सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस के अफ़सर सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों का पक्ष लेते हैं। अदालत ने कहा कि इस तरह का चलन परेशान करने वाला है।
सीजेआई एन.वी.रमना ने कहा, “ऐसे पुलिस अफ़सर जो सत्ता में बैठे राजनीतिक दल की गुड बुक में बने रहना चाहते हैं, वे ताक़त का ग़लत इस्तेमाल करते हैं और अपने राजनीतिक विरोधियों का उत्पीड़न करते हैं।” रमना ने कहा कि पुलिस के अफ़सरों को क़ानून के मुताबिक़ ही काम करना चाहिए।
अदालत ने ये बातें छत्तीसगढ़ पुलिस के एक आईपीएस अफ़सर गुरजिंदर पाल सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहीं। इस अफ़सर को सस्पेंड कर दिया गया था और उन पर राजद्रोह का मुक़दमा भी ठोक दिया गया था। अफ़सर पर यह भी आरोप था कि उन्होंने आय से अधिक संपत्ति जमा की है।
पुलिस पर गंभीर आरोप
भारत के लगभग सभी राज्यों में सत्ता में बैठे राजनीतिक दल पर यह आरोप लगता है कि वह पुलिस का इस्तेमाल अपने राजनीतिक विरोधियों की आवाज़ को दबाने के लिए करता है। पुलिस राज्य की एक प्रमुख जांच एजेंसी है और उस पर एक बड़ी जिम्मेदारी लोगों को इंसाफ़ दिलाने की होती है।
लेकिन यह आम शिकायत है कि पुलिस के लोग सत्ता में बैठे नेताओं के इशारे पर काम करते हैं और कई बार ट्रांसफ़र के डर और मलाईदार पोस्टिंग के लालच में ज़ुल्म की हदों को पार कर जाते हैं। कई राज्यों में पुलिस अफ़सरों पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लग चुके हैं। जैसे उत्तर प्रदेश की पुलिस अपने एनकाउंटर्स को लेकर सवालों के घेरे में है।
यह आरोप तमाम विपक्षी दल सत्ता में बैठे दल पर लगाते हैं कि पुलिस का राजनीतिकरण हो चुका है। लेकिन विडंबना ये है कि जब विपक्षी दल सत्ता में आते हैं तो उन पर भी यही आरोप लगता है।
इसलिए माननीय अदालत ने इस बात को मज़बूत आवाज़ में कहने की कोशिश की है कि पुलिस क़ानून के मुताबिक़ काम करे और वह किसी का पक्ष न ले।
अपनी राय बतायें