सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की जाँच शुरू कर दी है। इसके तहत सुप्रीम कोर्ट कमेटी ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि वे तकनीकी मूल्यांकन के लिए अपने डिवाइस यानी मोबाइल फ़ोन जमा कराएं।
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस आर. वी. रवींद्रन की अगुआई में बनी कमेटी ने कहा है कि याचिकाकर्ता चाहें तो शपथ ले कर अपनी बातें भी कह सकते हैं।
इस कमेटी में नेशनल फ़ोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी के नवीन कुमार चौधरी, सेंटर फ़ॉर इंटरनेट स्टडीज़ एंड आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस के प्रोफ़ेसर प्रबाहरण पूर्णचंद्रन और इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के प्रोफ़ेसर अश्विन अनिल गुमास्ते भी हैं।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की जाँच का आदेश देते हुए कहा था कि सरकार की ओर से राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताए जाने का मतलब यह नहीं है कि न्यायपालिका मूकदर्शक बनी रहे।
अदालत ने कहा, “किसी लोकतांत्रिक देश में, जहाँ क़ानून का शासन हो, वहाँ किसी की भी जासूसी करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।”
अदालत ने कहा कि भारत सरकार ऐसे मामलों में जानकारी देने से इनकार कर सकती है, जो सुरक्षा से जुड़े हों लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हर वक़्त राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा खड़ा कर दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने निजता और तकनीक की अहमियत पर भी टिप्पणी की और कहा कि अगर तकनीक का इस्तेमाल लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है तो इसका इस्तेमाल लोगों की निजता पर हमले के लिए भी हो सकता है।
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क्या है मामला?
याद दिला दें कि शीर्ष अदालत में दायर याचिकाओं में पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग की गई थी।
एम. एल. शर्मा, पत्रकार एन. राम और शशि कुमार, परंजय गुहाठाकुरता, एस. एन. एम. आब्दी, एडिटर्स गिल्ड, टीएमसी नेता यशवंत सिन्हा सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से यह भी माँग की थी कि वह सरकार को निर्देश दे कि वह इस बात को बताए कि उसने पेगासस स्पाईवेअर ख़रीदा या नहीं।
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