देश में बढ़ते बहुसंख्यकवाद पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि संविधान में दिए गए स्वतंत्रता और समानता के सिद्धान्तों के आधार पर इस बहुसंख्यकवाद पर सवाल खड़े किए जाने चाहिए।
उन्होंने इसके साथ ही कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता व जीवन के अधिकार में राज्य के किसी तरह के हस्तक्षेप के बग़ैर ही इस बहुसंख्यकवाद पर सवाल किए जाने चाहिए।
वे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ के 101वें जन्मदिन के मौके पर आयोजित वेबिनार में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा,
“
अधिनायकवाद, नागरिक स्वतंत्रता पर हमला, लिंगभेद, जातिवाद, धर्म और क्षेत्र के आधार पर किसी को 'दूसरा आदमी' समझने की प्रवृत्ति हमारे पूर्वजों के पवित्र आश्वासनों के उलट है, जिन्होंने भारत को संवैधानिक गणतंत्र के रूप में स्वीकार किया था।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जज, सुप्रीम कोर्ट
संविधान की गारंटी
इस वेबिनार का आयोजन पुणे की संस्था शिक्षा प्रसारक मंडली ने किया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस जज ने कहा, "हमारे राष्ट्र का गठन हर नागरिक को दिए कुछ मौलिक आश्वासनों के आधार पर हुआ था। यह आश्वासन धार्मिक स्वतंत्रता का था, लिंग, जाति, धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करने का था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का था, जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में किसी तरह के हस्तक्षेप नहीं करने का था।"
उन्होंने कहा कि संविधान की बहुसंख्यकवाद विरोधी आत्मा पर नज़र डालने से इसमें मदद मिलेगी।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि प्रौद्योगिकी की तरह ही संविधान ने भी आज जिस तरह का भूमंडलीकरण और निजीकरण है, उसका अनुमान नहीं लगाया था।
सुप्रीम कोर्ट के जज ने इसके साथ ही कहा, "लेकिन संविधान हर तरह की दबदबे वाले सत्ता तंत्र से आम जनता को बचाने में सक्षम है। हम संविधान की बहुसंख्यकवाद विरोधी आत्मा का प्रयोग करते हुए परस्पर विरोधी ताक़तों के बीच संतुलन बना सकते हैं और निश्चित तौर पर वैज्ञानिक प्रगति हासिल कर सकते हैं, लेकिन यह इस रूप में हो कि यह पूरी मानवता के लिए हो न कि सिर्फ कुछ लोगों के लिए।"
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इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि संविधान कोई 'मृत पत्र' नहीं है, 1950 में तैयार किया गया कोई दस्तावेज आज की स्थितियों में बगैर किसी परिवर्तन के लागू करने लायक नहीं भी हो सकता है, आज की सच्चाइयों के आधार पर ही इसका फ़ॉर्मूला तैयार किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि बी. आर. आम्बेडकर ने अपने समय के पूर्वग्रहों को सफलतापूर्वक चुनौती दी थी। उन्हीं की तरह सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने भी लोगों को आज़ाद करने की मुहिम छेड़ी थी।
चंद्रचूड़ ने कहा कि यह ज़िम्मेदारी अब हम पर आ गई है कि हम किस तरह अपने समाज को आगे ले चलते हैं ।
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