बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई को लेकर फिर से सुप्रीम कोर्ट ने तीखे सवाल किए। इसने दोषियों के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने ही जेल से रिहाई वाले माफी आदेश का फ़ैसला दिया था। मौजूदा सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार को छूट आवेदनों पर विचार करने की अनुमति देने वाला 2021 का फैसला बाद में पारित छूट आदेशों की न्यायिक समीक्षा पर रोक नहीं लगाता है। पिछली सुनवाई में इस बेंच ने तीखे सवाल किए थे और पूछा था कि बिलकीस के दोषियों पर सजा माफी नीति चुनिंदा तौर पर लागू क्यों?
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान कई हत्याओं और हिंसक यौन उत्पीड़न के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 दोषियों को छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर गुजरात सरकार द्वारा सजा माफ करने के उनके आवेदन को मंजूरी मिलने के बाद दोषियों को रिहा कर दिया गया था।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार दोषियों की ओर से और इससे पहले राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू द्वारा यह तर्क दिया गया कि बिलकीस बानो के बलात्कारियों की सजा सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसले का पालन करती है, जिसमें गुजरात को समय से पहले रिहाई के उनके आवेदनों का निपटान करने के लिए कहा गया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ने दोषियों की समयपूर्व रिहाई के खिलाफ याचिकाओं का विरोध करते हुए आज पीठ से कहा, 'इस मुद्दे को इस अदालत द्वारा हल किया गया था। आप समन्वित पीठ के फैसले पर फैसला नहीं दे सकते और न ही आपको ऐसा करना चाहिए।' उनका तर्क था कि समन्वित पीठ के समक्ष कार्यवाही में छूट के आदेश सवाल से परे थे क्योंकि वे पहले ही अंतिम रूप प्राप्त कर चुके थे।
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हम किसी समन्वय पीठ के फैसले पर निर्णय नहीं ले रहे हैं। यह छूट आदेश पर है। कार्रवाई का कारण अलग है। यह हमारे लिए बहुत स्पष्ट है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना, सुप्रीम कोर्ट (बिलकीस बानो केस पर)
बता दें कि बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। उनके परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय 21 साल थी। इस मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था।
बिलकीस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषी जब गुजरात सरकार की छूट नीति के तहत जेल से बाहर आए थे तो उन्हें रिहाई के बाद माला पहनाई गई थी और मिठाई खिलाई गई थी। इसी रिहाई मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
इसी महीने हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी रिहाई पर सवाल उठाए थे। न्यायाधीशों ने कहा था कि जहाँ तक समय से पहले छूट देने का सवाल है, गुजरात सरकार मुश्किल स्थिति में है। अदालत ने पूछा था, 'छूट की नीति को चुनिंदा रूप से क्यों लागू किया जा रहा है और यह कानून जेल में कैदियों पर कितना लागू किया जा रहा है? हमारी जेलें खचाखच भरी क्यों हैं? विशेषकर विचाराधीन कैदियों के साथ? छूट की नीति चुनिंदा रूप से क्यों लागू की जा रही है?'
पीठ ने पूछा था,
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दोषियों की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। ऐसी स्थिति में उन्हें 14 साल की सजा के बाद कैसे रिहा किया जा सकता है? अन्य कैदियों को रिहाई की राहत क्यों नहीं दी गई?
सुप्रीम कोर्ट बेंच
गुजरात सरकार ने न केवल यह तर्क दिया कि छूट कानूनी थी और कानून के तहत जांच के लिए आवश्यक सभी कारकों को ध्यान में रखने के बाद दी गई थी, बल्कि इसने सजा के सुधारात्मक सिद्धांत को भी सामने रखा। इस पर न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने हस्तक्षेप किया, 'यह कानून जेल में कैदियों पर कितना लागू हो रहा है? हमारी जेलें खचाखच भरी क्यों हैं? विशेषकर विचाराधीन कैदियों के साथ? छूट की नीति चुनिंदा तरीके से क्यों लागू की जा रही है? हमें डेटा दें।'
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