए हैं। न्यायाधीशों ने गुरुवार को कहा कि जहाँ तक समय से पहले छूट देने का सवाल है, गुजरात सरकार मुश्किल स्थिति में है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने पूछा, 'छूट की नीति को चुनिंदा रूप से क्यों लागू किया जा रहा है और यह कानून जेल में कैदियों पर कितना लागू किया जा रहा है? हमारी जेलें खचाखच भरी क्यों हैं? विशेषकर विचाराधीन कैदियों के साथ? छूट की नीति चुनिंदा रूप से क्यों लागू की जा रही है?'
गुजरात सरकार ने न केवल यह तर्क दिया कि छूट कानूनी थी और कानून के तहत जांच के लिए आवश्यक सभी कारकों को ध्यान में रखने के बाद दी गई थी, बल्कि इसने सजा के सुधारात्मक सिद्धांत को भी सामने रखा।
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तर्क दिया गया कि 'जहां अपराध मृत्युदंड से दंडनीय है, और अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, यह इस तथ्य का संकेत है कि यह इतना जघन्य अपराध नहीं था। यह दुर्लभतम मामला नहीं है।' न्यायमूर्ति नागरत्ना ने स्पष्ट किया, 'इसे जघन्यतम माना गया, लेकिन दुर्लभतम नहीं।'
एएसजी राजू ने कहा कि जहां किसी दोषी को मौत की सजा देने के लिए अदालत द्वारा 'दुर्लभ से दुर्लभतम' सिद्धांत को लागू नहीं किया गया है, वहां सुधार की गुंजाइश मौजूद है। राजू ने कहा, 'कानून यह नहीं कहता है कि हर दोषी को फांसी दी जानी चाहिए या हमेशा के लिए सजा दी जानी चाहिए। कानून सबसे कठोर अपराधी को भी खुद को सुधारने का मौका देने की बात करता है।'
इस पर न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने हस्तक्षेप किया, 'यह कानून जेल में कैदियों पर कितना लागू हो रहा है? हमारी जेलें खचाखच भरी क्यों हैं? विशेषकर विचाराधीन कैदियों के साथ? छूट की नीति चुनिंदा तरीके से क्यों लागू की जा रही है? हमें डेटा दें।'
एएसजी राजू ने स्वीकार किया कि उनके लिए इस प्रश्न का सामान्य उत्तर देना कठिन होगा। उन्होंने कहा कि किसी मामले के तथ्यों के आधार पर, मैं उत्तर देने में सक्षम हो सकता हूं।
कोर्ट ने कहा, 'आपके पास आँकड़े होने चाहिए। राज्यवार आँकड़े। प्रत्येक कैदी को सुधार का अवसर दिया जाना चाहिए। केवल कुछ कैदियों के लिए नहीं।' न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फिर पूछा, 'लेकिन जिन मामलों में दोषियों ने 14 साल की सजा पूरी कर ली है, उनमें छूट की नीति कहां तक लागू की जा रही है? क्या ऐसे सभी मामलों में उनकी पात्रता के अधीन छूट नीति लागू की जा रही है?'
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