केंद्र सरकार ने नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा है कि उसने इस पर फैसला लेने से 8 महीने पहले ही आरबीआई के साथ चर्चा शुरू कर दी थी। बताना होगा कि मोदी सरकार ने 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी का फैसला लिया था जिसके तहत 500 और 1000 के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच- जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम, और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना इस मामले में सुनवाई कर रही है।
केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को दिए गए हलफनामे में कहा गया है कि नोटबंदी के फैसले को लेकर पूरी तैयारी की गई थी और तत्कालीन वित्त मंत्री ने भी संसद में कहा था कि सरकार ने फरवरी 2016 में आरबीआई के साथ इस संबंध में चर्चा शुरू कर दी थी हालांकि इसे बेहद गोपनीय रखा गया था। केंद्र सरकार ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है।
केंद्र सरकार ने नोटबंदी को लेकर अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने केंद्र सरकार से 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेने के लिए विशेष सिफारिश की थी और ऐसा करने के लिए एक योजना प्रस्तावित की थी और केंद्र सरकार ने इस पर विचार भी किया था।
विपक्षी दल हमलावर
बताना होगा कि नोटबंदी को लेकर विपक्षी दल खासकर कांग्रेस मोदी सरकार पर जमकर हमलावर रही है। आरबीआई ने इस साल मई में कहा था कि साल 2021-22 में नकली नोटों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ गई है। आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 500 रुपए के नकली नोट 101.9% ज़्यादा और 2 हजार रुपए के नकली नोट 54.16% ज़्यादा हो गए हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की प्रमुख वजहों में से एक नकली नोटों पर नकेल कसना बताया था। लेकिन आरबीआई की ही रिपोर्ट में नकली नोटों में बढ़ोतरी की खबर ने सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले पर सवाल खड़ा कर दिया था।
केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा है कि नोटबंदी नकली करेंसी के खतरे से लड़ने के साथ ही गलत कामों में वित्तपोषण से रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम था और यह ट्रांसफॉरमेशनल इकनॉमिक पॉलिसी की दिशा में एक अहम कदम था।
हलफनामे में आरबीआई के डाटा का हवाला देते हुए कहा गया है कि नोटबंदी से पहले 5 सालों में 50 और 100 रुपए के नोट की तुलना में 500 और 1000 रुपए के नोटों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई थी। इसके बाद केंद्र सरकार और आरबीआई ने नए नोट लाने का फैसला किया जिससे काले धन की चुनौती से निपटा जा सके और इसके बाद 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेने का फैसला किया गया।
इस हलफनामे में कहा गया है कि नकली नोटों की संख्या और उनकी वैल्यू में अच्छी-खासी गिरावट आई है। इसके अलावा डिजिटल लेनदेन काफी बढ़ गया है और बैंक खातों में जमा किए गए पैसे के बारे में जानकारी लेना भी इनकम टैक्स के अफसरों के लिए आसान हो गया है जिससे वह किसी भी खाते में आने वाली बेहिसाब रकम के बारे में पता लगा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिनों पहले इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से हलफनामा देने के लिए कहा था।
मोदी सरकार ने नोटबंदी का एलान करते वक्त दावा किया था कि नोटबंदी से जाली नोट और आतंकवाद की फ़ंडिंग पर लगाम लगेगी और काला धन पकड़ा जा सकेगा। लेकिन नोटंबदी से कालेधन पर कोई लगाम नहीं लगी, उल्टा अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई और लाखों लोगों की नौकरियां भी चली गईं। साल 2018 के नवंबर में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने नोटबंदी के दुष्प्रभावों को स्वीकार किया था। मंत्रालय ने माना था कि नोटबंदी के बाद से नकदी की कमी के चलते लाखों किसान, रबी सीजन में बुआई के लिए बीज-खाद नहीं खरीद सके और इसका उनकी फसल पर बहुत बुरा असर पड़ा था।
50 लाख रोजगार गए
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ससटेनेबल इम्पलॉयमेंट की ओर से जारी ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019’ रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि नोटबंदी के बाद दो साल में 50 लाख लोग बेरोज़गार हो गए।
सौ लोगों की मौत
नोटबंदी के दौरान अखबारों में प्रकाशित ख़बरों पर नज़र दौड़ाएं तो कम-से-कम सौ लोगों की मौत के समाचार मिले थे। लेकिन मोदी सरकार ने संसद में सिर्फ चार लोगों के मरने की बात कही थी। इनमें से तीन बैंककर्मी थे।
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