दिल्ली हिंसा से जुड़े जिन नफ़रत वाले भाषणों के मामले में सुनवाई के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने एक माह बाद की तारीख़ दी थी, अब सुप्रीम कोर्ट ने उसे छह मार्च को सुनवाई करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले को एक महीने के लिए टाल देना 'अनुचित' है। तब हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस तर्क को मानकर 13 अप्रैल की सुनवाई तय कर दी थी जिसमें उसने कहा था कि एफ़आईआर दर्ज करने का अभी सही वक़्त नहीं है और उसकी प्राथमिकता शांति बहाली की है।
इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा है कि दिल्ली हिंसा से जुड़े सभी मामले दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा शुक्रवार को सुने जाएँ। कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस आग्रह को भी ठुकरा दिया जिसमें इसने इसके लिए और समय माँगा था।
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे के नेतृत्व वाली बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। बेंच में जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे। मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, 'हमारा मानना है कि न्याय के हित में, मामलों को शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। उसी विषय पर अन्य सभी जुड़े मामले जो स्थगित किए गए थे, शुक्रवार को उठाए जा सकते हैं। हम उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि वह इन मामलों से निपटने में तेज़ी लाए।' हालाँकि इसके साथ ही इस बेंच ने दिल्ली हाई कोर्ट से यह भी आग्रह किया कि इस विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की संभावना ढूँढने का प्रयास किया जाए।
बता दें कि 26 फ़रवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के नफ़रत वाले भाषण को लेकर नाराज़गी जताई थी। तब जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि कपिल मिश्रा के उस भाषण वाले वीडियो की जाँच हो जिसके बाद हिंसा भड़की। जस्टिस एस मुरलीधर की बेंच ने तुषार मेहता से यह भी कहा था कि वह पुलिस कमिश्नर को सलाह दें कि बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर, प्रवेश सिंह वर्मा और कपिल मिश्रा के कथित नफ़रत वाले बयान पर एफ़आईआर दर्ज की जाए। इस पूरे मामले में पुलिस के रवैये पर उन्होंने नाराज़गी जताई थी। लेकिन इस पर अगली सुनवाई से पहले ही जस्टिस मुरलीधर को उसी दिन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में तबादला कर दिया गया।
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