सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फ़ैसले पर मुहर लगा दी है जिसमें सहकारिता से जुड़े 97वें संविधान संशोधन क़ानून को रद्द कर दिया गया था। इसके साथ ही केंद्र में अलग सहकारिता मंत्रालय बनाने पर सवालिया निशान लग गया है।
बता दें कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, सहकारिता राज्य का विषय है।
लेकिन संविधान का 97वां संशोधन दिसंबर 2011 में संसद से पारित कर दिया गया और यह फरवरी 2012 में लागू कर दिया गया। इसके तहत सहकारी संस्थाओं के कुशल प्रबंधन के लिए कई तरह के बदलाव किए गए।
22 अप्रैल 2013 को गुजरात हाई कोर्ट ने 97वें संविधान संशोधन की कुछ बातों को खारिज करते हुए कहा था कि केंद्र सहकारी संस्थाओं से जुड़े नियम नहीं बना सकता क्योंकि यह पूरी तरह राज्य का मामला है।
क्या कहा बेंच ने?
जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस के. एम. जोसफ़ और जस्टिस बी. आर. गवई के खंडपीठ ने मंगलवार को एक अहम फ़ैसले में गुजरात हाई कोर्ट के निर्णय के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया।
जस्टिस नरीमन और जस्टिस गवई ने 97वें संविधान संशोधन क़ानून के खंड 9बी को रद्द कर दिया। एक असहमति नोट में जस्टिस जोसेफ़ ने पूरे संविधान संशोधन क़ानून को ही रद्द कर दिया।
गुजरात हाई कोर्ट ने सहकारिता में क़ानून बनाने से जुड़े संविधान संशोधन क़ानून को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि संविधान की धारा 368 (2) के प्रावधानों के तहत आधे से अधिक राज्यों की रज़ामंदी नहीं ली गई थी।
संविधान की अनुसूची सात के अनुसार सहकारिता राज्य सूची की 32वीं प्रविष्टि है। इसे वहां से निकाल कर केंद्र की सूची में डालने के लिए पारित होने वाले संविधान संशोधन को आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं की सहमति चाहिए।
क्यों हुआ खारिज?
गुजरात हाई कोर्ट ने 97वें संशोधन क़ानून को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि इसके ज़रिए संसद विधानसभाओं के कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही है और उसमें कटौती कर रही है।
मंगलवार के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कोऑपरेटिव सोसाइटी संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची में है, लेकिन संसद ने अनुच्छेद 368 (2) का पालन किए बग़ैर विधानसभाओं के अधिकार क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश की है। उसे ऐसे करने के पहले आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं से इसे पारित करवाना चाहिए था, जो नहीं किया गया है।
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अब क्या करेगी सरकार?
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला केंद्र सरकार में सहकारिता मंत्रालय के गठन के कुछ दिन बाद ही आया है। पिछले कैबिनेट विस्तार में सहकारिता मंत्रालय बनाया गया और उसे अमित शाह के हवाले कर दिया गया।
उस समय भी यह सवाल उठा था कि केंद्र में सहकारिता मंत्रालय कैसे हो सकता है क्योंकि यह तो राज्य का विषय है। उस समय 97वें संविधान संशोधन क़ानून का हवाला देकर कहा गया था कि केंद्र के पास यह विषय हो सकता है।
लेकिन गुजरात हाई कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले से यह तो साफ हो गया है कि केंद्र के पास यह विषय और इस तरह यह मंत्रालय नहीं हो सकता है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि सरकार के पास यही उपाय बचा है कि वह सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पीटिशन डाल कर इस पर विचार करने को कहे या वह मंत्रालय फिलहाल बंद कर दे।
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